Relationship Tips: बिखरते रिश्तों को सहेजने में हो रहे नाकाम तो करें यह काम, टूट जाएगी दूरियों की दीवार

Relationship Tips: बिखरते रिश्तों को सहेजने में हो रहे नाकाम तो करें यह काम, टूट जाएगी दूरियों की दीवार
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बदलते समय के साथ रिश्ते (Relationship Tips) भी बदल रहे हैं, फिर चाहे वह बच्चे हों, युवा हों या फिर उम्रदराज लोग, यह बदलाव हर आयु के लोगों में साफ दिखाई देता है।

बदलते समय के साथ रिश्ते (Relationship Tips) भी बदल रहे हैं, फिर चाहे वह बच्चे हों, युवा हों या फिर उम्रदराज लोग, यह बदलाव हर आयु के लोगों में साफ दिखाई देता है। अब जमाना डिजिटल (Digital) होता जा रहा है, लोगों का कम्युनिकेट (Communication) करने का तरीका बदल रहा है, रिश्तों के जीने के ढंग बदलने के पीछे यह भी बड़ा कारण है। इस नए दौर में इन बदलावों को समझते, स्वीकारते हुए हमें अपने रिश्तों को सहेजना और अच्छे से चलाना आना चाहिए, तभी हम अपने हर रिश्ते को प्यार और खूबसूरती से जी पाएंगे।

हमारे रिश्ते जीवन भर साथ चलते हैं। गुजरते समय और परिस्थितियों के मुताबिक बदलते भी हैं। कई बार हम पारिवारिक संबंधों की तुलना दोस्तों, सहकर्मियों और आस-पड़ोसियों के साथ बने रिश्तों से करने लगते हैं। इन रिश्तों के जुड़ाव को बेहतर और सहज मानने लगते हैं, जबकि इनके साथ जुड़ाव के बावजूद भी एक दूरी बनी रहती है। यही कारण है, उनके व्यवहार (Behavior) या सोच (Thinking) में आए बदलाव उतने स्पष्ट नहीं दिखते, जितने कि करीबी रिश्तों (Close Relation) में नजर आते हैं। लाजिमी भी है, क्योंकि रिश्ते बरसों-बरस पीढ़ियों तक साथ चलते हैं। ऐसे में संबंधों की सहज निबाह के लिए वक्त और जीवन की वास्तविकता के मोर्चे पर आए बदलावों को सहजता से लेना सीखें। इससे आपके रिश्ते टिके रहेंगे।

बदल चुका है बहुत कुछ

साइंस फोकस में छपे एक लेख के मुताबिक, इंसान पहले की अपेक्षा रिश्तों के जुड़ाव को कम ही जी पा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब जीवन से बहुत कुछ नया जुड़ गया है। आज के डिजिटल दौर में कम्युनिकेट (Communication) करने के साधनों से लेकर, काम-काजी दुनिया तक बहुत कुछ बदला है। जिसका असर रिश्तों के ताने-बाने पर भी पड़ रहा है। आज हर कोई व्यस्त है। बुजुर्गों की सोच से लेकर, किशोरों के व्यवहार तक, सब कुछ नया रंग-ढंग लिए है। कहीं बेवजह की औपचारिकताएं जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं तो कहीं हद से ज्यादा खुलेपन को जीया जा रहा है, ऐसे में बच्चे हों या बड़े, रिश्तों के संसार में हर पल आसानी से नहीं जीया जा सकता।

अपनेपन की दुनिया को अपने मन के मुताबिक ही देखा-समझा जाना नामुमकिन (Impossible) है। हालांकि रिश्तों में समय और स्थिति के मुताबिक अपने विचार रखना भी जरूरी है, लेकिन यह उलझनें बढ़ाने वाले नहीं होने चाहिए। रिश्तों-नातों को सहेजने के लिए अपनों को जज करने के बजाय बदलाव को सहजता से स्वीकारते हुए सलाह या समझाइश दी जाए। नए बच्चे, नई सोच के साथ बड़े हो रहे हैं। किसी संबंधी के आर्थिक हालात उसका सामाजिक (Social) रुतबा भी बदलते हैं। बहू-बेटियां समान व्यवहार और सम्मान चाहती हैं। इसलिए सहज रहते हुए ऐसी तमाम बातों और बदलते हालातों के लिए थोड़ा मन बड़ा कीजिए और अपने आपको बदलिए। रिश्तों को सहेजने के लिए यही बेहतर है।

ऊर्जा को सही दिशा दीजिए

रिश्तों की दुनिया एक पाठशाला (Class) है। बहुत कुछ सिखाती-समझाती, हंसाती-रुलाती है। अनगिनत उतार-चढ़ावों के बावजूद साथ-साथ चलती है। ऐसे में इस जुड़ाव को जीते हुए जद्दोजहद का हिस्से में आना भी स्वाभाविक है। बस, रिश्तों में रचे-बसे जीवन के रंगों से मिलते-मिलाते आगे बढ़ते रहना ही सही राह है। लेखिका शॉना निक्वेस्ट कहती हैं, 'जब सब सही हो तो जिंदगी को शुक्रिया कहें, उसकी खुशी मनाएं। जब कुछ बुरा हो जाए, तब भी जिंदगी का आभार व्यक्त करें और सबक सीखकर आगे बढ़ जाएं।' ऐसा करना हर उम्र के लोगों के लिए अपनी ऊर्जा (Energy) को सही दिशा देने जैसा है। रिश्तों को बांधने के बजाय सहजता से साधने हुए कुछ करते-सीखते रहिए। बेहद करीबी संबंध हों या दूर के रिश्ते-नाते, उनके हिस्से का स्पेस और सम्मान जरूर दें। स्वस्थ और सफल रिश्तों के लिए थोड़ी दूरी भी जरूरी है। कई बार बनती-बिगड़ती परिस्थितियों में थोड़ा-सा सब्र बहुत सी समस्याएं आसान कर देता है। उलझाऊ हालातों में अपनी ऊर्जा को सही दिशा देने के मोर्चे पर डटे रहना रिश्तों की उलझनों को और बढ़ने से रोकने जैसा ही है।

सराहना-आलोचना को स्वीकारें

दूसरे क्या कहते हैं? इसकी परवाह करना जरूरी नहीं है, लेकिन सगे-संबंधियों से मिल रही समझाइश या सलाहों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी जुड़ाव को जीते-सींचते रिश्तों में तल्खी के बावजूद परवाह का भाव बना ही रहता है। जैसे घर के बुजुर्गों की हर रोक-टोक नई पीढ़ी को मात्र कंट्रोल करने के लिए नहीं होती। ठीक इसी तरह बच्चों की हर शिकायत भी आज के जमाने के नखरे मानकर नजर-अंदाज नहीं की जा सकती। ससुराल (In law's house) में कही गई हर बात में कमी निकालना और मायके में कमीबेशी से परे स्नेह मिलना, शांत मन से समझने की बातें हैं। कहा भी जाता है कि 'जब आलोचना की जाए, तो स्रोत पर विचार करें।' यानी आपको अपनी कमी या गलती से मिलवाने वाला कौन है? इस पर विचार जरूर करें। यह विचारशीलता अपनों से मिली आलोचना का पॉजिटिव पहलू समझने वाली होती है। ठीक इसी तरह संबंधों में मिली सराहना को लेकर भी अहंकारी न बन जाएं। याद रहे कि रिश्तों में हर उम्र के लोगों की मिली सराहना या आलोचना को समझना जरूरी है। उनके फीडबैक (Feedback) को दिल से समझने या स्वीकारने की दरकार होती है। यही रिश्तों को जीने का खूबसूरत तरीका है।

नई सोच के साथ रिश्तों को सहेजने की दरकार

कोविड काल (Coronavirus) के बाद पटरी पर लौट आई जिंदगी में रिश्तों को थोड़ी और संवेदनशीलता (Sensitivity) से समझने की दरकार है। दूरियों और दर्दनाक हालातों से उबरने के बाद अब संबंधों में रिफ्रेश बटन (Refresh Button)इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। अनिश्चितता और अकेलेपन को देख-जी लेने के बाद अब नए सिरे, नई सोच के साथ रिश्तों को सहेजने और जीने की कोशिश की जानी चाहिए। जीवन में जज्बात और जुड़ाव का सबसे प्यारा हिस्सा कहे जाने वाले रिश्ते-नाते जीवन की बुनियाद होते हैं। इनके साथ-स्नेह के रंगों से हालातों के हर मौसम में खुशियों का इंद्रधनुष (Rainbow) बनता है।

डॉ. मोनिका शर्म

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