लापरवाही से हो सकती है फूड पॉयजनिंग

अमूमन यह माना जाता है कि फूड पॉयजनिंग बाहर का खाना खाने से होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। घर में भी खाद्य पदार्थों का चुनाव और संग्रहण करने, खाना बनाते या खाते समय लापरवाही बरतने के कारण भी ये वायरस आहार को संक्रमित कर देते हैं।
प्रमुख लक्षण
-खाना खाने के एक से छह घंटों के बीच मितली, वॉमिट और दस्त आना।
-आंतों में मरोड़ पड़ने से पेट में जलन-दर्द होना।
-सिर दर्द, हल्का बुखार, डिहाइड्रेशन और बहुत कमजोरी लगना।
-मूत्र और स्टूल में खून आना
क्या है कारण
बैक्टीरिया संक्रमित आहार खाने से, दूषित पानी पीने से, खाना पकाने में साफ-सफाई या हाइजीन का ध्यान न रखने से फूड पॉयजनिंग की समस्या हो जाती है। वैज्ञानिको ने साबित किया है कि नौरो वायरस, साल्मोनेला, कैंपिपलोबैक्टर, टोकसोपलसमा गोंदी, ई कोलाई वायरस, लिस्टेरिया मोनोसाइटोजींस, क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिन जैसे बैक्टीरिया से फूड पॉयजनिंग होती है।
इन्हें है ज्यादा संभावना
आकड़ों के हिसाब से पूरी दुनिया में फूड पॉयजनिंग की चपेट में सबसे ज्यादा बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बुजुर्ग आते हैं। दूसरों की तुलना में इनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, इसलिए संक्रमित भोजन खाने, हाइजीन का ध्यान न रखने और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतने से वे जल्दी शिकार हो जाते हैं।
कब जाएं डॉक्टर के पास
शुरू में 1-2 दिन तक एंटीबायोटिक मेडिसिन न देकर 'वेट और वॉच' करना चाहिए। लेकिन स्थिति गंभीर होने पर अस्पताल में भी एडमिट कराना पड़ सकता है। डिहाइड्रेशन और कमजोरी से बचने के लिए उसे आधे-आधे घंटे में ओआरएस घोल, इलेक्ट्रोलाइट्स या पानी, नमक और चीनी का घोंल, नीबू पानी या नारियल पानी पीने के लिए देना चाहिए। कोशिश करें कि हर स्टूल या उल्टी होने के 10 मिनट बाद पेशेंट को ओआरएस पिलाएं और संभव हो तो दिन में 2-3 बार प्यास लगने पर उसे यह घोल जरूर पिलाएं। लेकिन जब पेशेंट को बुखार हो गया है, तो इसका मतलब है कि उसे कोई न कोई बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन हो गया है- ऐसी स्थिति में डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए।
क्या है उपचार
डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए ओआरएस घोल, नीबू पानी या नारियल पानी जारी रखें। लोपैमाइड या डमोडियम और पेप्टो-बिस्मोल जैसी ओवर-द-काउंटर मेडिसिन दी जाती हैं। धीरे-धीरे स्थिति सुधरने पर ही उसे कम वसा और कम मसालों वाली लिक्विड डाइट या केला, चावल, ब्रेड, जिलेटिन दी जाती है।
बचाव के उपाय
-खाद्य पदार्थ खरीदते समय गुणवत्ता और एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें। फल-सब्जियां ताजी और मौसम के अनुसार हों। शाकाहारी और मांसाहारी खाने को अलग-अलग कंटेनर या बैग में रखें और घर में फ्रिज में भी इन्हें अलग-अलग स्टोर करें। फ्रोजन खाद्य पदार्थ तभी खरीदें जब उन्हें जल्द से जल्द फ्रीजर में रखने की स्थिति में हों।
-खाना हमेशा स्वस्थ व्यक्ति को ही पकाना चाहिए क्योंकि इससे बीमारी के कीटाणु अन्य व्यक्तियों के खाने में मिल सकते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि खाना ठीक टेंपरेचर पर और पूरी तरह पकाया गया हो।
-भोजन बनाते समय व्यक्तिगत ही नहीं, रसोई और बर्तनों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। औषधीय साबुन से अपने हाथ धोने चाहिए ताकि किसी प्रकार के कीटाणु न रहें। इस्तेमाल करने से पहले बर्तनों को पानी से जरूर धो लेना चाहिए।
-फल-सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थों को बैक्टीरियामुक्त करने के लिए खुले पानी में या फिर हल्के गर्म पानी में अच्छी तरह धोकर इस्तेमाल करें।
-फल-सब्जियां हमेशा ताजी लें। मुरझाए हुए, दागी, कटे-फटे या ढीले विषाक्त चीजों के प्रयोग से बचें। फल छीलकर खाएं ताकि अंदर से गले हए फल का पता लग सके।
-शाकाहारी और मांसाहारी खाना बनाते समय चौपिंग बोर्ड और बर्तन अलग हों तो बेहतर है। इससे उनमें मौजूद बैक्टीरिया फैलने का खतरा नहीं रहता।
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-ताजा और गर्म भोजन ही खाएं। अगर भोजन बच भी जाता है तो उसे एयरटाइट कंटेनर में बंद करके पूरी तरह नॉर्मल होने के बाद ही फ्रिज में रखना चाहिए। बासा भोजन 24 घंटे के अंदर खा लेना चाहिए। यह भोजन खाने से आधा घंटा पहले फ्रिज से निकालकर नॉर्मल टेंपरेचर में लाना चाहिए और अच्छी तरह गर्म करके खाना चाहिए।
- रसोई में कॉकरोच, कीड़े-मकौड़ों जैसे इंसेक्ट्स को हटाने के लिए समय-समय पर रात के समय स्प्रै का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि सुबह सफाई करके काम किया जा सके।
प्रस्तुति-रजनी अरोड़ा
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