Family Day 2022: कच्ची मिट्टी के समान होते हैं बच्चे, जिनका भविष्य बनाता है परिवार

Family Day 2022: एक परिवार (Family) अपने बीच पल रहे बच्चे को जो अपनापन, खुशी, सुकून और स्नेह की छांव देता है, वो सब उसे पूरी दुनिया में कहीं और नहीं मिल सकता। उसे मिलने वाले किसी तरह के दुख, नाकामी या हार की पीड़ा को परिवार कुछ पलों में मिटा देता है। उसे भीतर से मजबूत बनाता है। गिरता है, तो उसे उठाता भी है। भटक जाए तो सही राह पर लाने में मदद करता है। यानी, बच्चे को गढ़ने-संवारने में बड़ी भूमिका निभाता है परिवार।
तराशता है परिवार
बच्चे के जन्म लेने के बाद उसके पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा का कार्य परिवार में जिस कुशलता से होता है, वह कहीं और नहीं हो सकता। यह परिवार ही होता है, जो उस अनगढ़ बच्चे को जीवन मूल्यों और संस्कारों के सांचे में ढालता है। उसे भाषा के साथ भावों का पाठ पढ़ाता है। उसके मन में प्रेम, स्नेह, करुणा, ममता, दया, परोपकार जैसे गुणों के बीज बोता है। परिवार में मिले यही संस्कार आगे जाकर व्यक्ति के चरित्र निर्माण का आधार बनते हैं। किसी बच्चे की शुरुआती संवेदनाओं की जन्मस्थली भी परिवार ही होता है। परिवार ही हाड़-मांस के पुतले को एक संवेदनशील व्यक्तित्व के रूप में गढ़ता है, उसके नैसर्गिक गुणों को तराशता है, उसकी खामियों को मिटाता है। उस बच्चे को भविष्य का एक जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करता है।
जीवन की है पहली पाठशाला
बच्चा जब परिवार के सान्निध्य में पलता है, तो वह घर के बड़े बुजुर्गों को समस्याओं का समाधान खोजते देखता है। इससे वह मुश्किल समय में भी डटे रहना सीखता है। उसमें निडरता, साहस, धैर्य और कार्यकुशलता जैसे गुणों का जन्म होता है। इतना ही नहीं, समाज में उठने-बैठने, बात-व्यवहार का शिष्टाचार, बच्चा परिवार से ही सीखता है। रिश्तों के प्रति वफादारी, विश्वास, परिवार के सदस्यों के प्रति समर्पण किसी पाठ्यक्रम को पढ़कर नहीं सीखे जा सकते। अपने से बड़ों के प्रति आदर, सम्मान और सेवा के भाव बच्चे, अपनी मां, काकी को देखकर सीखता है तो दादा-दादी से मिलने वाले स्नेह, दुलार से बच्चे अपने से छोटों को प्यार करना सीखते हैं। इस तरह बच्चे के लिए किसी पाठशाला की तरह होता है परिवार।
मानसिक मजबूती
आज के दौर में लगभग हर क्षेत्र में बढ़ती प्रतियोगिता के चलते कोई अच्छा मुकाम पाना आसान नहीं है। इसके लिए शारीरिक से कहीं ज्यादा मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी हो गया है। ऐसे में किसी भी इंसान का थकना या हताश होना स्वाभाविक है। लेकिन ऐसी स्थिति में परिवार का संबल उसे हारने नहीं देता। परिवार में पलने वाला बच्चा, शुरू से ही अपनों का साथ पाने लगता है, जो उसे मानसिक रूप से कमजोर नहीं होने देता है। ऐसी प्रवृत्ति उसे भावी जीवन की चुनौतियों का सामना करना सिखाती हैं। कहने का सार यही है कि एक बच्चे के जीवन को संवारने और उसे खूबसूरत आकार देने में परिवार रूपी सांचे की अहम भूमिका होती है।
परिवार से दूर होते बच्चे
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जो परिवार कभी एक बच्चे की पूरी दुनिया हुआ करता था, वह सिमट कर सिर्फ माता-पिता तक ही रह गया है। एकल परिवारों ने ना सिर्फ बच्चे की दुनिया छोटी की है बल्कि उसके सीखने, समझने, सोचने, व्यवहार करने के दायरे को भी सिकोड़ दिया है। बच्चों को संस्कारों की जो शिक्षा कभी बड़े-बुजुर्ग दिया करते थे, वे परिवारों से नदारद होने लगे हैं। एकल परिवार में भी माता-पिता के वर्किंग होने की स्थिति में बच्चे नौकर या क्रेच के भरोसे पलने लगे हैं। अपनों के अभाव में बच्चे गैजेट्स और तकनीकी माध्यमों को अपना साथी बना रहे हैं और उसके लती बनने लगे हैं। ऐसे में उन्हें कैसे संस्कार और कौन-से जीवन के पाठ सीखने को मिलते होंगे, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। हालांकि कोरोना महामारी से जुड़े तमाम दुखद पहलुओं के साथ यह सुखद पहलू भी सामने आया है कि फिर से परिवार के महत्व को लोगों ने समझना शुरू किया है। अब तो पश्चिमी देशों ने भी परिवार की महत्ता को समझा है, उसकी जरूरत को स्वीकारा है। जाहिर है, यह प्रवृत्ति बढ़ेगी तो उसका लाभ हमारे नौनिहालों को मिलेगा।
लेखक- सरस्वती रमेश (Saraswati Ramesh)
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