खुशियों और उमंगों का त्योहार है Diwali, जानिए महिलाओं का इस महापर्व से क्यों है गहरा जुड़ाव

Diwali 2022: अंधेरे को रोशनी की जगमगाहट से (Festival Of Lights) भर देने का पर्व है दीपावली (Deepawali)। इस पर्व के मूल स्वरूप और संदेश से स्त्रियां खुद को गहनता से जुड़ा महसूस करती हैं। तभी तो इसकी तैयारी, इसकी परंपरा और इसके विधि-विधान को उत्साह-उमंग से निभाने के साथ ही वे ना केवल अपनों के जीवन में खुशियां संजोने का हर संभव प्रयास करती हैं, अपने आस-पास भी खुशहाली का उजाला फैलाने का कोई अवसर नहीं गवांती हैं। आ रहा है दीपों का पर्व-दीपावली। रोशनी की नई लड़ियों के साथ जीवन को अधिक प्रफुल्लित, अधिक आनंदित, अधिक प्रकाशित करने का यह बहुत सुंदर अवसर है। प्रकाश मतलब आशा, विश्वास, उम्मीद, सपने और ढेरों खुशियां। देखा जाए तो वास्तविक खुशी तब मिलती है, जब हमारा जीवन अंधकार से मुक्त होता है। सिर्फ अपने ही नहीं, अपने आस-पड़ोस, परिवार-समाज को भी (Why We Celebrate Diwali) दुख, उदासी के अंधियारे से बचाएं, यही दीपावली का वास्तविक (Significance Of Diwali) अर्थ है और संदेश भी।
जुट जाती है उत्साह-उमंग से
जब घर-परिवार और समाज की खुशहाली और समृद्धि की बात आती है तो घर की लक्ष्मी यानी स्त्री की महत्ता स्वयं रेखांकित हो जाती है, क्योंकि स्त्री ही तो धुरी है, हर घर-परिवार की और समाज की भी। उनकी सहभागिता के बिना दिवाली जैसे पर्वों की चमक निखर ही नहीं सकती। चाहे घर की साफ-सफाई की बात हो या विधि-विधान से पूजन की, तमाम तरह के पुए-पकवान बनाने की बात हो या घर को रंगोली से सजाने की। वे अपनी पूरी ऊर्जा-उमंग से जुट जाती हैं। चाहे संपन्न घर की महिला हो या साधारण परिवार की, तीज-त्यौहारों के लिए तन, मन से जुट जाना उनकी फितरत होती है। वे त्यौहार के उल्लास में कोई कमी नहीं आने देतीं। आज के आपा-धापी भरे समय में जब कई महिलाओं को घर और ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है। ऐसे में वक्त निकालना मुश्किल होता है, लेकिन घर-परिवार की खुशहाली के लिए वे त्यौहार की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। पूरे मन से घर के कोने-कोने में उत्साह, उमंग और खुशी के दीप प्रज्ज्वलित करना नहीं भूलतीं।
दूर करती है अंतर्मन का अंधियारा
दीपावली के मौके पर जब कोई गृहणी घर की साफ-सफाई में जुटती है तो वह अपने भीतर के तमाम अवगुणों जैसे-निराशा, टीस, अपनों से शिकायतों के मैल को भी झाड़-पोंछकर अंतर्मन को चमका लेती है। यानी वह उत्सव की बाहरी तैयारी, साफ-सफाई और सजावट के साथ ही अपने मन की भी स्वच्छता और अच्छी भावनाओं से सजाती चलती है। वास्तव में वह घर की हर चीज को सजा-संवार कर अपने भीतर की भावनाओं, अनुभूतियों की दुनिया को भी व्यवस्थित कर लेती है। इस तरह परिवार, रिश्तेदारों और मित्रों के प्रति स्नेह के नए भाव जन्म लेते हैं। अपने मन की मलिन भावनाओं के अंधेरे को मिटाकर दीप पर्व की संध्या को चारों ओर स्नेह की नई जगमग बिखेर देती है। उसके इस उत्साह, समर्पण भरे स्नेहिल प्रयास से उसके संबंधों में नई ऊर्जा संचारित हो उठती है।
संजोती हैं गौरवमयी परंपराएं
स्त्रियां केवल उत्साह-उमंग से त्यौहार की तैयारियों में ही नहीं जुटतीं, वे इस बात का भी पूरा ध्यान रखती हैं कि इन पर्वों को मनाने के साथ ही हमारी गौरवमयी परंपराएं बनी रहें। वे उन परंपराओं को खुद संजोने के साथ ही इस परिपाटी को अगली पीढ़ी को भी पूरे मन से सिखाती हैं। दरअसल, वे सांस्कृतिक परंपराओं का मूल्य समझती हैं। उन्हें इस बात का भी अहसास होता है कि ये परंपराएं ही हमारे समाज और पर्व-संस्कृति की पहचान हैं। इसीलिए दीपावली जैसे पर्व से जुड़ी बातें, इसमें अंतर्निहित संदेश, विधान वे अपने बेटे-बेटियों को सिखाना-बताना नहीं भूलती हैं।
सबकी खुशी का रखती हैं ध्यान
भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम की बात कही गई है। मतलब हम सब एक परिवार हैं। और परिवार के एक सदस्य की आंख में आंसू हो तो दूसरा किस तरह उल्लास मना सकता है? इस भावना को एक स्त्री बहुत गहराई से महसूस करती है। तभी तो दीपों के इस पर्व पर जैसे वह इस बात का ध्यान रखती है कि घर के किसी कोने में अंधेरा ना रह जाए, उसी तरह वह इस बात पर भी नजर रखती है कि उसके घर-परिवार में ही नहीं रिश्तेदारों, आस-पड़ोस में रहने वाले किसी के भी दिल में उदासी ना रहे। और अगर ऐसा कोई दिखता है तो अपने भरसक प्रयास से उसके दुख-उदासी के अंधेरे को दूर करने में जुट जाती है। दरअसल, स्त्री मन होता ही ऐसा है। वह केवल अपनी खुशी से खुश नहीं होता, उसे लगता है कि असली खुशी तभी महसूस होगी, जब उससे जुड़ा हर व्यक्ति खुश होगा। बिलासपुर में रहने वाली रजनी ने भी पिछली दिवाली पर ऐसा ही कुछ किया। उसके पड़ोस में अकेले रहने वाले रिटायर्ड कौशल अंकल की पेंशन किसी कारण रुक गई। अंकल को चिंता हुई, त्यौहार सामने है, कैसे क्या होगा? हालांकि उनकी एक बेटी है लेकिन उसकी शादी बिलासपुर से बहुत दूर जबलपुर में हुई है। वैसे तो पापा के कहते ही बेटी उनके पास आ जाती या कुछ पैसे जरूर भेज देती लेकिन त्यौहार के मौके पर वे बेटी को परेशान नहीं करना चाहते थे। इसलिए उदास थे।
रजनी को जैसे ही कौशल अंकल के पेंशन रुकने की बात पता चली, वह फौरन बाजार जाकर दिवाली पूजन सामग्री, मिठाई, झालर, दीये और गणेश-लक्ष्मी जी की प्रतिमा खरीद कर उनके पास पहुंच गई। इतना कुछ लिए रजनी को देखकर कौशल अंकल के चेहरे पर ढेर सारी मुस्कराहट, आंखों में खुशी के आंसू और जुबां से रजनी के लिए ढेरों आशीष बरसने लगे। इससे रजनी को महसूस हुआ जैसे उसकी दिवाली की खुशी भी कई गुना बढ़ गई। उसे इस बात की संतुष्टि मिली कि कम से कम उसे एक अकेले शख्स के जीवन में खुशी-रोशनी के कुछ पल शामिल करने का अवसर तो मिला। ऐसी ही होती हैं स्त्रियां, सबकी खुशी में अपनी खुशी महसूस करने वाली। हमें यकीन है, आप भी पूरे उत्साह, भरपूर उमंग और परंपरा-विधान के साथ दीपावली जरूर मनाएंगी। अपने और अपनों के ही नहीं खुद से जुड़े हर किसी के जीवन में खुशियों का प्रकाश फैलाने का हर संभव प्रयत्न जरूर करेंगी। शुभ दीपावली!
सरस्वती रमेश
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