बच्चों के लिए हार्मफुल लिमिट से ज्यादा एडेड शुगर

हम सभी रोजाना काफी मात्रा में शुगरयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। ये नेचुरल या एडेड शुगर के रूप में हो सकता है। जरूरत से ज्यादा एडेड शुगर स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है और कई बीमारियों की वजह बनता है। खासतौर पर बच्चों और टीनएजर्स में इसकी वजह से मोटापा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, दिल की बीमारियां होने की आशंका बढ़ती है।
एडेड शुगर की निर्धारित मात्रा:अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के हिसाब से 2 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए एडेड शुगर के बारे में कोई गाइडलाइन नहीं है, क्योंकि 2 साल से कम उम्र के बच्चे ज्यादातर मां का दूध पीते हैं। उन्हें किसी भी रूप में एडेड शुगर नहीं दी जानी चाहिए। 2 से 6 साल के बच्चे को 19 ग्राम या 4 से 5 छोटे चम्मच, 7-10 साल के बच्चों को 24 ग्राम या 5 छोटे चम्मच और 11-18 साल के बच्चों को 25-30 ग्राम या 5 से 6 छोटे चम्मच एडेड शुगर दी जा सकती है।
ज्यादा एडेड शुगर लेने के नुकसान: डब्ल्यूएचओ के हिसाब से एडेड शुगर सीमित मात्रा में ही लेनी चाहिए। नेचुरल शुगर से इतर एडेड शुगर वाले खाद्य पदार्थों से बच्चे रोजाना दो से तीन गुना ज्यादा शुगर का सेवन कर रहे हैं। हालांकि छोटे बच्चों को ग्रोथ के लिए ज्यादा कैलोरी की जरूरत होती है, लेकिन कैलोरी की आपूर्ति चीनी से करना ठीक नहीं है। इससे कई तरह के नुकसान होते हैं।
-ज्यादा मात्रा में ली गई शुगर फैट में बदलकर शरीर में जमा हो जाती है और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर बनाती है, जिससे आगे चलकर चाइल्डहुड ओबिसिटी, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
-ज्यादा मात्रा में चीनी देने से बच्चों के शरीर में डोपामाइन हार्मोन का स्राव होने लगता है, न्यूरोट्रांसमीटर एक्टिवेट हो जाता है, जो मूलतः खुशी का अहसास दिलाता है। बहुत छोटी उम्र में ही बच्चे का दिमाग इस तरह समझने लगता है कि उसे जब भी खुशी चाहिए, तो मीठी चीजें खाना जरूरी हैं।
-रिवॉर्ड के तौर पर चॉकलेट, कैंडी या दूसरी मीठी चीजें खिलाने से बच्चे का दिमाग रिवॉर्ड सिस्टम की तरह काम करता है। बच्चे की स्वीट-क्रेविंग या मीठे की लत बढ़ने लगती है। स्वीट-क्रेविंग होने पर बच्चे के दिमाग से एडिक्टिव सब्सटेंस कोकाइन रिलीज होता है। जिसे शांत करने के लिए बच्चे अपनी पसंदीदा स्वीट जैसे चॉकलेट खाने की जिद करने लगते हैं।
-चीनी का ज्यादा सेवन करने से बच्चे डिप्रेशन, स्ट्रेस में जल्दी आ जाते हैं। बच्चों में चिड़चिड़ापन भी आने लगता है। उनके गुस्सैल प्रकृति वाले होने की संभावना भी बढ़ती है।
-बहुत ज्यादा चीनी लेने से ब्रेन पर भी असर पड़ता है। ब्रेन स्लगिश या डल हो जाता है। 10वीं या 12वीं कक्षा में पढ़ रहे छात्रों को अपने दिमाग को चलाने के लिए रात के समय कॉफी, एनर्जी ड्रिंक्स पीते हैं। इससे वे हाइपरएक्टिव हो जाते हैं, ठीक से सो नहीं पाते और उनका परफॉर्मेंस ठीक नहीं रहता है।
ऐसे करें कंट्रोल: एडेड शुगर के बैड इफेक्ट्स से बच्चों को बचाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान दें।
- कोशिश करें कि नेचुरल शुगर वाली चीजें बच्चों को ज्यादा दें। दिन भर में निश्चित मात्रा से अधिक एडेड शुगर किसी भी रूप में ना दें।
-एडेड शुगर वाला कोई भी खाद्य पदार्थ बहुत कम मात्रा में दें। चॉकलेट, कैंडी, केक, पेस्ट्री जैसी चीजें दें तो एक या दो पीस से ज्यादा न दें। 2 साल से कम बच्चों को तो बिल्कुल नहीं दें।
-बच्चों को डिब्बेबंद जूस के बजाय मौसमी और ताजे फल खाने की आदत डालें।
-दही या लस्सी में बहुत ज्यादा चीनी मिलाकर नहीं देनी चाहिए।
-एडेड शुगर रिच एनर्जी ड्रिंक्स, कोल्ड ड्रिंक्स, मिल्कशेक, फ्लेवर मिल्क, स्नैक बार, प्रोटीन बार जैसी चीजों की आदत बच्चों को ना डालें।
-छोटे बच्चों को खीर (चावल, सूजी, गाजर, लौकी) में एक से डेढ़ चम्मच से ज्यादा एडेड शुगर मिलाकर न दें।
-रात को सोने से पहले बच्चा मीठा न खाए और अगर खाता है तो ब्रश कराने के बाद ही सुलाएं। प्रस्तुति : रजनी अरोड़ा
डॉ. अशोक झिंगन
इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट (डायबिटीज रिसर्च सेंटर, दिल्ली)
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