बच्चे को ब्रेस्टफीड कराते समय इन बातों का ध्यान रखें मां, वरना हो सकती है बड़ी परेशानियां

बच्चे को ब्रेस्टफीड कराते समय इन बातों का ध्यान रखें मां, वरना हो सकती है बड़ी परेशानियां
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हर महिला के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क (Breast Milk) बनना एक नेचुरल प्रोसेस है, जो डिलीवरी के बाद अपने आप शुरू हो जाता है। जन्म के तुरंत बाद यह दूध गाढ़ा पीले रंग का और कम मात्रा में उत्पन्न होता है, जिसे 'कोलोस्ट्रम' (Colostrum) कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसमें पाए जाने वाले न्यूट्रिएंट्स (Nutrients), एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) तत्वों की वजह से इसे फर्स्ट वैक्सीन का दर्जा भी दिया है। यह दूध डिलीवरी के 48 घंटे बाद तक आता है और शिशु के लिए बहुत लाभकारी होता है।

हर महिला के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क (Breast Milk) बनना एक नेचुरल प्रोसेस है, जो डिलीवरी के बाद अपने आप शुरू हो जाता है। जन्म के तुरंत बाद यह दूध गाढ़ा पीले रंग का और कम मात्रा में उत्पन्न होता है, जिसे 'कोलोस्ट्रम' (Colostrum) कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसमें पाए जाने वाले न्यूट्रिएंट्स (Nutrients), एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) तत्वों की वजह से इसे फर्स्ट वैक्सीन का दर्जा भी दिया है। यह दूध डिलीवरी के 48 घंटे बाद तक आता है और शिशु के लिए बहुत लाभकारी होता है। शिशु की भूख और डिमांड के आधार पर ब्रेस्ट मिल्क (Breast Milk) पतला और ज्यादा मात्रा में बनने लगता है। बच्चे को ब्रेस्ट मिल्क फीड (Breast Milk Feed)कराने के कई फायदे भी होते हैं। लेकिन मांओं को इसकी सही टेक्नीक पता होनी चाहिए। साथ ही कुछ जरूरी बातों को भी अमल में लाना चाहिए।


फीड कराते समय रखें ध्यान

1-वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शैली बत्रा बत्रा ने बताया कि ब्रेस्ट मिल्क बनने का प्रोसेस बच्चे के जन्म लेने से पहले ही शुरू हो जाता है। लेकिन ब्रेस्ट में दूध तभी उतरता है, जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है। इसलिए जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग जरूर शुरू करा देनी चाहिए।

डॉक्टर मानते हैं कि बच्चे का स्पर्श ब्रेस्ट फीडिंग प्रोसेस में जादुई असर करता है। इसलिए जरूरी है कि नवजात शिशु को जन्म के बाद पालने या साइड बेड पर लेटाने के बजाय मां की बगल में ब्रेस्ट के पास लिटाया जाए। बच्चे के स्पर्श से मां के हार्मोंस एक्टिव हो जाएंगे, और ब्रेस्ट मिल्क बनना शुरू हो जाता है। जैसे ही शिशु दूध पीना शुरू करता है, ये हार्मोंस ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं। बच्चा जितना ज्यादा दूध पिएगा, उतनी अधिक मात्रा में दूध बनेगा। कहने का मतलब है कि शिशु की भूख और ब्रेस्ट फीडिंग के हिसाब से दूध बनता है। जो समय पर फीड ना कराने के कारण कम होने लगता है।

2- अगर महिला को स्तनपान कराने में किसी तरह की दिक्कत आ रही हो या बच्चा फीड नहीं कर पा रहा हो (खासकर सिजेरियन डिलीवरी के बाद ड्रिप या कैथेटर लगे होने, टांकों में दर्द की वजह से ठीक से बैठ ना पाने के कारण) तो ऐसी स्थिति में उसे नर्स या परिवार के सदस्यों की मदद लेनी चाहिए।

3- ठीक पोजिशन में शिशु को स्तनपान कराना चाहिए। बेड पर लेटकर दूध पिलाने के बजाय, कुर्सी पर बिल्कुल सीधे बैठ कर फीड कराना चाहिए। आगे झुकने के बजाय कुर्सी से पूरी तरह टेक लगाकर बैठना चाहिए। बच्चे को बाहों में उठाकर ब्रेस्ट लेवल तक लाकर फीड कराना चाहिए।

4-लेटकर दूध पिलाते वक्त तकिए को बच्चे के सिर के नीचे रख कर गर्दन को सपोर्ट दें। ध्यान रखें कि फीड कराते हुए बच्चे की नाक ब्रेस्ट से ना दबे। इससे उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।

5-नवजात शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग कराने में 2-3 घंटे और थोड़े बड़े बच्चों को 3-4 घंटे से ज्यादा का गैप नहीं रखना चाहिए। यहां तक कि अगर बच्चा सो रहा हो, तो उसे उठा कर फीड कराना ही बेहतर है।

6-कोशिश करें कि हर फीड के दौरान शिशु को दोनों ब्रेस्ट से फीड कराएं। फीड कराने से पहले गर्म पानी से भीगे टॉवल या रूमाल से अपनी ब्रेस्ट और ब्रेस्ट-निप्पल साफ करें। इससे एक तो शिशु को किसी तरह के इंफेक्शन का खतरा नहीं रहेगा। दूसरे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने से ब्रेस्ट मिल्क का फ्लो अच्छा होगा। फीड कराने के बाद भी गीले कपड़े से ब्रेस्ट को पोंछ लें।

7-अगर नवजात शिशु हेल्थ प्रॉब्लम की वजह से हॉस्पिटल में एडमिट है और ब्रेस्टफीडिंग के लिए मां तक नहीं लाया जा सकता। तो मां को ब्रेस्ट पंप की मदद से ब्रेस्टमिल्क निकालकर शिशु को फीड कराना चाहिए। जरूरत हो तो ब्रेस्टमिल्क को 8-10 घंटे के लिए स्टोर भी किया जा सकता है।

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