श्रीकृष्ण ने कुछ इस तरह तोड़ा देवराज इंद्र का अहंकार, यहां पढ़िए क्यों मनाते हैं Govardhan का त्योहार

श्रीकृष्ण ने कुछ इस तरह तोड़ा देवराज इंद्र का अहंकार, यहां पढ़िए क्यों मनाते हैं Govardhan का त्योहार
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जानिए क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजा का त्योहार, यहां पढ़िए पौराणिक कथा।

Govardhan Puja Ki Katha In Hindi: आज से दिवाली उत्सव की शुरुआत हो चुकी है, आमतौर पर दिवाली का त्योहार 5 दिवसीय होता है। लेकिन इस बार यह त्योहार 6 दिन तक चलेगा, इस साल के दिवाली उत्सव (Diwali) में अलग यह होगा कि दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला त्योहार गोवेर्धन इस साल दिवाली के तीसरे दिन सेलिब्रेट किया जाएगा। बता दें कि इस तरह की तिथियों की हेरफेर पूरे 27 साल बाद देखने को मिली है, जब दिवाली 24 अक्टूबर की है और गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) 26 अक्टूबर को होगी। ऐसा सूर्य ग्रहण के कारण हो रहा है, दिवाली के अगले दिन सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) पड़ने के कारण गोवर्धन पूजा की तिथि को आगे बढ़ा दिया गया है।

गोवर्धन पूजा की कथा (Story of Govardhan Puja)

यहां सोचने वाली बात यह है कि हर साल दिवाली के अगले दिन ही गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है? दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है, जिसे अन्नकूट पर्व भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की पूजा होती है, गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) करने के पीछे भी बहुत बड़ा पौराणिक इतिहास है। मान्यताओं के मुताबिक एक बार देवों के राजा इंद्र (Lord Indra) ने ब्रज गांव में बहुत तेज बारिश शुरू कर दी थी, जिस कारण से गांव में बाढ़ आ गई और सभी ब्रजवासियों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। यह सब देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने सभी ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था।

पारंपरिक कथा के अनुसार पहले ब्रजवासी (Brijwasi) इंद्रदेव की ही पूजा करने वाले थे लेकिन कृष्ण भगवान के कहने पर उन्होंने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का फैसला लिया, जिससे रुष्ट होकर इंद्रदेव ने ब्रज में मूसलाधार बारिश कर दी और भगवान कृष्ण ने गांव वालों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया, 7 दिनों तक बारिश नहीं रुकी और भगवान अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठाकर खड़े रहे। अंत में इंद्रदेव को पता चला कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है, तब उन्होंने बारिश रोकी और कृष्ण जी से अपनी मूर्खता के लिए माफी मांगी। इस तरह देवराज इंद्र का घमंड चकना चूर हो गया था। तभी से श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू हो गई, जिसे गोवर्धन पूजा कहा जाता है।

गोवर्धन पूजा में अन्नकूट का है विशेष महत्व (Annakoot has special importance in Govardhan Puja)

दिवाली (Diwali) के अगले दिन गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) करने का विशेष महत्व होता है और इस पूजा को करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। गोवर्धन पूजा के लिए घर के आंगन में या फिर छत पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की आकृति बनाई जाती है, इस पूजा में गाय के गोबर का इस्तेमाल करने के पीछे भी अपना अलग महत्व है। ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण गुवाले थे इसलिए उन्हें गायों और बछड़ों से बहुत लगाव था। साथ ही हिन्दू धर्म में गोबर को बहुत ही पवित्र माना जाता है, इसलिए भी इस पूजा में गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही गोवर्धन पूजा में 56 भोग (56 Bhog) का भी बहुत महत्व होता है, जिसे अन्नकूट (Annakoot) कहते हैं।

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