सिजोफ्रेनिया में प्यार नहीं भ्रम में जीते हैं लोग, तुनिषा से दीपिका तक ये सेलिब्रिटी हुए इस बीमारी का शिकार

What Is Schizophrenia: प्यार एक बहुत ही खूबसूरत सा एहसास होता है, लेकिन यह बात हर इंसान पर लागू नहीं होती है। अलग-अलग लोगों के लिए प्यार की अलग परिभाषा होती है। कई लोगों के लिए प्यार महज एक भ्रम भी होता है, हाल ही में टीवी की मशहूर एक्ट्रेस तुनिषा शर्मा ने खुदकुशी कर ली। 20 साल की टैलेंटेड एक्ट्रेस का इस तरह दुनिया से चले जाना देश में किसी को भी हजम नहीं हो रहा है। इस मामले में आगे सामने आया कि एक्ट्रेस तुनिषा डिप्रेशन से जूझ रही थी। आपको बता दें कि डिप्रेशन से मौत का यह पहला मामला नहीं है। तुनिषा शर्मा से पहले भी फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों ने डिप्रेशन के चलते अपनी जान खुद ही ले ली थी। इस सबके बीच में कई मशहूर सितारों ने इस पॉइंट पर खुलकर बातचीत भी कि है। इन बड़े सितारों के नामों की लिस्ट में दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा, वरुण धवन, शाहरुख खान, इलियाना डिक्रूज, करण जौहर और एक्ट्रेस आलिया भट्ट की बहन शाहीन भट्ट भी शामिल हैं।
इस मुद्दे पर बॉलीवुड में बनी है फिल्में
बता दें कि बॉलीवुड और टीवी की दुनिया का यह वो अंधेरा साइड है। जो सितारों की चकाचौंद वाली जिंदगी पर ग्रहण लगा देता है। डिप्रेशन एक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर बॉलीवुड में कई ऐसी फिल्में भी बनी हैं, जो मेंटल हेल्थ को लेकर बात करती हैं। एक्ट्रेस बिपाशा बसु की फिल्म मदहोशी और कोंकणा सेन की फिल्म 15 पार्क एवेन्यू में सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी को दिखाया गया है। बिपाशा बसु की फिल्म मदहोशी में दिखाया गया कि वह कल्पना की दुनिया में इस तरह गुम हो जाती हैं कि उन्हें लगता है कि उनका एक बॉयफ्रेंड है वह अपनी कल्पना में अपने रिश्ते को इतना आगे बढ़ा चुकी हैं कि उस बॉयफ्रेंड के ना मिलने पर अपनी जान ले लेना चाहती हैं। ऐसा ही कुछ प्लॉट कोंकणा सेन की फिल्म 15 पार्क एवेन्यू में भी देखने को मिलता है कि मिताली अपनी कल्पनाओं में इतना आगे बढ़ जाती है कि उसे लगता है कि वह अपने एक्स मंगेतर की पत्नी है और उसके पांच बच्चे हैं और वह अपने बच्चों और पति के साथ रहती हैं।हालांकि सच तो ये है कि उसकी शादी ही नहीं हुई।
जानें क्या है सिजोफ्रेनिया?
बता दें कि हर इंसान काफी हद तक अपनी एक अलग कल्पना की दुनिया बसाकर जीता है, लेकिन कई बार लोग अपनी कल्पनाओं में इतना गुम हो जाते हैं कि उन्हें कल्पना और असलियत के बीच फर्क ही नजर नहीं आता है। इस तरह के लोग अपनी कल्पना को सच समझने लगते हैं, इंसान के दिमाग में डोपामाइन नाम का न्यूरोट्रांसमीटर होता है, जो दिमाग और इंसान कि बॉडी के बीच तालमेल बिठाता है। कई बार डोपामाइन केमिकल इसी वजह से जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है, तो सिजोफ्रेनिया की समस्या होने लगती है। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर माता- पिता को सिजोफ्रेनिया है, तो 40% तक इस बात के चांसेस हैं कि वे बच्चों को भी हो सकता है। अगर माता या पिता में से किसी एक को सिजोफ्रेनिया है तो बच्चे को ये बीमारी होने के चांस घटकर 12% हो जाते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मानसिक रोगों को दो भागों में बांटा जाता है। पहले में वह परिस्थिति आती है, जिसमें रोगी इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त होता है, लेकिन उसे असलियत और कल्पना के बीच का अंतर पता होता है और दूसरे में सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी आती है, जिसमें इंसान कल्पना के करीब और असलियत से कोसों दूर होता जाता है। इस बीमारी को समझने के लिए आपको सिजोफ्रेनिया की मूल वजह को जानना होगा? इसके जवाब में मनोचिकित्सक कहते हैं कि बदलती लाइफ स्टाइल, टूटते परिवार, करियर, पैसा कमाने की होड़, घरेलू जिम्मेदारियां आदि मानसिक बीमारियों के पीछे की वजह है। विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि कोरोना महामारी के बाद में लोगों के जीवन में काफी बदलाव आया है। अकेलापन, उदासी एवं तनाव,डर, असुरक्षा की भावना जैसे कारणों की वजह से भी मानसिक रोगों में इजाफा हुआ है।
जानिए सिजोफ्रेनिया के लक्षण क्या हैं?
इसमें इंसान कल्पना और असलियत के बीच का अंतर समझ नहीं पाता। उसे भ्रम होने लगता है कि कोई उसके खिलाफ है और साजिश कर रहा है। ऐसे में इंसान इत्तेफाक की कड़ियों को जोड़ने लगता है और कुछ अलग ही कल्पना करने लगता है। इस तरह के कई मामलों मे मतिभ्रम भी देखा जाता है, इसमें व्यक्ति को आवाजें सुनाई देती है जो असलियत में नहीं होती है। वहीं कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें इंसान को कई चीजें, व्यक्ति या आकृतियां दिखाई देने लगते हैं। ऐसे मामलों में धीरे-धीरेइंसान उदास होता चला जाता है और उसके सेंसेस काम नहीं करते। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को किसी चीज से खुशी नहीं मिलती, अगर आपको अपने आसपास इसी तरह के लक्षण दिखे तो उस इंसान को बिना देर किए मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। क्योंकि इस तरह की बीमारी का इलाज समय पर होना बहुत ही ज्यादा जरुरी है।
जानिये इस बीमारी से बचने का इलाज
बता दें कि सिजोफ्रेनिया से बचाव के लिए आपको काउंसलिंग के साथ कई दवाइयां दी जाती हैं। दवाइयों का असर होने में तकरीबन 6 हफ्ते से ज्यादा समय लगता है। कई बार इस बीमारी को ठीक होने में 1-2 साल भी लग सकते हैं, दवाइयों के साथ रोगी की फैमिली का सपोर्ट बहुत ज्यादा जरुरी है। यह बीमारी पुरुष और महिला दोनों में ही समान रूप से देखने को मिलती है। एक सर्वे के मुताबिक, 70 प्रतिशत लोग इस बीमारी से इलाज के बाद सामान्य जिंदगी जी रहे हैं, 20 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी काफी लंबी देखी गई है, जिन्हें विशेष देखभाल की जरुरत थी। वहीं दूसरी ओर बताते चलें कि अब तक 10 प्रतिशत लोगों ने इस बीमारी में मौत को गले लगा लिया। एक सर्वे के मुताबिक, पूरी दुनिया में लगभग 2.4 करोड़ लोग इस बीमारी का सामना कर रहे हैं। आमतौर पर 15 से 35 वर्ष के लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि आने वाले समय में यह बीमारी बहुत बढ़ जाएगी।
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