Katchatheevu Island: संसद में PM ने किया इस द्वीप का जिक्र, जानें इसके पीछे की कहानी

Katchatheevu Island: इस समय संसद का मानसून सत्र चल रहा है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए एक द्वीप का जिक्र किया, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते होंगे। बता दें कि यह द्वीप एक समय भारत का हिस्सा हुआ करता था। लेकिन अगर बात करें वर्तमान समय की तो यह जमीन श्रीलंका के हिस्से में है। यह बात आश्चर्य में डालने वाली है कि इस जमीन को श्रीलंका ने ना तो किसी युद्ध में जीता और ना ही जबर्दस्ती कब्जा किया। ऐसा कहा जाता है कि सन् 1974 में इंदिरा गांधी द्वारा इस जमीन को श्रीलंका को उपहार में दे दिया गया था। आज हम आपको बताते हैं कि इस द्वीप का इतिहास क्या है और इसे उपहार में देने के पीछे की कहानी क्या है।
पीएम मोदी ने द्वीप को लेकर कही ये बात
संसद में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बहस चल रही है जिसमें पक्ष-विपक्ष का हर नेता अपनी बात को रख रहा है। सत्र के बीच इस द्वीप की चर्चा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि जरा इनसे पूछिए कि ये कच्चातिवु द्वीप क्या है और कहां गया। उनसे पूछिए, जो बड़ी- बड़ी बातें कर देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। डीएमके (Dravida Munnetra Kazhagam) नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री मुझे पत्र लिखकर कहते हैं कि मोदी जी कच्चातिवु द्वीप को वापस लाइए। जानिए, कच्चाथीवू का पूरा इतिहास...
द्वीप का इतिहास
आपको बता दें कि भारत के दक्षिणी छोर और श्रीलंका के बीच एक द्वीप मौजूद है, जिस पर कोई नहीं रहता। उसके बाबजूद भी यह द्वीप हमेशा विवाद का मुद्दा बना रहा। यह द्वीप 17वीं सदी में मदुरई के शासक रामनद के अधीन था। अगर बात करे इसके विस्तार की तो यह 285 एकड़ में फैला था। लेकिन जब भारत पर अंग्रेजों का शासन हुआ तो उस समय यह द्वीप मद्रास प्रेसेडेंसी (अंग्रेजों) के कब्जे में आ गया। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो उस समय इस द्वीप को सरकारी कागजातों के आधार पर भारत का हिस्सा बताया गया। इसके बाद भी श्रीलंका इस द्वीप पर अपना हक जताते रहता है।
इस जगह का इस्तेमाल दोनों देश के मछुआरे किया करते थे। इन देशों के बीच सीमा उल्लघंन को लेकर हमेशा तनाव बना रहता था। एक वक्त ऐसा भी आया जब इस मुद्दे को लेकर दो अहम बैठक बुलाई गई वह समय था सन् 1974 का और तारीख थी 26 जून जगह कोलंबो और 28 जून स्थान कोलंबो। बैठक के बाद इंतजार था फैसले का। फैसले में यह तय किया गया कि कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को दिया जाएगा।
इस फैसले में कई तरह की शर्ते भी थी जैसे भारतीय मछुवारे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे। वहीं इस द्वीप पर बने चर्च पर लोग बिना वीजा के धूम सकेंगे। आपको बता दें कि जैसे आज के समय फैसले को लेकर सबका अपना मत होता है कोई ऐतराज करता है तो कोई हामी भरता है यहीं हाल उस समय भी हुआ था। उस वक्त जब कांग्रेस की सरकार (इंदिरा गांधी) ने यह फैसला लिया तो उस समय तमिलनाडु के सीएम एम करूणानिधि ने सेंट्रल गवर्नमेंट के इस फैसले पर नाराजगी जताई थी।
कहानी के आगे का इतिहास
इतने पर कहानी कैसे खत्म हो सकती थी, सन् 1976 में दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा को लेकर एक और फैसला लिया गया। इस फैसले में कहा गया कि भारतीय मछुवारे व मछली पकड़ने वाले जहाज श्रीलंका के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive economic zone) में एंट्री नहीं कर सकते। इस फैसले के बाद से कच्चाथीवू द्वीप विवाद ने तूल पकड़ लिया। तमिलनाडु का मछुवारा वर्ग इस बात से बहुत ज्यादा गुस्सा हो गया जिसकी वजह से आपातकाल समय खत्म होने के बाद साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें इस द्वीप को भारत में मिलाने की बात कहीं गई।
इस फैसले के काफी समय बाद 2008 में एआईएडीएमके(All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam) की नेता जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में इस केस को उठाया था।उसके बाद सन् 2011 में जब जयललिता सीएनम बनीं तब विधानसभा में इस मुद्दे को लेकर एक प्रस्ताव भी पारित करवाया। फिर सन् 2014 में अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इस मुद्दे को लेकर कहा कि कच्चाथीवू द्वीप एक समझौते के रूप में श्रीलंका को दिया गया है और अब वह इंटरनेशनल बाउंड्री का पार्ट है। उसे वापिस लाने के लिए युद्ध करना पड़ेगा।
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