प्रेरणा : गर्भवति होने के बाजवूद कोरोना से जंग लड़ रही हैं वॉरियर मदर्स, आप भी करेंगे दिल से सैल्यूट

कोरोना वायरस के खिलाफ पूरा देश एकजुट होकर लड़ रहा है। इसनजंग में महिलाएं पीछे नहीं हैं। इनमें से कई महिलाएं प्रेग्नेंट अवस्था में होने के बावजूद मरीजों की देखभाल कर रही है। इसके अलावा बच्चे को जन्म देने के बाद अपनी ड्यूटी पर हैं। इनकी पहली प्राथमिकता है कोरोना के खिलाफ जंग, देश के प्रति अपना दायित्व। कोरोना वॉरियर्स के रूप में डटी इन महिलाओं को हरिभूमि सलाम करता है।
अमृता सोरी ध्रुव : प्रेग्नेंसी की हालत में मुस्तैदी से ड्यूटी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पदस्थ एएसपी अमृता सोरी ध्रुव रोजाना पैदल ही सड़क पर राउंड करती नजर आ जाती हैं। वह सात माह की गर्भवती हैं। अमृता जैसे अधिकारियों के लिए उनकी ड्यूटी व्यक्तिगत तकलीफों से कहीं आगे बढ़कर प्राथमिकताओं में होती है। अमृता अपने जज्बे से यह साबित कर रही हैं। हालांकि अब लॉकडाउन-3 की गाइडलाइंस के अनुसार गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर निकलने की मनाही है, लेकिन अभी तक रायपुर की सड़कों पर अमृता लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने की व्यवस्था चेक करती रही हैं, जिसे देखकर लोग चौंकते हैं।
लेकिन अमृता बड़ी विनम्रता से कहती हैं, 'कोरोना की लड़ाई के असली योद्धा हमारे चिकित्साकर्मी हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर संक्रमित लोगों की जान बचा रहे हैं या फिर वो पुलिस के जवान हैं, जो अपने परिवारों से दूर दिन-रात ड्यूटी पर तैनात हैं। इनके आगे मेरी सेवाएं बहुत छोटी हैं। हमें इन लोगों को सलाम करना चाहिए, इनका हौसला बढ़ाना चाहिए।' एडिशनल एसपी अमृता सोरी ध्रुव को इस तरह सात महीने की गर्भवती होने की स्थिति में कर्तव्य निभाते देखना, दूसरों के लिए एक प्रेरणा है।
श्रीजाना गुममाला : त्याग दिया मातृत्व अवकाश
जहां एक ओर एएसपी अमृता सोरी ध्रुव सात माह की प्रेग्नेंट अवस्था में ड्यूटी कर रही हैं, वहीं विशाखापट्टनम की आईएएस अधिकारी श्रीजाना गुममाला भी अपनी जिम्मेदारी पूरी कर्मठता से निभा रही हैं, जबकि एक महीने पहले ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया है। श्रीजाना ने देश में महामारी के संकट को मद्देनजर रखते हुए अपने छह महीने के मातृत्व अवकाश को त्याग दिया और सिर्फ बाइस दिन बाद ही अपने काम पर लौट आईं। श्रीजाना का पिछले दिनों एक हाथ में फोन पकड़े हुए और दूसरे हाथ से बच्चे को खिलाते हुए एक फोटो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ। श्रीजाना गुममाला कहती हैं, 'इस समय हमारा देश संकट के दौर से गुजर रहा है। हम सबको मिलकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़नी है और जीत हासिल करनी है।'
प्रगति तायड़े शेंडे : दूधमुंही बच्चे के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह
भोपाल के बिजली विभाग में एक जिम्मेदार पद पर कार्यरत प्रगति तायड़े शेंडे भी श्रीजाना गुममाला की तरह इन दिनों अपनी छह महीने की बच्ची को लेकर ड्यूटी कर रही हैं। प्रगति को इस बात की चिंता रहती है कि इस भीषण गर्मी में पावर कट से लोग परेशान न हों, रात में लोगों के घरों में अंधेरा ना छाए। पिछले महीने ही प्रगति की मैटरनिटी लीव खत्म हुई है। कोरोना के इस संकट काल में उन्होंने अपनी छुट्टी को और आगे बढ़ाने से ज्यादा अपने फर्ज को प्राथमिकता दी। प्रगति ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया। वह एक कोरोना वॉरियर के रूप में अपने दायित्वों को निभा रही हैं।
महिता नागराज : जरूरतमंदों की सेवा में तत्पर
पेशे से डिजिटल मार्केटियर महिता नागराज एक सिंगल मदर हैं। वह बेंगलुरु में रहती हैं। सिंगल मदर होने के कारण उनकी पारिवारिक जिम्मेदारी है। लेकिन उन्होंने जरूरतमंदों की सेवा में महिता केयरमोंगर इंडिया नाम का एक ग्रुप बनाया है। यह ग्रुप ऐसे लोगों को मदद करता है, जो कोविड-19 के समय खुद का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं। ये लोग उन्हें मदद देते हैं, जो बूढ़े या विकलांग हैं या जरूरतमंद हैं, विशेष तरह की जरूरत चाहते हैं। जब महिता की एक दोस्त ने यूके से कॉल कर उनसे अपने बुजुर्ग माता-पिता के पास ग्रोसरी भेजने की रिक्वेस्ट की, तब उन्होंने इस ग्रुप को बनाने का फैसला किया और कोरोना संकट से जूझते बूढ़े और जरूरतमंद लोगों की मदद कर रही हैं।
सरोज कुमार : सात साल की बेटी को अकेली छोड़कर करती हैं ड्यूटी
सरोज कुमार राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल हैं, उनके पति कंपाउंडर हैं। संकट की इस घड़ी में दोनों की पहली प्राथमिकता अपना देश है। पति जहां एक आइसोलेशन सेंटर में अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं, पंद्रह दिनों से अपने घर नहीं आए हैं, वहीं पत्नी सरोज भीलवाड़ा में कर्फ्यू में तैनात हैं। घर पर किसी और के न होने के कारण सरोज अपनी बेटी को घर में बंद कर ड्यूटी पर जाने के लिए मजबूर हैं। वह कहती हैं, 'मेरे लिए अपनी सात साल की बेटी दीक्षिता को आठ घंटे तक छोड़ना मुश्किल होता है लेकिन फिर देश के प्रति दायित्व पहले आता है।' सरोज की ऐसी कर्तव्यनिष्ठा उनके प्रति सम्मान जगाती है।
डॉ. उमा मधुसूदन : विदेश में भारत का नाम रोशन करने वाली कोरोना वॉरियर
ऐसी भी महिलाएं है, जो अपने देश में ही नहीं, विदेश में भी अपने दायित्वों का निर्वाह कर भारत का मस्तक ऊंचा कर रही हैं। इन्हीं में से हैं भारतीय मूल की डॉ. उमा मधुसूदन। मैसूर के जेएसएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर चुकीं डॉ. उमा वर्तमान में अमेरिका के साउथ विंडसर अस्पताल में कार्यरत हैं। डॉ. उमा ने कई कोरोना मरीजों का इलाज करके उन्हें नया जीवन दिया।
पिछले दिनों लोगों ने उन्हें 'ड्राइव ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया। वहां के स्थानीय लोग, पुलिस और फायरमैन के साथ मिलकर सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ उनके घर के सामने से निकले और उनके प्रति आभार प्रकट किया। डॉ. उमा का कहना है, 'महामारी के सामने ढाल बनकर खड़े दुनियाभर के डॉक्टरों के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। कई बार भावनात्मक और शारीरिक रूप से हिम्मत जवाब देने लगती है, लेकिन ऐसे कठिन समय में उनके परिवार के लोगों के चेहरे की मुस्कुराहट उन्हें अपना फर्ज निभाने की प्रेरणा देती है।'
डॉ. उमा मधुसूदन बताती हैं, 'बेटियों, पति और पिता से मिलने वाला सहयोग मुझे मजबूत बनाए रखता है। बेटियां तो विशेष रूप से मेरा ख्याल रखती हैं। वे कहती हैं, आप सिर्फ हमारी मां नहीं हैं, उन पेशेंट्स की भी मां हैं, जिनका जीवन आपके हाथ में है। आप उनकी उम्मीद हैं। जब बेटियां ऐसे बोलती हैं तो हौसला बढ़ता है। लोगों की सेवा करने की भावना प्रबल होती है।'
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