कई रोगों में कारगर बहेड़ा

बहेड़ा, त्रिफला चूर्ण का एक घटक है। हरड़, बहेड़ा और आंवला का मिश्रित चूर्ण ही त्रिफला चूर्ण कहलाता है। गुणों का भंडार बहेड़ा, प्रांतीय भाषाओं में अन्य नामों से जाना जाता है। जैसे हल्ला, पिनास, भैरा, बलेला, भूतवासा, विमितक, अक्ष, बौरी, बथड़ा और बहिरा।
-मुंह से ज्यादा लार बहती हो तो एक से डेढ़ ग्राम बहेड़ा के चूर्ण में शक्कर (चीनी नहीं) मिलाकर कुछ दिन खाने से लार बहने की परेशानी ठीक होती है।
-दमा रोगी बहेड़ा और हरड़ की छाल बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसके लगभग एक चम्मच को गर्म पानी से लेना हितकारी है।
-हाथ-पांवों की जलन के लिए इसके बीज पानी के साथ पीस कर हाथ पैरों पर लगाने से लाभ होता है।
-अपच, अजीर्ण की परेशानी में इसके चूर्ण की लगभग तीन ग्राम की मात्रा को खाने के बाद दिन में दो बार लेना लाभकारी है। इससे आमाशय प्रबल होता है, पाचन क्रिया तेज होती है।
-सीने के दर्द में बहेड़ा जलाकर सूखा या शहद के साथ लेना लाभ्कारी है।
-हृदय की छड़कन सामान्य से तेज हो तो इसके पेड़ की छाल का चूर्ण दो से तीन चुटकी हर दिन गाय के घी या गाय के दूध से सेवन करने से धड़कन सामान्य होती है।
-बंद गांठ पर अरंडी के तेल में बहेड़ा का छिलका भून कर सिरके के साथ पीस कर गांठ पर लेप लगाना हितकर है।
-गुरदे की पथरी में लाभ के लिए बहेड़ा के फल के मज्जा के चूर्ण के तीन ग्राम मात्रा को लगभग एक चम्मच शहद में मिला कर दिन में दो बार लेने से लाभ होता है।
-खांसी के लिए इसका छिलका मुंह में डालकर चूसने से लाभ होता है।
-पेशाब में जलन हो तो इसके चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम लेना हितकर है।
शक्ति वर्धन के लिए इसका चूर्ण लगभग तीन ग्राम की मात्रा में है ग्राम मिला इसी मात्रा में दिन में दो बार कोसे पानी या दूध से पिना लाभकारी है।
बहेड़ा के अधिक मात्रा में लेने से वमन (उल्टी होने की संभावना रहती है।)
बहेड़ा की छाल, फल, सूखे फल के बीज की मज्जा का इस्तेमाल होता है। बहेड़ा की मात्रा तीन से पांच ग्राम शहद, गर्म पानी और दूध लेना लाभकारी है।
यहां बताए गए सभी उपाय, उपचार सामान्य हैं लेकिन प्रयोग करने से पहले अनुभवी वैद्य से सलाह अवश्य लें।
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