Knowledge News : दवा वाला कैप्सूल दो ही रंगों का क्यों होता है, जानिए इसके पीछे का लॉजिक

Knowledge News : दवा वाला कैप्सूल दो ही रंगों का क्यों होता है, जानिए इसके पीछे का लॉजिक
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दवाइयां तो आप सबने खाई होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैप्सूल दो अलग-अलग रंगों में क्यों होते हैं। अगर नहीं, तो पढ़िए हमारी यह रिपोर्ट...

अब मौसम धीरे-धीरे बदलने लग गया है। इसी बदलते मौसम में लोग अक्सर बीमार पड़ जाते हैं। ऐसे में खुद को ठीक करने के लिए कई बार दवाइयां भी खानी पड़ जाती है। कई बार तो हालत इतनी ज्यादा खराब हो जाती है कि बड़े-बड़े कैप्सूल भी खाने पड़ जाते हैं। हो सकता है दवाइयों में कैप्सूल का सेवन कभी न कभी आपने भी किया होगा। परन्तु क्या आपने कभी इन कैप्सूल (Capsule) को ध्यान से देखा है। अगर हां, तो आपने देखा होगा कि ये कैप्सूल ज्यादातर दो अलग-अलग रंगों में होते हैं, जिनमें एक हिस्सा बड़ा और दूसरा हिस्सा छोटा होता है।

यहां पर हम आपको बता दें कि हम कोटिंग वाले कैप्सूल की बात नहीं कर रहे हैं। हम प्लास्टिक जैसे खोल वाले कैप्सूल को बात कर रहे हैं। अब प्लास्टिक जैसे शब्द से ये मतलब नहीं है कि कैप्सूल सच में प्लास्टिक के होते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल उसे ज्यादा बेहतर समझाने के लिए किया जाता है। वैसे बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दवाइयां खाना पसंद नहीं होता, लेकिन वो इन कैप्सूल को खा लेते हैं क्योंकि इसमें कोई स्वाद नहीं होता। आज हम आपको अपनी इस खबर में बताने वाले हैं कि आखिर ये कैप्सूल दो अलग रंग के क्यों होते हैं। इसके पीछे की वजह क्या है।

कैप्सूल बनाने की प्रक्रिया

कैप्सूल के दो रंगों की वजह जानने से पहले हम इसके प्रोडक्शन प्रक्रिया को समझना होगा। ये तो हमने आपको ऊपर ही बता दिया कि कुछ कैप्सूल दो अलग साइज में होते हैं। उनका ऊपरी हिस्सा बड़ा और नीचे का हिस्सा छोटा होता है। ऐसे में अगर आप ध्यान से देखेंगे तो कैप्सूल के बड़े हिस्से में ज्यादा और छोटे हिस्से में कंटेंट होता है। इससे यह साफ होता है कि कैप्सूल का छोटा वाला हिस्सा कैप होता है और बड़ा वाला हिस्सा कंटेनर। अब जब कैप्सूल में दवा भरी जाती है, तो मशीन में बहुत छोटे-छोटे छेदों में एक हिस्सा रख दिया जाता है और फिर उसके बाद उसमें दवा डाली जाती है।

दावा की फिलिंग बाद उसमें कैप लगाई जाती है। अब इस काम को हाथ से नहीं किया जाता है, क्योंकि कैप्सूल का प्रोडक्शन एक नहीं बल्कि लाखों की संख्या में होता है। ऐसे में अगर दोनों पार्ट्स एक ही रंग के बना दिए जाएंगे तो उनमें अंतर करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। सिर्फ साइज के अंतर को देखते हुए एक बार में यह पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन सा पार्ट कंटेनर है और कौन सा कैप। यही कारण है कि कैप्सूल को या तो 2 अलग रंग में तैयार किया जाता है। नहीं तो दोनों पार्ट्स के बीच कुछ ऐसा अंतर रखा जाता है, जिससे कंटेनर और कैप की आसानी से पहचान हो सके। बहुत सी कंपनियां अपने कैप्सूल के लिए कई बार एक रंग का चुनाव भी कर लेती हैं।

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