हिन्दू धर्म में होती 8 तरह की शादियां! जानिए कौन सी स्वीकार्य और किस से बनेंगे पाप के भागी

8 Traditional Forms Of Hindu Marriages: शादी (Wedding) के बंधन को हर धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसमें महज 2 लोगों का एक-दूसरे से रिश्ता नहीं बनता, बल्कि दो परिवारों, दो समाज और सबसे अहम 2 अलग तरह की धारणाओं का मिलन होता है। आजकल हम आपने घर में, सोशल मीडिया (Social Media) पर या फिर समाज में 2 तरह की शादियों के बारे में बात करते हैं। पहली लव मैरिज (Love Marriage) और दूसरी अरेंज मैरिज (Arrange Marriage) होती है। क्या आप जानते हैं, हिन्दू धर्म में एक या दो नहीं 8 तरह की विवाह पद्धतियां होती हैं। जी हां, इनमें से कुछ विवाह पद्धतियां ऐसी भी हैं, जिन्हें समाज में निषेध माना जाता है क्योंकि इन्हें अपराध की श्रेणी में माना जाता है। हिंदू धर्म (Hindu) से जुड़े कई शास्त्रों में शादी के इन सभी रीति-रिवाजों के बारें में बताया गया है।
हिन्दू शास्त्रों में 8 विवाह के बारे में बताया
कामसूत्र समेत अन्य सभी हिन्दू शास्त्रों में आठ तरह की एक-दूसरे से बिल्कुल ही अलग, विवाह की पद्धतियों के बारे में बात की जाती है। इनके नाम ब्रह्म, दैव, आर्य, प्रजापत्य, गंधर्व, असुर, राक्षस और पिशाच है। इन सभी में ब्रह्मा और दैव विवाह पद्धति को सबसे अच्छा माना जाता है। आर्ष, प्रजापत्य और गंधर्व विवाह को मध्यम श्रेणी में रखा जाता है। बाकी बचे विवाहों को अशुभ और पाप माना जाता है। आइए जानते हैं कि इन सभी में क्या अंतर हैं और कौन से हैं ये 8 तरह के विवाह:-
हिन्दू धर्म के मुताबिक होते हैं ये 8 विवाह:-
1. ब्रह्म विवाह
पहले नंबर पर ब्रह्म विवाह आता है, इस विवाह में लड़के और लड़की के साथ ही उनके परिवारों की सहमति से एक ही जाति के अंदर शादी की जाती है। इसे 'ब्रह्म विवाह' कहा जाता है। इस शादी में हिंदू धर्म से जुड़े सभी रीति-रिवाजों और नियमों का पालन किया जाता है। ब्रह्म विवाह में कुल और गोत्र को ध्यान में रखकर शादी होती है।
2. देव विवाह
दूसरे नंबर पर देव विवाह आता है। इसमें किसी सेवा, धार्मिक कार्य या किसी अच्छे उद्देश्य के लिए अपनी बेटी का हाथ किसी खास वर के हाथ में दिया जाता है। इस शादी को 'दैव विवाह' कहते हैं। इस विवाह में याद रखने वाली बात ये होती है कि लड़की की इच्छा जाननी बहुत ज्यादा जरूरी होती है।
3. अर्श विवाह
तीसरे नंबर पर अर्श विवाह आता है। इस शादी में कन्या पक्ष के लोगों को वर पक्ष वाले लोग मूल्य चुकाते हैं। जैसे कन्या के बदले वो उसके परिवार वालों को कुछ सौंपते हैं, इसे 'अर्श विवाह' कहा जाता है। इस विवाह में भी लड़के और लड़की की सहमति होना जरूरी होता है। इसका सीधा संबंध ऋषि विवाह से भी होता है।
4. प्रजापत्य विवाह
चौथे नंबर प्रजापत्य विवाह आता है। इस शादी में कन्या का पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में देते हुए कहता है कि 'तुम दोनों एक साथ गृहस्थ धर्म का पालन करो'। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस विवाह के बाद कन्या से उत्पन्न होने वाला बच्चा खानदान को आगे बढ़ता है और पीढ़ी को पवित्र करता है।
5. असुर विवाह
पांचवें नंबर पर असुर विवाह आता है। इसमें कन्या के परिजनों को कन्या का मूल्य देकर कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह करवा दिया जाता है। बता दें कि इस शादी में कन्या के परिवार के मुताबिक उसका मूल्य तय किया जाता है। इस विवाह में कन्या की सहमति लेना जरूरी नहीं समझा जाता।
6. गंधर्व विवाह
छठे नंबर पर गंधर्व विवाह आता है, जिसमें वर और कन्या की आपसी मर्जी से विवाह होता है, उसे गंधर्व विवाह कहते हैं। इस विवाह में किसी क्षत्रिय के घर से लाई आग से हवन करने के बाद तीन फेरे लेने से विवाह संपन्न होता है। बता दें कि आज के समय में इस विवाह को ही लव मैरिज कहा जाता है।
7. राक्षस विवाह
राक्षस विवाह की यह सातवीं पद्धति स्वीकार्य नहीं होती है। इसमें जबरन कन्या का अपहरण कर या उसे बहला फुसलाकर विवाह किया जाता है। बता दें कि धार्मिक शास्त्रों और पुराणों में भी लड़कियों का अपहरण कर जबरदस्ती उनसे विवाह करने की कई कहानियां हैं। इस तरह के विवाह को कभी भी पवित्र नहीं माना जाता है।
8. पिशाच विवाह
पिशाच विवाह सबसे आखिरी और सबसे बड़े पाप की तरह मानी जाने वाली पद्धति है। शास्त्रों के मुताबिक इस शादी में सोती हुई कन्या या फिर नशे में धूत कन्या या मानसिक रूप से कमजोर कन्या की स्थिति का लाभ उठाते हुए उससे शारीरिक संबंध बनाकर विवाह किया जाता है। हिंदू धर्म में बताए गए सभी तरह के विवाह में इसे पाप की श्रेणी में रखा जाता है। समाज में इस तरह के विवाह करने पर कड़ी सजा दी जाती है।
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