Knowledge: केवल भारत में उगता है ये पौधा, एक बार मुरझाया तो फिर 12 साल बाद खिलेगा

Knowledge: नीलकुरिंजी पुष्प को कुरिंजी (Strobilanthes kunthiana) भी कहा जाता है। यह दक्षिण भारत के पश्चिम घाट के 180 मीटर ऊंचे शोला घास के मैदानों में उगने वाला पौधा होता है। नीलगिरी पर्वत का नाम नीले कुरंजी के फूलों पर ही रखा गया है। यह पौधा 12 साल में एक बार ही फूल देता है। इस फूल की खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती है। ये पुष्प जितनी देर में खिलते हैं, उतनी जल्दी मुरझा भी जाते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि नीलकुरिंजी एक मोनोकार्पिक पौधा होता है, जो खिलने के बाद जल्दी ही मुरझा जाता है।
क्या हैं यह खास फूल
नीलकुरिंजी फूल को कुरिंजी फूल भी कहते हैं। कहा जाता है कि यह फूल केरल के इडुक्की में 12 साल बाद खिलते हैं। इस फूल को परागित होने में लंबा समय लगता है, इसलिए फूल को खिलने में 12 साल तक का समय लगता है। बॉटनी सांइस में, इसे पौधों की जीवित रहने की क्रियाविधि के रूप में जाना जाता है।
नीलकुरिंजी दुर्लभ बैंगनी-नीले रंग का फूल है। मलयालम में "नीला" जिसका अर्थ "नीला" और "कुरिंजी" का अर्थ फूलों से होता है। जब यह फूल हर 12 साल में खिलता है, तो विरान दिखने वाली कालीपारा पहाड़ियों में जान बस जाती है। स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना को मलयालम और तमिल में कुरिंजी या नीलकुरिन्जी और कन्नड़ में गुरिगे कहा जाता है।
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नीलकुरिंजी फूल तोड़ने पर सख्त कानून
नीलाकुरिंजी के पौधों को तोड़ना और उखाड़ना खतरनाक साबित होता है। चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन के बयान के अनुसार नीलकुरिंजी के पौधों और फूलों को नष्ट करना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत यह दंडनीय अपराध है। ऐसा करने पर संबंधित के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है। नीलकुरिंजी न केवल खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं, यह पर्यटन कारोबार को भी बढ़ावा देते हैं। इन फूलों को देखने के लिए यहां लोगों का जमावड़ा लग जाता है।
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