रामायण से किस तरह जुड़े हैं छठ पूजा के तार? बिहार के मंदिर में मिलते हैं ये अद्भुत साक्ष्य

रामायण से किस तरह जुड़े हैं छठ पूजा के तार? बिहार के मंदिर में मिलते हैं ये अद्भुत साक्ष्य
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देवी सीता ने बिहार के इस गांव में की थी छठी मैया की पूजा, जानें क्या कहती है पौराणिक कथा?

Goddess Sita Performed Chhath Puja In Bihar: छठ महापर्व (Chhath Puja 2022) पूरे भारत (India) में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस त्योहार का सबसे ज्यादा असर बिहार (Bihar), झारखंड (Jharkhand) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में देखने के लिए मिलता है। देश के इन हिस्सों में छठ पर्व हिंदुओं (Hindu Festivals) के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। मान्यताओं के मुताबिक, बिहार (Bihar) में कई स्थानों पर छठ त्योहार का महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संबंध हैं और मुंगेर (Munger) उनमें से ही एक है। स्थानीय लोगों का मानना है कि पहली छठ पूजा मुंगेर में देवी सीता द्वारा की गई थी। माना जाता है कि देवी सीता (Goddess Sita) ने आनंद रामायण (Ramayana) के अनुसार मुंगेर जिले में गंगा नदी (Ganga River) के तट पर पहली छठ पूजा की थी। यह स्थल अब सीता चरण मंदिर (Sita Charan Temple) के नाम से जाना जाता है, गंगा नदी के अंदर एक विशाल पत्थर पर आज भी देवी सीता के पैरों (Foot Prints Of Devi Sita) के निशान मौजूद हैं।

देवी सीता ने की थी छठ पूजा (Chhath Puja) की शुरुआत?


बताते चलें कि शहर के मशहूर पंडित कौशल किशोर पाठक का दावा है कि आनंद रामायण के पेज 33 से 36 पर सीता चरण मंदिर और मुंगेर का जिक्र है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब भगवान राम वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आए, तो उन्होंने राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया। हालांकि, यज्ञ शुरू करने से पहले, ऋषि वाल्मीकि ने उन्हें बताया कि मुद्गल ऋषि की उपस्थिति के बिना यह यज्ञ विफल हो जाएगा। जिसके बाद भगवान राम देवी सीता के साथ मुद्गल ऋषि के आश्रम पहुंचे, जिन्होंने देवी सीता को भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा करने का सुझाव दिया।

ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए देवी सीता ने किया व्रत


आनंद रामायण के अनुसार, भगवान राम ने रावण को मारने का पाप माना था, जो कि ब्राह्मण था। इसलिए, अयोध्या के कुलगुरु वशिष्ठ मुनि ने एक ब्राह्मण को मारने के पाप से छुटकारा पाने के लिए राम-सीता को मुद्गल ऋषि के पास भेजा। ऐसा माना जाता है कि ऋषि मुद्गल और भगवान राम ने ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ किया, जबकि देवी सीता आश्रम में रहीं और उन्होंने उपवास रखा। उन्होंने सूर्य देव की पूजा के दौरान पश्चिम में डूबते सूर्य और पूर्व में उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। देवी सीता के पैरों के निशान अभी भी पश्चिम और पूर्व दिशाओं में मंदिर के गर्भगृह में पाए जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के प्रांगण में छठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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