कोरोना काल में ब्रेस्टफीडिंग कराते वक्त इन बातों का रखें खास ध्यान

कोरोना काल में ब्रेस्टफीडिंग कराते वक्त इन बातों का रखें खास ध्यान
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नवजात शिशु के लिए मां का दूध बहुत जरूरी और लाभकारी होता है। इस दूध में पाए जाने वाले न्यूट्रीएंट्स, एंटीऑक्सीडेंट्स की वजह से वैज्ञानिकों ने इसे फर्स्ट वैक्सीन का दर्जा भी दिया है। यह बच्चे की इम्यूनिटी बढ़ाता है। कोरोना टाइम में भी कुछ सावधानियां अपनाकर बच्चे को मांएं ब्रेस्टफीडिंग करा सकती हैं।

मां के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क बनना एक नेचुरल प्रोसेस है, जो डिलीवरी के बाद शुरू हो जाता है। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद जहां यह दूध गाढ़ा पीले रंग का और कम मात्रा में होता है, जिसे कोलस्ट्रम कहा जाता है। यह दूध डिलीवरी के 48 घंटे तक आता है, जो शिशु के लिए बहुत उपयोगी होता है। आगे दूध सामान्य रूप से आने लगता है। ब्रेस्ट मिल्क बच्चे का पोषण करने के साथ उसके शारीरिक-मानसिक विकास में भी मददगार होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व इम्यून सिस्टम को 90 फीसदी तक मजबूत बनाते हैं और कई गंभीर संक्रामक बीमारियों से बचाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शिशु को कम से कम पहले छह महीने तक स्तनपान जरूर कराने की सिफारिश की है। जिसे दो साल तक जारी रखा जा सकता है। इन दिनों कोविड-19 वायरस या कोरोना, दुनिया भर में भयावह महामारी का रूप ले चुका है। ऐसे में महिलाएं अपने बच्चे या होने वाले बच्चे को स्तनपान कराने को लेकर बहुत आशंकित हैं, उन्हें लगता है कि ऐसा करने पर बच्चे को संक्रमण हो सकता है। लेकिन उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, बस कुछ सावधानियां बरतनी होंगी।

ब्रेस्ट मिल्क में नहीं जाता संक्रमण

हाल ही में कोक्रेन लाइबगेरी, एमबेस कोविड, पबमेड मेडिसिन, वेब ऑफ साइंस कोर कलेक्शन (क्लेरिनेट एनालिटिक्स) और डब्ल्यूएचओ डेटाबेस के आधार पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च की है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि कोरोना संक्रमण न तो मां की ब्रेस्ट में जाता है, न ब्रेस्ट मिल्क में। कोरोना वायरस गले, सांस की नली, फेफड़ों में रहता है, ब्रेस्ट में नहीं पहुंचता। ऐसे में मां का दूध बच्चे के लिए सुरक्षित है। नवजात शिशु को संक्रमण नहीं हो सकता, जब तक कि संक्रमित मां के खांसने या छींकने से निकले ड्रॉपलेट के साथ वायरस बच्चे तक न पहुंचें।

- डिलीवरी के बाद महिलाओं में कोविड-19 के अगर कोई लक्षण न हों तो बच्चे को स्तनपान कराने से बिल्कुल कतराना नहीं चाहिए। बस, सावधानियां बरतते हुए उसे ब्रेस्टफीडिंग करानी चाहिए।

-बच्चे को दूध पिलाने के लिए उठाने से पहले और बाद में मेडिकेटेड साबुन से अपने हाथ अच्छी तरह धोएं।

-हाथों के लिए 70 प्रतिशत के बजाय 60 प्रतिशत एल्कोहल वाला सैनेटाइजर इस्तेमाल करें, जिससे बच्चे को किसी तरह की हानि न हो।

-बच्चे को दूध पिलाते हुए मास्क पहनें या कपड़े से अपना चेहरा अच्छी तरह कवर करें। जिससे सांस लेते हुए, खांसते या छींकते हुए ड्रॉपलेट के साथ वायरस बच्चे तक न पहुंच पाएं।

-संभव हो तो दूध पिलाने से पहले ब्रेस्ट गीले कपड़े से साफ कर लें।

-स्तनपान कराने वाली मां को होम आइसोलेशन में रहना चाहिए। न तो उसे कमरे से बाहर जाना चाहिए, न नाते-रिश्तेदारों से मिलने देना चाहिए।

- रेग्युलर हेल्थ केयर एडवाइजर के संपर्क में रहें। कोई भी तकलीफ हो तो सूचित करें। समुचित दिशा-निर्देशों का पालन करें।

अगर महिला हो जाए कोरोना संक्रमित

डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के साथ काम करने वाली वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग ऑर्गनाइजेशन 'ग्लोबल एलायंस' का मानना है कि किसी भी बीमारी की हालत में यहां तक कि एचआईवी की हालत में भी मां बच्चे को स्तनपान करा सकती हैं। तो कोरोना टेस्ट में हुई जांच के आधार पर अगर मां कोरोना पॉजिटिव है। अगर मां को ज्यादा इंफेक्शन है तो वह 9 दिन तक ब्रेस्ट पंप से दूध निकालकर बच्चे को पिला सकती हैं या फिर सुविधानुसार दूध के उछाल के समय इलेक्ट्रिक या मैनुअल ब्रेस्ट पंप की सहायता से निकाल कर अस्पताल में बने मिल्क बैंक में भी स्टोर करा सकती हैं, जिसे पॉश्चराइज कर दिया जाता है। बाद में जरूरत के हिसाब से बच्चे को पिलाया जा सकता है। लेकिन ब्रेस्ट पंप इस्तेमाल करने से पहले उसे अच्छी तरह साफ जरूर कर लेना चाहिए। उबाल कर स्टर्लाइज करें। उपयोग के बाद पंप को फिर से अच्छी तरह साफ करें।

ठीक होने पर कराएं फीडिंग

कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आने पर मां अगर अपना इलाज करवा रही है और रेगुलर दवाइयां ले रही है तो टेस्ट रिपोर्ट के 9 दिन बाद उसके शरीर में कोविड संक्रमण खत्म हो जाता है। इसके बाद मां के शरीर में इम्यूनिटी डेवलप हो जाती है। कोरोना रिकवरी के बाद मां जब बच्चे को स्तनपान कराती है तो मां के अंदर बनने वाली इम्यूनिटी दूध के माध्यम से बच्चे में चली जाती है। इम्यूनिटी मजबूत होने से बच्चे में संक्रमण होने का खतरा कम हो जाता है।

डाइट का रखें ध्यान

ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं की डाइट एक्स्ट्रा कैलोरी और पौष्टिक तत्वों से भरपूर होनी चाहिए क्योंकि वो जो खाएंगी, उसका एब्सट्रेक्ट दूध में शामिल होकर बच्चे तक पहुंचता है।

- आयरन-कैल्शियम रिच डाइट जरूर लें। फल-सब्जियों और डेयरी प्रोडक्ट्स को भोजन में शामिल करें।

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- ज्यादा से ज्यादा लिक्विड डाइट लें, जिससे दूध उतरने में आसानी हो। संतरा, मौसंबी, आम, तरबूज, गाजर, चुकंदर का जूस पीना चाहिए।

- रोजाना कैल्शियम और विटामिंस के सप्लीमेंट्स भी डॉक्टर की सलाह पर लें। ऐसा न करने पर शरीर में दूध के उत्पादन पर असर पड़ता है, साथ ही इम्यूनिटी कमजोर होने से बीमारियों का खतरा रहता है।

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