हेल्दी किडनी के लिए रेग्युलर कराएं चेकअप

हालिया आई ग्लोबल बर्डन डिजीज (जीबीडी) 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, विश्वस्तर पर बढ़ती मृत्युदर का 5वां सबसे बड़ा कारण किडनी की बीमारी है। किडनी की बीमारी के निदान और इलाज में देरी करने पर मरीज की हालत गंभीर होती जाती है, जिसके बाद किडनी फेल तक हो सकती है। समय पर जांच के साथ बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है। हालांकि अकसर लोग अपने ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल स्तर की जांच समय-समय पर कराते रहते हैं, लेकिन किडनी की जांच पर ध्यान नहीं देते हैं, जिसके कारण कई बार बीमारी की पहचान करने में देर हो जाती है।
इन्हें है ज्यादा रिस्क
किडनी की बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन जो लोग उच्च रक्तचाप और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, किडनी डिजीज का पारिवारिक इतिहास है या जिनकी उम्र 60 से अधिक है उनमें इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 भी किडनी की कार्यप्रणाली को प्रभावित करके किडनी फेलियर का कारण बन रही है। इसलिए किडनी की देखभाल करना बेहद जरूरी है।
प्रमुख लक्षण
किडनी संबंधी बीमारियों में निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं।
पैरों में सूजन:जब किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है तो शरीर से सोडियम बाहर नहीं निकल पाता है, जिससे पैरों में सूजन आ जाती है।
थकान, भूख की कमी: शरीर में जहरीले और बेकार पदार्थों के जमा होने के कारण किडनी और अधिक कमजोर पड़ने लगती है। जिससे मरीज जल्दी थकने लगता है और भूख भी नहीं लगती है।
पेशाब में गड़बड़ी: रात में बार-बार पेशाब लगना, पेशाब में अत्यधिक बुलबुले या खून की बूंदें या मवाद (पस) आदि किडनी में गड़बड़ी को दर्शाता है।
लो एचबी, रूखी त्वचा और खुजली: किडनी शरीर से बेकार और अतिरिक्त तरल पदार्थों को बाहर करने में सहायक होती हैं। ऐसा न होने पर लो एचबी, रूखी त्वचा और खुजली होना एडवांस किडनी डिजीज के लक्षण हो सकते हैं।
बच्चों में किडनी प्रॉब्लम: अकसर लोग अपने बच्चों के स्वास्थ्य को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चों को ऐसी बीमारियां नहीं हो सकती हैं। किडनी की बीमारी को आज भी लोग बुजुर्गों की बीमारी समझते हैं। कोई भी बच्चा एक्यूट किडनी इंजरी, क्रोनिक किडनी डिजीज जैसी बीमारियों से जन्म से ही ग्रस्त हो सकता है इसलिए उसके सफल इलाज के लिए सही समय पर बीमारी की पहचान होना जरूरी है। बच्चों में नजर आने वाले लक्षणों में वजन न बढ़ना, धीमा विकास, बॉडी पेन और पेशाब की शिकायत जल्दी-जल्दी होना या धीमी गति से पेशाब होना, चेहरे, पैर, टखनों आदि में सुबह उठने पर सूजन होना, पेशाब का रंग बदलना, पेट के निचले हिस्से में दर्द की बार-बार शिकायत, पेशाब की हुई जगह पर चींटियों का दिखना शामिल हैं।
बचाव के उपाय
किडनी की बीमारी को साइलेंट किलर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शुरुआती चरण में इसके कोई लक्षण नहीं नजर आते हैं। इसलिए बच्चों और वयस्कों के लिए किडनी से संबंधित जांच साल में कम से कम एक बार कराना जरूरी है। यदि आपको डायबिटीज, उच्च रक्तचाप या मोटापा है या आपकी उम्र 60 साल से अधिक है तो आपको हर तीन महीने में जांच करानी चाहिए।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और जरूरत पड़ने पर अपनी डाइट में भी बदलाव करें। पेय पदार्थों, विशेषकर पानी का अधिक से अधिक सेवन करें, जिससे किडनियां सोडियम, यूरिया और जहरीले पदार्थों को शरीर से आसानी से बाहर कर सकें। सोडियम या नमक का कम से कम सेवन करें।
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