Knowledge News: रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ा.. जेल गईं और ब्रिटिश सरकार से भी लड़ीं, जानिए भारत की पहली महिला CA की कहानी

Knowledge News: चार्टर्ड अकाउंटेंसी (Chartered Accountancy) की परीक्षा में बैठना ही एक बड़ी बात है, जहां सिर्फ 15% इसे पार कर पाते हैं। इसे पास करना वास्तव में एक बहुत बड़ी सफलता है, जिसका लोग जश्न मनाते हैं। लेकिन भारत की पहली महिला सीए (India's First Woman CA) आर शिवभोगम (R Sivabhogam) के लिए ये राह आसान नहीं थी। सीए की परीक्षा में पास होनें मात्र से उन्हें सफलता नहीं मिली बल्कि इसके बाद भी उन्हें कड़े संघर्ष करने पड़े। जहां एक तरफ उनके माता-पिता को ये डर सता रहा था कि उनके जैसी पढ़ी-लिखी शिक्षित महिला से कोई शादी नहीं करेगा। वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार (British Government) ने उनके जैसे व्यक्ति के इंडिपेंडेंट प्रैक्टिस (Independent Practice) करने पर रोक लगा दी थी। यहां हम आपको उनके जीवन में आई कठिनाइयों से अवगत कराएंगे...
शुरुआती जीवन
23 जुलाई 1907 को पैदा हुईं आर शिवभोगम ने अपनी ग्रैजुएशन की पढ़ाई चेन्नई के क्वीन मैरी कॉलेज से की थी। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) में भाग लिया और उन्हें एक साल की कैद हुई। कानून की नजर में वह एक देशद्रोही थी जिन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेनें और अंग्रेजों के खिलाफ जाने के लिए जेल में डाल दिया गया था। अपनी रिहाई के बाद शिवभोगम ने अकाउंटेंसी में सरकारी डिप्लोमा के लिए पंजीकरण किया और 1933 में पहली भारतीय महिला चार्टर्ड अकाउंटेंट (India's First Woman Chartered Accountant) बनकर इतिहास रच दिया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अकाउंटेंट के लिए रजिस्ट्रेशन करने की आज्ञा नहीं दी। लेकिन शिवभोगम चुपचाप बैठने और दूसरों को अपना भाग्य तय करने देने वालों में से नहीं थी। आखिरकार, उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट की परीक्षा पास कर पुरुषों के गढ़ में घुसने की हिम्मत जो दिखाई थी।
सिवनय अवज्ञा आंदोलन
उनके माता-पिता के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन सुना जाता है कि वह समाज सुधारक सिस्टर आर एस सुब्बालक्ष्मी से अत्यधिक प्रभावित थी। सुब्बालक्ष्मी ने गृहणियों और विधवाओं को खुद को और अधिक जागरूक बनाने के लिए एक मंच प्रदान किया। वह महात्मा गांधी की विचारधाराओं से भी प्रभावित थीं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने एक सादा जीवन व्यतीत किया, केवल खादी पहनकर और बस से यात्रा की। और हर दूसरे भारतीय की तरह, सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्पष्ट आह्वान ने उनमें कुछ हलचल मचा दी।
यूथ लीग और बाद में स्वदेशी लीग के हिस्से के रूप में, वह खादी आधारित ब्लॉक प्रिंटिंग सिखाने से लेकर विदेशी सामानों का सक्रिय रूप से बहिष्कार करने लगीं। उनकी हरकतों पर प्रतिक्रिया हुई और उन्हें वेल्लोर गोल में एक साल की कैद हुई। हालांकि, उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए मिली कड़ी सजा ने आर शिवभोगम को भारत की पहली महिला सीए बना दिया। स्वयं शिवभोगम सहित किसी ने भी इस बारे में सोचा नहीं था कि वह एक से अधिक तरीकों से इतिहास रचेंगी।
जेल में रहकर सीए बनने का फैसला
जब वह जेल में थी तब उन्होंने ग्रेजुएट डिप्लोमा इन अकाउंटेंसी (जीडीए) परीक्षा में बैठने का फैसला किया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें अकाउंटेंसी की दुनिया की ओर किसने धकेला, रिपोर्टों के अनुसार, उन्हें पुरुष-प्रधान पेशे में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। केवल उनकी बड़ी बहन और सुब्बालक्ष्मी ने उनके फैसले का समर्थन किया। 1933 में परीक्षा पास करने और इतिहास रचने के लिए शिवभोगम ने जो दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत और जबरदस्त साहस दिखाया होगा उसकी कल्पना ही की जा सकती है। इसके बाद उन्होंने चेन्नई में एक ऑडिटर सी एस शास्त्री के अंडर आर्टिकलशिप ट्रेनिंग की।
शिवभोगम अपने प्रशिक्षण के तुरंत बाद इंडिपेंडेंट प्रैक्टिस शुरू नहीं कर सकीं क्योंकि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भारत में एक कानून बनाया था जिसके तहत कारावास भुगत चुके लोगों के बतौर अकाउंटेंट रजिस्ट्रेशन पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन फिर भी शिवभोगम ने हार नहीं मानी और उन्होंने इस एक्ट को रद्द करने के लिए एक रिट याचिका दायर की और फैसला उनके पक्ष में सुनाया गया।
इंडिपेंडेंट प्रैक्टिस
शिवभोगम ने 1937 में अपनी इंडिपेंडेंट प्रैक्टिस शुरू किया और 1949 में 'द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया' (Institute of Chartered Accountants of India) के गठन पर उन्हें एक सदस्य के रूप में नामांकित किया गया। जिसके बाद 17 जून 1950 को फेलो बन गईं। शिवभोगम चार्टर्ड अकाउंटेंट्स संस्थान के दक्षिणी भारत क्षेत्रीय परिषद (SIRC) की अध्यक्ष बनी। वह 1955 से 1958 तक लगातार तीन साल की अवधि के लिए इस पद पर आसीन होने वाली एकमात्र महिला हैं। वह मद्रास विश्वविद्यालय की सीनेट सदस्य भी थीं। शिवभोगम समाज सेवा में और मुख्य रूप से महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत सक्रिय थीं। वह गांधीवादी सिद्धांतों में विश्वास रखती थीं और 14 जून 1966 को उनकी मृत्यू हो गई।
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