प्यारी सी अनुभूति होती हैं बेटियां... मां लक्ष्मी का रूप होती हैं बेटियां, Daughters Day पर जानिए आपसे क्या चाहती हैं बेटियां

Daughters Day 2022: बेटी चाहे ससुराल चली जाए, वह कभी अपने मां-बाप से दूर नहीं होती। उसकी मधुर स्मृमियां बाबुल के आंगन में बसी रहती हैं, अपने मां-बाप के इर्द-गिर्द बने रहने का अहसास बना रहता है। सच में बेटियां कुदरत की नेमत होती हैं। एक फूल पूरी बगिया को महका देता है (International Daughters Day 2022) और एक बेटी मां-बाप के पूरे जीवन में बहार ला देती है। उसकी नन्ही हथेलियों के स्पर्श में आत्मीयता घुली होती है। उसके आलिंगन का प्रभाव जादुई और अद्भुत होता है। ऐसी बेटी पर मां-बाप अपना पूरा जीवन न्यौछावर (Happy Daughters Day) कर देते हैं।
1. दुख-दर्द समझती हैं बेटियां: बेटियां मां-बाप के दुख-दर्द को शिद्दत से महसूस करती हैं। कोख में गर्भनाल काटकर बेटी को मां के शरीर से जरूर अलग कर दिया जाता है, लेकिन मां-बेटी के हृदय का नाल सदैव जुड़ा रहता है। कौन-सी चीज मां को पसंद है, कौन-सी नहीं, ये बेटियों से अधिक भला कौन जानता है। उनकी छोटी-मोटी जरूरत और तकलीफ सबका ख्याल रखने वाली बेटियां असल में कुदरत की नेमत होती हैं। मां-बाप के एक बुलावे पर भागी चली आती हैं। उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए अपनी पीड़ा भूल जाती हैं।
2. मधुर स्मृतियां नहीं होने देतीं दूर: बेटियां एक मीठी-सी अनुभूति, स्मृति की तरह घर-आंगन में उपस्थित रहती हैं। जब तक मायके में रहती हैं, उनकी किलकारी से पूरा घर गुंजायमान रहता है, जब ससुराल चली जाती हैं तो उनकी स्मृतियों की मीठी अनुभूति मां-बाप को उसकी उपस्थिति का अहसास कराती हैं। पापा को याद आती है, बेटी की मीठी सी डांट, 'पापा आप फिर अपनी दवाई लेना भूल गए।', 'ज्यादा मीठा मत खाइए, आपका शुगर लेवल पहले से हाई है।' वहीं मम्मियां उनकी फिक्र में लिपटी फटकार याद कर आंसुओं में भीग जाती हैं, 'मम्मी इतना काम क्यों करती हैं। थोड़ा आराम भी कर लिया करिए।' और उम्रदराज हो रही मांओं को बेटियां अपनी नई आधुनिक सोच से थोड़ा जवान बनाए रखती हैं। 'मम्मी ये साड़ी पहनिए, ये नए ट्रेंड की है।', 'चलिए, आज आपको बाहर खाना खिला लाऊं। कभी तो काम से छुट्टी कर लिया करिए।' ऐसी बातें बेटी को अपनी मां से कभी दूर नहीं होने देतीं।
3. पीहर से गहरा लगाव: एक बेटी का मायके और मां-बाप से लगाव कितना गहरा होता है, इसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हमारे देश में प्रचलित लोक गीतों में मायके की ओर से चलने वाली हवाओं को स्पर्श कर बेटियों का हृदय शीतल हो जाता है। कोई उनके मायके के गांव का आ जाए तो वो उसे भी परिवार के सदस्य जैसा मान-सम्मान और स्नेह देती हैं। मायके की हर चीज को संजोकर रखती हैं। अपने परिवार की मान-मर्यादा के लिए किसी से भी लड़ जाती हैं। किसी हाल में मां-बाप का सिर शर्म से नहीं झुकने देतीं।
4. बदले समय में बेटियां: जब से बेटियां अपने पैरों पर खड़ी होने लगी हैं, तब से उनके पराए होने की कहावत भी गलत साबित होने लगी है। असल में अब बेटी ससुराल जाने के बाद भी स्वयं को अपने मायके का हिस्सा मानती है। जितनी जिम्मेदारी से वह अपने सास-ससुर की देखभाल करती है, उतनी ही जिम्मेदारी वह अपने मां-बाप के प्रति भी निभाती है। मां-बाप भी कहने लगे हैं कि जितना अधिकार उसे ससुराल में है, उतना मायके में भी है। कानूनी रूप से उन्हें पैतृक संपत्ति में हिस्से का अधिकार मिलने के बाद अब बेटियों के प्रति परिवार की सोच में बदलाव आया है। भाइयों को भी अहसास होने लगा है कि बहनें शादी के बाद पराई नहीं हो जातीं। असल में शादी के बाद वो दो परिवारों का हिस्सा हो जाती हैं।
5. क्या चाहती हैं बेटियां : बेटियां अपने परिवार के हर सदस्य की इच्छाओं का तो खूब ध्यान, मान रखती हैं, लेकिन आखिर एक बेटी हमसे क्या चाहती है, इसे हमें समझना चाहिए। बेटियां यही चाहती हैं कि जब तक मायके में रहें, उन्हें अपने भाइयों सा बराबरी का अधिकार मिले। लड़की होने के कारण उन्हें कमतर न समझा जाए। पढ़ाई-लिखाई और लालन-पालन में भेद न हो। और जब ससुराल चली जाएं तो हर तीज-त्यौहार पर मायके से बुलावा, स्नेह-दुलार, सम्मान मिलता रहे। उन्हें पराया न समझा जाए। मायके से मिलने वाला प्यार-सम्मान एक बेटी के लिए अनमोल उपहार होता है।
सरस्वती रमेश
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