Hindi Diwas 2022 : गुजराती-बंगाली से लेकर मराठी भाषी समेत 5 लोगों ने हिंदी के प्रसार में लगा दिया था अपना जीवन, जानें इन हस्तियों के नाम

Hindi Diwas 2022 : गुजराती-बंगाली से लेकर मराठी भाषी समेत 5 लोगों ने हिंदी के प्रसार में लगा दिया था अपना जीवन, जानें इन हस्तियों के नाम
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भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इतिहास में ऐसे बहुत से लोग थे जो गैर हिंदी भाषी होते हुए भी जिन्होंने न सिर्फ हिंदी का समर्थन किया बल्कि उसका प्रचार-प्रसार करके उसे आगे बढ़ाया।

हिंदी (Hindi) भाषा भारत की पहचान है। वैसे तो भारत विविधताओं का देश है, जहां पर बहुत सी भाषा बोली और पढ़ी जाती है। लेकिन देश में आज भी बहुत से लोगों की मातृभाषा हिंदी ही है। कई बड़ी-बड़ी हस्तियों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिए जाने की मांग की, हालांकि हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। आज से ही नहीं बल्कि कई सालों पहले हुए स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) के समय भी लोगों के बीच संदेश पहुंचाने और वैचारिक आदान-प्रदान के लिए हिंदी भाषा को ही अहमियत दी गई थी। इसी भाषा की वजह से समाजसेवक हो या क्रांतिकारी या फिर कोई शिक्षक और वकील इन सबके संवाद हिंदी भाषा में ही हुआ करते थे। आज हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने गैर हिंदी भाषी होते हुए भी न सिर्फ हिंदी का समर्थन किया बल्कि उसका प्रचार-प्रसार करके उसे आगे बढ़ाया। भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस (Hindi Diwas) मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत 1953 से हुई थी।

1. महात्मा गांधी

महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन का एक बड़ा हिस्सा थे। बता दे कि बापू गुजराती भाषा के जानकार थे। इसके साथ ही वो इंग्लिश भी काफी अच्छी तरह से जानते थे। जब स्वतंत्रता आंदोलन हुआ उस समय उन्होंने लोगों के बीच हिंदी में ही अपनी बात रखी। यहां तक की सेवाग्राम में रहते हुए भी उन्होंने लोगों से पत्राचार हिंदी में करने का आग्रह किया करते थे। महात्मा गांधी हमेशा से ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में थे।

2. सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस बंगाली भाषा के जानकार थे। उन्हें हिंदी पढ़नी, लिखनी और बोलनी आती थी। जब उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया उस समय उन्होंने कहा था कि वो हिंदी भाषा में ही लोगों से बात करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने साथ हिंदी के एक शिक्षक को भी रखा था। सुभाष चंद्र बोस ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर भी खूब जोर दिया था। उनका मानना था कि जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं होती वह खड़ा नहीं हो सकता।

3. माधव सदाशिव गोलवलकर

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक माधव गोलवलकर मराठी भाषा के जानकार थे। लेकिन उन्होंने अभिव्यक्ति का जरिया हिंदी को ही बनाया। एक बार उन्होंने एक बताया था कि तमिलनाडु में कार्यकर्ता चाहते थे कि मैं अंग्रेजी में बोलूं, लेकिन मैंने हिंदी में बोला, इसके बाद शिक्षार्थियों ने उन्हें बताया कि उन्हें इंग्लिश की अपेक्षा हिंदी ज्यादा समझ आई। वो चाहते थे कि हिंदी को विश्वभाषा बनाया जाए, इसका जिक्र उन्होंने 1950 में हरियाणा में आयोजित एक कार्यक्रम में भी किया था।

4. केशव वामा

केशव वामा मराठी भाषा के जानकार थे। साल 1893 में उन्होंने राष्ट्रभाषा किंवा सर्व हिन्दुस्थानची एक भाषा करणे पुस्तक लिखी थी। इसके जरिए उन्होंने हिंदी को सर्वस्वीकृत राष्ट्रभाषा बनाने पर जोर दिया था।

5. स्वामी दयानंद सरस्वती

स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अपना सबसे प्रमुख ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की भाषा हिंदी रखी थी। उस समय में संस्कृत के साथ-साथ देशज बोलियों का चलन था। दयानंद सरस्वती जी गुजराती भाषा के जानकार थे। साथ ही संस्कृत के अच्छे ज्ञाता भी थे। फिर भी उन्होंने आर्य समाज के प्रचार-प्रसार का जरिया हिंदी को बनाया।

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