Sedition Law: लोकसभा में गृहमंत्री ने किया सेक्शन 124A का जिक्र, जानिए क्या है इतिहास

Sedition Law: संसद सत्र में कई ऐसे मुद्दो पर वाद-विवाद चल रहे हैं, जिसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। आज यानि 11 अगस्त को संसद सत्र के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने राजद्रोह कानून हटाने की बात कही है। बता दें कि विपक्षी पार्टियां काफी लंबे समय से इस कानून को हटाने की मांग करती आ रही है। आज हम बताते हैं कि राजद्रोह का कानून क्या है और यह कानून किस-किस पर लग चुका है।
राजद्रोह कानून कब बना
राजद्रोह का कानून 17वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। इस कानून को 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमल मैकाले द्वारा डिजाइन किया गया था। बता दें कि इस कानून का प्रयोग अंग्रेज उस समय अपने खिलाफ विद्रोह कर रहे लोगों के ऊपर करते थे। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को राजद्रोह के कानून के नाम से जाना जाता है।
भारत में पहली बार किस पर लगा ये कानून
अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद भी यह कानून भारतीय दंड संहिता में बना हुआ है। बस फर्क इतना है कि जैसे पहले ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह करने वाले को इस कानून के हिसाब से सजा दी जाती थी, जबकि अब सरकार के खिलाफ जाने वाले पर यह नियम लागू नहीं होता। फिलहाल इस कानून को उन लोगों पर लागू किया जाता है, जो समाज में नफरत फैलाने का काम करते है, या फिर इंडियन लॉ के खिलाफ के जाकर कोई काम करते हैं। जो दंगा फैला रहे हैं, उन लोगों पर यह धारा लगाई जाती है। भारत में बाल गंगाधर तिलक पर पहली बार 1897 में इस कानून का इस्तेमाल किया गया था। साल 1922 में महात्मा गांधी के खिलाफ इस कानून का प्रयोग किया गया था। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू और भगत सिंह पर भी राजद्रोह का कानून लगाया गया।
राजद्रोह और देशद्रोह में अंतर
राजद्रोह और देशद्रोह दोनों में काफी अंतर है। देशद्रोह नाम से ही साफ है कि वह व्यक्ति जो देश के खिलाफ किसी गतिविधि में शामिल है या फिर किसी आतंकवादी संगठन में शामिल हो। जो देश को नुकसान पहुचांने का काम करता है, उसे भी देशद्रोह कानून के अंतर्गत सजा दी जाती है। वहीं राजद्रोह कानून के अंतर्गत उन लोगों को रखा जाता है, जो राष्ट्रीय चिन्हों, स्मारकों या संविधान का अपमान करने का काम करते हैं या फिर कोशिश करते हैं।
राजद्रोह की सजा
राजद्रोह कानून एक गैरजमानती अपराध है। धारा 124A के तहत व्यक्ति को 3 साल जेल से लेकर उम्रकैद की सजा भी दी जाती है।
कारावास के साथ जरूरत पड़ने पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इस कानून के तहत सजा काट रहे व्यक्ति को सरकारी नौकरी से प्रतिबंधित भी किया जा सकता है।
ऐसे व्यक्ति को आजीवन बिना पासपोर्ट के रहना पड़ता है।
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