सूर्य पूजन से पितामह भीष्म के देह त्याग तक मकर संक्रांति पर हुईं ये अहम घटनाएं, देखें शुभ मुहूर्त

Makar Sankranti Katha and Shubh Muhurat: हिंदू (Hindu) धर्म में नए साल की असल शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से मानी जाती है। इस त्योहार में भगवान सूर्य का पूजन किया जाता है। शीत ऋतु (Winter Season) के पौस मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो सूर्य की इस संक्रांति को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है। वैसे तो मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पिछले कुछ साल से गणनाओं में आए कुछ बदलाव के कारण इसे 15 जनवरी को मनाया जाने लगा है। 2023 में भी मकर संक्रांति का त्योहार 15 तारीख को ही मनाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे, तो सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाएगी।
मकर संक्रांति पर इन चीजों का विशेष महत्व
शास्त्रों के मुताबिक मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान और दान का बहुत ही अहम महत्व होता है। मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना ज्यादा फल देता है। मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी और कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का दिन चुना था। इसी दिन पर माता गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में मिली थीं।
जानिए मकर संक्रांति की पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत और देवी पुराण के मुताबिक शनि महाराज का अपने पिता से झगड़ा रहता था। कहा जाता है कि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देखा था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने छाया और उनके पुत्र शनि से खुद को अलग कर दिया। इस वजह से शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था। पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन, सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज की राशि कुम्भ को जला दिया।
इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ा। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे। कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था, इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन और वैभव से भर जाएगी। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव वापस मिला था, इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्रांति पर तिल से सूर्य और शनि की पूजा की जाती है।
स्नान से दान तक मकर संक्रांति पर ये शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में जाते हैं। माना जाता है कि जब शनि देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो काले तिल से सूर्य की पूजा करते हैं।
यहां देखिये शुभ मुहूर्त:-
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश - रात 08 बजकर 57 मिनट (14 जनवरी 2023)
मकर संक्रांति पुण्यकाल - 07:17 पूर्वाह्न - 5:55 अपराह्न (15 जनवरी, 2023)
अवधि - 10 घंटे 38 मिनट
मकर संक्रांति महा पुण्यकाल - प्रातः 07:17 - सुबह 9:04 (15 जनवरी, 2023)
अवधि - 01 घंटा 46 मिनट
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है।)
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