ये बर्तन बन सकते हैं कैंसर की वजह

जानलेवा बीमारियों में कैंसर भी शामिल है, जो अधिकतर पर्यावरणीय असंतुलन, जीवनशैली और खान-पान की गलत आदतों के कारण होती है। वैज्ञानिकों की मानें तो हमारे आहार में शामिल होने वाले कई खाद्य पदार्थ ही नहीं, खाना बनाने और परोसने में इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। इनमें कार्सिनोजेनिक, म्यूटेजन जैसे कैंसरकारक तत्व होते हैं, जो शरीर में पहुंच कर कैंसर सेल्स के रूप में विकसित हो जाते हैं।
नॉन स्टिक कुकवेयर: आजकल खाना पकाने के लिए नॉन स्टिक कुकवेयर का चलन बहुत बढ़ गया है। इन पर पीटीएफई यानी पॉली टेट्रा फ्लोरो इथाइलीन या स्टैफलॉन की कोटिंग की जाती है। यह कोटिंग काफी खतरनाक होती है और यह फेफड़ों और मस्तिष्क को प्रभावित करती है। तेज आंच पर पकाने पर इसमें से निकलने वाले धुएं में कैडमियम और मरकरी के कण पाए जाते हैं। खाना बनाते समय नॉन स्टिक कुकवेयर की कोटिंग खराब होने के डर से इनमें प्लास्टिक की कड़छी या पलटे का इस्तेमाल किया जाता है, जो सेहत के लिहाज से और नुकसानदायक होता है।
अगर आप नॉन स्टिक कुकवेयर इस्तेमाल कर रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि जब इसकी कोटिंग थोड़ी-बहुत भी उतरने लगे, तो उसे बदल लेना चाहिए। इनके बजाय कास्ट आयरन, सिरेमिक कुकवेयर अच्छे ऑप्शन हैं। लकड़ी या बांस की कड़छी बेहतर विकल्प हैं।
एल्यूमिनियम कुकवेयर: खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कूकर, कड़ाही जैसे बर्तन आमतौर पर एल्यूमिनियम के होते हैं। वैज्ञानिक मानते है कि एल्यूमिनियम के बर्तन भी धीमे जहर की तरह काम करते हैं। एल्यूमिनियम के कई बर्तन प्रोसेस्ड नहीं होते हैं, जिसकी वजह से गर्म करने पर यह धीरे-धीरे खाने में मिलकर आपके शरीर में जमा होता जाता है और लंबे समय में स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं पैदा करता है।
इनके बजाय स्टेनलेस स्टील, कास्ट आयरन, हीटप्रूफ ग्लास के कुकवेयर इस्तेमाल करना बेहतर है। या फिर एल्यूमिनियम कुकवेयर लंबे समय तक इस्तेमाल करने के बजाय 2-3 साल बाद बदल लेने चाहिए।
प्लास्टिक बर्तन: हमारी रसोई में प्लास्टिक की कई चीजें इस्तेमाल की जाती हैं, जो सेहत के लिए नुकसानदायक हैं। प्लास्टिक की ये चीजें बिस्फिनॉल ए (बीपीए) या बिस्फिनॉल एस (बीपीएस), पॉलीविनाइल क्लोराइड जैसे टॉक्सिक मैटेरियल से बनी होती हैं। प्लास्टिक कुकवेयर में गर्म खाना डालने या पकाने पर उसमें से मीथेन गैस और करीब 60 केमिकल्स रिलीज होते हैं। ये हमारी इम्यूनिटी, हार्मोंस पर असर डालते हैं, जिससे ओवेरियन, ब्रेस्ट, कोलोन, प्रोस्टेट कैंसर का खतरा रहता है।
डिस्पोजेबल बर्तन: स्टायरोफोम से बने कप, गिलास और प्लेट जैसे डिस्पोजेबल बर्तन चीजों में कार्सिनोजेनिक तत्व होते हैं, जो चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स जैसे गर्म या ठंडे खाद्य पदार्थों के डाले जाने पर खाने में आ जाता है। इनके ज्यादा मात्रा में शरीर में जाने पर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए डिस्पोजेबल बर्तन के बजाय सिरेमिक, ग्लास, मिट्टी या फिर स्टील के बर्तन इस्तेमाल करना ही बेहतर है।
एल्यूमिनियम फॉयल या प्लास्टिक रैप: खाना पैक करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला फॉयल या प्लास्टिक रैप भी नुकसानदायक है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार एल्यूमिनियम के संपर्क में कोई भी खाना पकाते हैं या पैक करते हैं, तो खाद्य पदार्थों में 1-2 मिग्रा. एल्यूमिनियम आ जाता है। एल्यूमिनियम का ज्यादा इस्तेमाल करने से हमारा शरीर जिंक मिनरल को अवशोषित नहीं कर पाता, जो ब्रेन की गतिविधियों और बोन डेंसिटी के लिए जरूरी है। खाना पैक करने के लिए सूती कपड़ा या बटर पेपर इस्तेमाल करना बेस्ट है।
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