Snakes and Ladders Knowledge: भारत में हुई थी सांप-सीढ़ी खेल की शुरुआत, जानिए इसके पीछे का उद्देश्य

Snakes and Ladders Game Knowledge: आज का दौर बदला रहन-सहन बदला, खान-पान बदला, खेलने के तरीके बदले, लेकिन एक खेल ऐसा है, जो आज भी नहीं बदला। समय के साथ गोते लगाते हुए कागज पर बना सांप सीढ़ी का खेल, प्लास्टिक की परत पर आ पहुंचा, लेकिन ये तो सांप सीढ़ी है, तो रुकने वाली कहां थी। आज इसने अपनी जगह इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में बना ली। जहां आज भी अधिक संख्या में लोग सांप सीढ़ी खेल को लेकर समय गुजारना पसंद करते हैं।
बचपन में खेले जाने वाले खेल जैसे लुका-छिपी (छुपन- छुपाई), चोर- पुलिस, ऊंच नीच का पहाड़ और न जाने कितने खेल, जो हम सभी ने कभी न कभी खेला है। वो सब अब यादों का एक किनारा बन गया, लेकिन एक खेल ऐसा है जिसे आज भी खेलना पसंद किया जाता है, वो है सांप-सीढ़ी जिसने आज के दौर में भी अपनी जगह को बरकरार रखा है।
सांप-सीढ़ी खेल की शुरुआत प्राचीन भारत वर्ष में हुई थी। इस खेल का इतिहास जितना गजब है। उतना ही इनके नामों का सिलसिला। प्राचीन काल में इस खेल को मोक्ष-पट या मोक्षपटामु कहा जाता था। इन नामों के साथ ही इस खेल को लीला नाम से भी पुकारा जाता था। 70 वीं सदी में इस खेल को ज्ञान चौपड़ भी कहा जाता था। ज्ञान चौपड़ का मतलब होता है विद्या यानी ज्ञान का खेल।
स्नेक एंड लैडरर्स क्यों पड़ा नाम
19वीं शताब्दी के समय, जब भारत में उपनिवेशकाल का समय चल रहा था उसी समय सांप-सीढ़ी का खेल इंग्लैंड में जा पहुंचा था। ब्रिटिश लोग अपने साथ इस प्रचीन खेल को लेकर अपने देश लेकर गए। अंग्रेजों ने अपने हिसाब से इस खेल में फेर-बदल किए और अंग्रेजी भाषा में इस खेल को स्नेक एंड लैडरर्स कहा।
ज्ञान चौपड़ के पीछे मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि सनातन धर्म में ऋषियों द्वारा एक बात कही जाती है कि यह खेल मोक्ष का मार्ग दर्शन करता है, साथ में यह भी कहा कि चौपड़ मानव योनि में बार-बार जन्म लेने के क्रम से मोक्ष दिलाता है।
सांप-सीढ़ी की शुरुआत किसने की इसका आज तक कोई ठोस तथ्य नहीं मिल पाया है, लेकिन लोक कथा की मानें, तो यह खेल दूसरी सदी से अस्तित्व में आया, जो यह मानने पर मजबूर करता है कि यह खेल प्राचीन खेलों में से एक है। इस बात का खंडन करते हुए कुछ इतिहासकार सांप सीढ़ी का आविष्कार 13 वीं शताब्दी में संत ज्ञानदेव के द्वारा किया हुआ बताते हैं।
लीला नाम की कहानी
लीला का मतलब करतब दिखाना। कहने का अर्थ यह हैं कि जब तक भू-धरा पर मानव का जन्म होता रहेगा, जब तक वह अपने बुरे कर्मों को नहीं छोड़ देता। जैसे सांप-सीढ़ी के खेल में हम हर प्रकार की कोशिश करते हैं कि 98 के बाद सीधा 100 पर पहुंचे, लेकिन हर बार ऐसा हो जरूरी नहीं होता।
खेल के पीछे नैतिक मूल्यों की सीख देना है उद्देश्य
सांप-सीढ़ी को खेलते हुए हम सभी ने देखा है कि उसमें चौकोर आकार के बॉक्स बने होते हैं। इन बॉक्सो में कई रुपांतर होते हैं। सभी बॉक्स के अलग-अलग खंड होते हैं। जिन बॉक्स के अलग मतलब होते हैं। प्रत्येक बॉक्स व्यक्ति के गुण व अवगुण को बताते हैं। सीढ़ी, गुण को जो आपको आगे बढ़ने में मदद करता है, तो वहीं सांप का फन अवगुण, आपको नीचे उतराने का काम करता है। इसका मतलब यह है कि बच्चों को सही सीख देना एक नैतिक शिक्षा है। बच्चों को अच्छे कर्मों और बुरे कर्मों के बीच का अंतर पता होना बहुत जरूरी है। सांप-सीढ़ी पर बनी सीढ़ियां अच्छे कर्म जैसे दया, विश्वास और विनम्रता को बताता है, तो वहीं सांप बुरी किस्मत, गुस्सा और हत्या जैसी क्रूरता को बताता है।
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