Ganesh Chaturthi 2022: 'जन आंदोलन' की तरह उभरा था गणेशोत्सव? जानिए कैसे और किसने की इस पर्व की शुरुआत

Ganesh Chaturthi 2022: जन आंदोलन की तरह उभरा था गणेशोत्सव?   जानिए कैसे और किसने की इस पर्व की शुरुआत
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गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) के पावन अवसर पर जानिए कब और कैसे हुई 'गणेशोत्सव' मनाने की शुरुआत?

Ganesh Chaturthi 2022: गणेशोत्सव हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से अनंत चौदस तक मनाया जाता है, जबकि महाराष्ट्र सबसे बड़ी गणेश पूजाओं की मेजबानी करने के लिए जाना जाता है, यह त्यौहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। गणेशोत्सव के दौरान बप्पा के भक्त उन्हें घर लाते हैं, दस दिनों तक विशेष पूजा करते हैं और उसके बाद 11वें दिन गणपति को विसर्जित किया जाता है। गणेश उत्सव में बड़े पैमाने पर पूजा की जाती है जहां भक्त एक साथ त्योहार मनाने के लिए पंडालों और मंदिरों में इकट्ठा होते हैं। गणेश चतुर्थी का त्यौहार 31 अगस्त यानी आज से शुरू हुआ है। हम सब गणेश उत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गणेशचतुर्थी मनाने कि शुरुआत आखिर कहां से हुई थी? आइये गणेश चतुर्थी (How and When Ganesh Chaturthi Celebration Started) के इस पावन अवसर पर जानते हैं गणेशोत्सव से जुड़ी वो कहानी, जिससे शायद आप अनजान होंगे।

जानिए कैसे हुई गणेश उत्सव की शुरुआत?

ऐसा कहा जाता है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gngadhar Started Ganesh Utsav) ने गणेशोत्सव की नींव रखी थी। 1890 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक अक्सर सोचते थे कि आम लोगों को एकजुट कैसे किया जाए, तब उनके दिमाग में यह सुझाव आया की उत्सव के बहाने से लोगों को साथ लाया जा सकता है। महाराष्ट्र में पेशवाओं ने लंबे समय से गणपति की पूजा करने की परंपरा शुरू की थी, तिलक ने सोचा कि क्यों न अपने-अपने घर की जगह सार्वजनिक स्थान पर गणेशोत्सव मनाया जाए? इस तरह लोग एक साथ आएंगे और एकता की भावना को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए 1893 में इस गणेश उत्सव की नींव रखी गई, तिलक को इसका श्रेय दिया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि बाल गंगाधर तिलक ने ही त्योहार के ग्यारवें दिन विशाल गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन की परंपरा शुरू की। इसलिए सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने का श्रेय पूरी तरह से बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है।



गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने का हुआ था कड़ा विरोध

गणेशोत्सव को 'सार्वजनिक' पूजा के रूप में शुरू करने के लिए बाल गंगाधर तिलक को काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन उन्हें लाला लाजपत राय, बिपिनचंद्र पाल, अरबिंदो घोष, राजनारायण बोस और अश्विनी कुमार दत्त का समर्थन मिला और गणेशोत्सव की शुरुआत हुई। बता दें कि इस कदम से तिलक की लोकप्रियता भी बहुत ज्यादा बढ़ी थी, 20वीं सदी में गणेशोत्सव और भी ज्यादा लोकप्रिय हो गया।

स्वतंत्रता संग्राम में 'जन आंदोलन' बना गणेशोत्सव

कहते हैं कि जैसे-जैसे लोग एक साथ आने लगे, गणेशोत्सव स्वतंत्रता का एक बड़ा जन आंदोलन (Ganesh Utsav Became Freedom Movement) बन गया। खासकर वर्धा, नागपुर और अमरावती जैसे महाराष्ट्र के शहरों में यह आंदोलन तेजी से फैलने लगाए। अंग्रेज़ गणेशोत्सव के सार्वजनिक उत्सव से भयभीत थे और रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट ने इस तथ्य के बारे में भी गंभीर चिंता व्यक्त की थी। गणेशोत्सव के दौरान युवाओं के समूहों ने सड़कों पर ब्रिटिश शासन का विरोध किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गाने गाए। गणेशोत्सव ने अंग्रेजों में काफी हलचल मचा दी और ब्रिटिश राज को अस्त-व्यस्त कर दिया था।

गणेशोत्सव ने समय के साथ हासिल की लोकप्रियता

समय बीतने के साथ गणेशोत्सव बेहद लोकप्रिय हो गया, आज पूरे देश में यह उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अलावा, गणेश चतुर्थी मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित सभी राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान गणेश की पूजा मंगलमूर्ति के रूप में की जाती है। जाति की बेड़ियों को तोड़कर सभी लोग भगवान की पूजा में भाग लेते हैं।

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