Independence Day 2023: एक तस्वीर के लिए अंग्रेजों को भटकना पड़ा था दर-दर, चंद्रशेखर आजाद के वो अनकहे किस्से

Independence Day 2023: भारत को आजादी मिले 76 साल पूरे होने वाले वाले हैं। इतने सालों में न जाने कितना कुछ बदला और न जाने आने वाले समय में और क्या बदलेगा। अंतत: युग तक नहीं बदलेगा, तो सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां। इनके द्वारा किया गया हर एक बलिदान अविस्मरणीय व अकल्पनीय है।
आज हम आपको देश के ऐसे वीर जवान की स्टोरी बताने जा रहे हैं, जिन्होने खुद के द्वारा ली गई प्रतिज्ञा को व्यर्थ नहीं होने दिया और अंग्रेजों की गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच लड़ते हुए खुद को गोली मार ली। देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर जवान किसी पहचान के मोहताज नहीं है।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था। चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और मां का नाम जगरानी देवी था। आजाद अक्सर ये लाइने गुनगुनाया करते थे "दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद हैं, आजाद ही मरेंगे। इसी स्लोगन की तरह चंद्रशेखर ने अपनी जिंदगी को जिया।"
चंद्रशेखर का नाम क्यों पड़ा 'आजाद'
चंद्रशेखर का नाम पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था, तो उनके जीवन में ऐसा क्या बदलाव हुआ कि लोग उन्हें आजाद के नाम से पुकारने लगे, जानिए इसके पीछे का कारण। चंद्रशेखर आजाद उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने असहयोग आन्दोलन (1920-1921) में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। जिसके कारण उन्हें पकड़ लिया गया और जज के सामने पेश किया गया।
जब मजिस्ट्रेट ने सामने खड़े 15 साल के बच्चे से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है तब दूसरी तरफ से जवाब आई मेरा नाम आजाद है। दूसरा प्रश्न करते हुए जज ने पूछा तुम्हारे पिता का नाम आजाद का जवाब स्वतंत्रता, तीसरा प्रश्न तुम्हारा पता आजाद का जवाब जेल। इस बात को सुनने के बाद मजिस्ट्रेट भड़क गया और आजाद को 15 बेंत लगाने की सजा सुना दी। उसके बाद क्या था आजाद को खंभे से बांधकर बेंत मारने शुरू कर दिए गए, हर बेंत के पड़ने पर चंद्रशेखर आजाद के मुंह से भारत माता की जय के नारे निकलते थे। कुछ समय के बाद चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (1922) के सदस्य बन गए थे।
काकोरी कांड में निभाई हिस्सेदारी
एसोसिएशन में सदस्य बनने के बाद चंद्रशेखर आजाद ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी कांड (1925) में पहली बार अपनी भागीदारी निभाई। चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय का बदला लिया था। इसके बाद आजाद ने अंग्रेज के खजानों को लूटना शुरू कर दिया।
फोटो के लिए अंग्रेजों को भटकना पड़ा
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चंद्रशेखर आजाद को फोटो खींचना बिल्कुल पसंद नहीं था। आजाद की पहली फोटो लोकल गार्जियन शिव विनायक मिश्र ने खीची थी। इस तस्वीर को हासिल करने के लिए अंग्रेज ने शिव विनायक के घर पर 5 बार छापा मारा था।
यूपी के पार्क में खुद को मारी थी गोली
27 फरवरी, 1931 एक आम सुबह की तरह ही था, लेकिन किसी को क्या पता था कि आज देश का वो जवान सोने वाला है। जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सुबह चंद्रशेखर आजाद पहले जवाहरलाल नेहरू से मिलने उनके घर यानी आनंद भवन गए। उनसे मिलने के बाद आजाद सीधे अल्फ्रेड पार्क चले गए।
चंद्रशेखर को बहरूपिया भी कहा जाता था, क्योंकि आजाद कहां किस रूप में रह रहे हैं। इसके बारे में किसी को कानों कान खबर नहीं लगती थी। जिस आजाद को ढूंढने के लिए अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े वे आजाद अपने ही साथी की गद्दारी को नहीं भांप पाए थे। चंद्रशेखर के पुरान साथी वीरभद्र ने आजाद को पार्क में जाते हुए देख लिया था और उसकी जानकारी उसने अंग्रेज पुलिस को दे दी थी। जब तक आजाद को कुछ समझ आता तब तक पुलिस द्वारा पूरे अल्फ्रेड पार्क को घेर लिया गया। दोनों ओर से गोलियों के तड़तड़ाहट अपने चरम पर थी। चंद्रशेखर आजाद को 5 गोलियां लग चुकी थी, वे बुरी तरह से घायल हो चुके उसके बाद भी वे डटकर लड़ाई का सामना करते रहे। उसके बाद अपनी कोल्ट पिस्टल की आखिरी गोली से उन्होंने खुद को गोली मार ली और हमेशा के लिए सो गए। उस वक्त उनकी उम्र 25 साल थी। आज भी वह पिस्टल प्रयागराज के म्यूजियम में रखी हुई है।
Also Read: भारतीय सेना के वो नारे, जिसे सुन कांप जाती है दुश्मनों की रूह
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS