Happy Women's Day: पक्षपात-लिंग भेद सोच को करना होगा खत्म तभी रचेगा सुनहरा भविष्य

Happy Women's Day: महिलाओं (Women) के जीवन में बदलाव लाने की प्रक्रिया लंबा समय लेती है। आज की तैयारी ही भविष्य की बेहतरी की बुनियाद बनती है। दरअसल, महिलाओं की जिंदगी (Women's Life) से जुड़े परिवर्तन कई पहलुओं पर आश्रित होते हैं। सामाजिक-पारिवारिक और व्यक्तिगत मोर्चे पर अनगिनत बाधाएं, इस बदलाव में आड़े आती हैं। ऐसे में लैंगिक समानता (Gender Equality) के फ्रंट पर मानसिकता बदलना, बहुत से बदलावों की बुनियाद बन सकता है। यही वजह है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम (International Women's Day Theme) भी 'एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता' (Gender Equality Today for a Sustainable Tomorrow) रखी गई है। यह थीम सुनहरे सपनों को हकीकत बनाने और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बराबरी की नींव मजबूत करने के उद्देश्य से ही रखी गई है।
तैयार हो नई सोच की नींव
देखा जाए तो सोच की दिशा ना सिर्फ समाज में बदलाव के बुनियादी हालात तैयार करती है, घर-परिवार से लेकर कार्यक्षेत्र तक में स्त्री जीवन में आ रहे बदलावों को लेकर एक सहज स्वीकार्यता भी लाती है। सड़क और बाजार से लेकर अपने घर-आंगन तक, एक राय बनाने का यह भाव महिलाओं के प्रति अपनाए जाने वाले व्यवहार में भी झलकता है। फिर बात चाहे घरेलू हिंसा से जुड़ी दोयम दर्जे की सोच की हो या कार्यस्थल पर होने वाले शोषण और दुर्व्यवहार की। विचार ही व्यवहार में तब्दील होकर महिलाओं के प्रति असंवेदनशील माहौल बनाते हैं। ऐसे में जेंडर इक्वेलिटी की मानसिकता हर देश, हर समाज में नई सोच की नींव तैयार कर सकता है।
बरकरार है भेदपूर्ण सोच
गौर करने वाली बात है कि हमारे देश में पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था की धुरी होने के बावजूद महिलाएं ही असमानता की सोच की सबसे ज्यादा शिकार बनती रही हैं। इस भेदभाव का ही नतीजा है कि उच्च शिक्षित, सजग और काम-काजी महिलाओं के बढ़ते आंकड़े भी हमारे परिवेश को नहीं बदल पाए हैं। लैंगिक भेदभाव की सोच महिलाओं के लिए असुरक्षा और असम्मानजनक परिवेश की अहम वजह बनी हुई है। लैंगिक समानता की राह में सबसे बड़ी बाधा यह है कि आज भी महिलाओं के प्रति एक तयशुदा सोच जड़ें जमाए हुए है। आधी आबादी को एक खास तरह के खांचे में फिट करके ही देखा जाता है। शिक्षित और आत्मनिर्भर होने के बावजूद महिलाओं से एक नियत परिधि में ही सिमटे रहने की उम्मीद की जाती है।
चिंताजनक हैं आंकड़े
कुछ समय पहले आई यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक आज भी दुनिया भर में लगभग 90 फीसदी महिलाएं और पुरुष, महिलाओं के प्रति किसी ना किसी तरह का पूर्वाग्रह रखते हैं। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने दुनिया की 80 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले 75 देशों की स्टडी के बाद तैयार की है। इस स्टडी में सामने आया है कि आज हाईटेक दौर में भी 10 में से 9 लोग, महिलाओं के प्रति एक बंधी-बधाई सोच की लीक पर ही चल रहे हैं। भारतीय समाज के परंपरागत ढांचे में तो ऐसी सोच और भी गहराई से समाई है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के आंकड़े और घर-दफ्तर में उन्हें कमतर महसूस करवाने के वाकये, इसी सोच की बानगी हैं। ऐसे में आने वाले कल में महिलाओं की मजबूती के लिए आज लैंगिक समानता के मोर्चे पर गंभीरता से सोचा जाना वाकई बहुत जरूरी है।
दिखते हैं कई दुष्प्रभाव
गौरतलब है कि आधी आबादी के साथ होने वाला भेदभाव भरा व्यवहार, उनके जीवन से बहुत कुछ कम हो जाने की बड़ी वजह बनता है। परिवार से लेकर परिवेश तक, लोगों का नजरिया बदले बिना मान-सम्मान से लेकर सहज जीवन जीने की स्वतंत्रता तक, कुछ भी महिलाओं के हिस्से नहीं आ सकता। उनके प्रति बराबरी के दर्जे को लेकर समाज की सोच में बदलाव आए बिना बदलते हालातों में नई तकलीफें उनके हिस्से आती रहेंगी। इसकी वजह यह है कि आम लोगों की सोच ही सामाजिक-पारिवारिक संस्कृति तैयार करती है। ऐसी संस्कृति में समानता का भाव ही नदारद होगा तो वहां की आधी आबादी की स्थितियां नहीं बदल सकतीं। यही वजह है कि कई क्षेत्रों में आज भी लैंगिक असमानता कायम है। खासकर नेतृत्वकारी और निर्णायक भूमिकाओं में स्त्रियों की खूब अनदेखी की जाती है। सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाओं के आकड़े बढ़ने के बाद भी उपेक्षा, अपमान और असुरक्षा की स्थितियों की अहम वजह सोच का ना बदलना ही है। इतना ही नहीं जेंडर इनेक्वेलिटी के कारण ही कई कुरीतियों और रूढ़ियों का बोझ भी औरतों के सिर पर लदा है। रहने-जीने और आगे बढ़ने के माहौल को दमघोंटू बना रहा है। यह गैर बराबरी ही तो है कि कई परिवारों में वर्किंग वुमेंस अपनी कमाई भी खुद पर खर्च नहीं कर पातीं। घर से जुड़े वित्तीय फैसलों में आज भी उनकी भूमिका दोयम दर्जे की ही है। भ्रूणहत्या, दहेज की मांग और डोमेस्टिक वॉयलेंस जैसे दंश आधी आबादी को मानवीय मोर्चे पर समान ना समझने का ही नतीजा हैं।
बेहतर भविष्य की आशाएं
यह सच है कि हालिया बरसों में महिलाओं के जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर बदलाव आया है। कई मोर्चों पर सकारात्मक सोच की बुनियाद बन रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी मोर्चे पर आधी आबादी के हालात भी सुधरे हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस साल समानता की सोच से जुड़े विचार को बल देना, आने वाले कल में बदलाव की उम्मीदों को और पुख्ता करने जैसा है। महिलाओं के भावी जीवन में बेहतरी की राह सुझाता है। महिलाओं को हाशिए पर धकेल दिए जाने के बजाय हर भूमिका में सहज स्वीकार्यता मिलने का परिवेश बनने का भरोसा जगाता है। कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में लैंगिक समानता के प्रयासों को समर्पित महिला दिवस का यह विषय हर पहलू में बदलाव ला सकता है। इससे भविष्य में आधी आबादी की सुनहरी तस्वीर सामने आने की उम्मीद बंधती है।
लेखक- डॉ. मोनिका शर्मा (Dr. Monika Sharma)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS