हेल्थ को लेकर रहें अलर्ट, स्ट्रोक से संभव है बचाव

विश्व में स्वास्थ्य की प्रमुख चिंताओं में से एक स्ट्रोक की समस्या है। अस्वस्थ जीवनशैली, कुछ अन्य बीमारियां इसके विकसित होने का कारण हो सकती हैं, जिनमें से कुछ कारणों का बचाव भी किया जा सकता है लेकिन वर्तमान कोविड के दौर में जहां एक ओर स्ट्रोक के मरीजों की इलाज प्रक्रिया बाधित हुई है, वहीं कोविड संक्रमित लोगों में स्ट्रोक के बहुत से मामले देखे गए हैं। यानी इस समय इसके प्रति और भी ज्यादा सचेत होने की ज़रूरत है। स्वस्थ जीवनशैली के जरिए इसके जोखिम को रोका जा सकता है।
स्ट्रोक के कारण
स्ट्रोक होने और इसके कारणों के बारे में बता रहे हैं डॉक्टर अमित श्रीवास्तव, जो धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशिएलिटी अस्पताल, दिल्ली में न्यूरोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट हैं। सामान्य भाषा में कहें तो मस्तिष्क में रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन रुक जाने के कारण उसका संचालन रुक जाता है और कुछ कोशिकाएं मृत हो जाती हैं, इस स्थिति को स्ट्रोक कहते हैं। किसी प्रकार की शारीरिक विकलांगता, किसी अंग का संचालन रुक जाना या गंभीर हालात में मृत्यु जैसे परिणाम हो सकते हैं। इसके बहुत से कारण हो सकते हैं।
-डायबिटीज, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां।
-कोलेस्ट्रॉल का अत्यधिक बढ़ जाना, जो धमनियों पर अतिरिक्त दबाव बनाते हैं।
-अत्यधिक बॉडी वेट जो धमनियों पर अतिरिक्त दबाव तो बनाता ही है, साथ ही रक्तचाप को भी प्रभावित करता है।
-पहले से गंभीर न्यूरोलॉजी संबंधी बीमारियां, जो एक समय बाद इस समस्या की ओर ले जा सकती हैं।
-धूम्रपान और नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन।
-एंग्जायटी/डिप्रेशन/एडजस्टमेंट डिसऑर्डर्स जैसी समस्याएं, जो अपने गंभीर रूप में स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा सकती हैं।
बचाव और इलाज
स्ट्रोक से बचाव और इलाज के बारे में बता रहे हैं डॉक्टर राजुल अग्रवाल, जो श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली में सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वह कहते हैं, स्ट्रोक के परिणामस्वरूप व्यक्ति बेहोश हो सकता है, और यदि सही समय पर इलाज न शुरू किया जाए तो उसकी डेथ भी हो सकती है। स्ट्रोक के अगले साढ़े चार घंटे की अवधि अहम होती है, जो आगे के जोखिम और रोग की गंभीरता दोनों को कम करने में मदद करती है। इस दौरान डॉक्टर रोगी को एक इंजेक्शन देते हैं, जिसके द्वारा यह क्लॉटिंग निकाली जाती है। यदि यह न हो पाए तो 6 घंटे की अवधि में एक प्रकार का तार डाल कर नस में जमी इस क्लॉटिंग को निकाला जाता है। इसलिए बिना देरी के रोगी को तुरंत अस्पताल लेकर जाएं और जल्द से जल्द इलाज शुरू करें। स्ट्रोक से बचाव के लिए कुछ बातों पर अमल करना चाहिए।
-वजन नियंत्रण में रखना चाहिए।
-हर तरह के नशे से परहेज करें।
- डायबिटीज, हृदय रोग, हाइपरटेंशन के रोगियों को अपना विशेष ख्याल रखना चाहिए।
-किसी भी प्रकार के मानसिक तनाव या बीमारी को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।
-व्यायाम करते रहें।
-यदि परिवार के एक से अधिक सदस्यों को 60 वर्ष से कम आयु में स्ट्रोक जैसी बीमारी का सामना करना पड़ा है तो विशेष ध्यान दें क्योंकि यह स्ट्रोक के आनुवांशिक होने के भी लक्षण हो सकते हैं।
बॉक्स बना सकते हैं
कोविड-19 और स्ट्रोक का रिस्क
यह समझना जरूरी है कि कोविड मूल रूप से श्वसन संबंधी बीमारी है, लेकिन इसका शरीर के अन्य अंगों के संचालन पर भी असर पड़ता है और स्ट्रोक के विषय में इसकी भूमिका समझने के लिए ब्रेन हेल्थ के संदर्भ में व्यापक रूप से समझना जरूरी है। इस बारे में नारायणा अस्पताल के कंसल्टेंट-न्यूरोलॉजी डॉक्टर साहिल कोहली बताते हैं, कोविड संक्रमण के दौर में इसके लक्षणों को महसूस करके कोविड की जांच के लिए लोग जाते हैं, लेकिन अध्ययनों के हिसाब से तकरीबन आधे मरीजों को न्यूरोलॉजी संबंधी लक्षण होते हैं, जो कोविड के लक्षणों से पहले भी देखे जा सकते हैं जैसे- स्वाद और महक न आना कोविड के शुरुआती लक्षण भी हो सकते हैं। इसी तरह कोविड के लक्षण में सिरदर्द भी एक है, जो न्यूरो संबंधी बीमारियों में आम है। कोविड के संक्रमण से इसकी गंभीरता में इजाफा होने की संभावना बढ़ जाती है। कोविड संबंधी तनाव, एंग्जायटी, घरों में इतने दिन लगातार रहना, शारीरिक व्यायाम कम करना आदि के कारण भी सिरदर्द की समस्या में इजाफा हुआ है।
कोविड के गंभीर मरीजों में देखा गया है कि उनका खून गाढ़ा हो जाता है, जिसके कारण ब्रेन स्ट्रोक की संभावना हो सकती है। पहले से स्ट्रोक से पीड़ित है तो संबंधित डॉक्टर के संपर्क में रहें। बीपी, शुगर आदि है तो उससे संबंधित दवाइयां नियमित लेते रहें।
स्ट्रोक को लेकर पहले से ही जानकारी और जागरुकता का बहुत अभाव है, उस पर से कोविड के दौर में इसका जोखिम और भी बढ़ गया है इसलिए बेहतर है संक्रमण से बचाव और मस्तिष्क संबंधी बीमारियों से बचाव दोनों सुनिश्चित किए जाएं।
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