Global Warming: 2050 तक पिघल जाएंगे एक तिहाई ग्लेशियर, UNESCO की रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे

Global Warming: 2050 तक पिघल जाएंगे एक तिहाई ग्लेशियर, UNESCO की रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे
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ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर तेजी के साथ पिघलते जा रहे हैं। दुनियाभर के एक तिहाई ग्लेशियर प्रभावित हुए हैं। यूनेस्को की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पर्यटन उद्योग भी प्रभावित हो रहा है। पढ़िये रिपोर्ट...

Effect Of Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के चलते विश्व भर के कई ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। यूनेस्को (UNESCO) की एक रिपोर्ट से डराने वाले तथ्य सामने आए हैं। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 तक दुनियाभर के कई ग्लेशियर पिघल सकते हैं। यूनेस्को ने 2050 तक पिघल जाने वाले ग्लेशियर की लिस्ट साझा की है, जिसमें येलोस्टोन (Yellowstone) और किलिमंजारो नेशनल पार्क (Kilimanjaro National Park) समेत कई विश्व धरोहर स्थलों के ग्लेशियर शामिल हैं। यूनेस्को ने ग्लेशियर के पिघलने को लेकर चेतावनी जारी की है। साथ ही, इन्हें पिघलने से रोकने के लिए जल्द ही मजबूत कदम उठाने की अपील की है।

यूनेस्को की रिपोर्ट की मानें तो जलवायु परिवर्तन की वजह से 50 विश्व धरोहर स्थलों में शामिल एक तिहाई ग्लेशियर साल 2050 तक पिघल सकते हैं। यूनेस्को ने बताया कि अगर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ता है, तो जगहों में बाकी दो तिहाई ग्लेशियर को बचाना संभव है। एक स्टडी में पता चला है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वजह से साल 2000 से दुनियाभर के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसकी वजह से तापमान भी तेजी से गर्म हो रहा है। इससे माना जा रहा है कि 50 विश्व धरोहर स्थलों में शामिल एक तिहाई ग्लेशियर साल 2050 तक पूरी तरह पिघल सकते हैं। इस लिस्ट में किलिमंजारो नेशनल पार्क और माउंट केन्या का नाम भी शामिल हैं।

टूरिज्म इंडस्ट्री पर पड़ रहा असर

वहीं यूरोप, फ्रांस और स्पेन में पाइरेनीस मोंट पेर्डु में ग्लेशियर और इटली में डोलोमाइट्स के 2050 तक पिघलने की संभावना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का मतलब है कि लाखों लोगों के लिए पानी की कमी। यह बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते जोखिम का भी बढ़ावा देता है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से लाखों लोग अपने घरों और शहरों को छोड़ने के लिए भी मजबूर हो जाएंगे। एक तिहाई स्थानों में ग्लेशियरों को बचाना लगभग असंभव है, लेकिन शेष को बचाया जा सकता है। बता दें कि यूनेस्को की इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद पर्यटन उद्योग के सामने बड़ी चुनौती आकर खड़ी हो गई है क्योंकि इस इंडस्ट्री का कार्बन उत्सर्जन में बहुत बड़ा हाथ रहा है।

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