Holi Special Gulal Gota: शाही अंदाज में Eco-Friendly होली का उठाएं लुत्फ, जानें क्या है गुलाल गोटा

What is Holi Special Gulal Gota: हिंदू धर्म के सबसे बड़े और अहम त्योहारों में से एक होली बस आने ही वाला है। यह खुशियों और रंगों का त्योहार होता है। प्राचीन काल से मनाए जाने वाले इस त्योहार पर सभी लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं और मिठाइयां खिलाते हैं। यह प्यार और एकता का त्योहार होता है, इस दिन सभी लोग अपने आपसी मतभेदों को भूलकर इन्हें प्यार से मनाते हैं। लेकिन, हर होली पर सबसे बड़ी समस्या रंगों की होती है, क्योंकि स्किन पर हर तरह के रंगों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही कुछ रंग स्किन के साथ ही नेचर के लिए भी ठीक नहीं होते हैं। ऐसे में आज हम आपको बहुत ही बेहतरीन और इको-फ्रेंडली गुलाल गोटा के बारे में बताएंगे, जो वर्षों से हर होली उत्सव का हिस्सा रहे हैं और अब एकबार फिर बाजारों में इनकी मांग बढ़ी है। अब सवाल उठता है कि गुलाल गोटा क्या चीज है, आइए बिना वक्त बर्बाद किए देखते हैं।
जानिए पारंपरिक गुलाल गोटा के बारे में
बाजार में सस्ते सिंथेटिक रंग धड़ल्ले से बिक रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद पारंपरिक गुलाल गोटा या प्राकृतिक सूखे रंगों से भरे लाख के गोले बाजारों में वापसी कर रहे हैं। गोल आकार का गुलाल गोटा पारंपरिक रूप से जयपुर में बनाया जाता है, जहां कुछ मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से इस काम में लगे हुए हैं। गुलाल गोटा का इस्तेमाल करने की परंपरा 400 साल पहले की है, लाख से बनी ये गेंदे प्राकृतिक रंगों से भरी होती हैं, जो इंसान के शरीर से टकराते ही टूट जाती हैं, जिससे फिजाओं में रंग और खुशबू फैलने लगती है। बता दें कि पानी के गुब्बारे और पानी की बंदूकों के मुकाबले, गुलाल गोटा बिल्कुल भी नुकसानदायक नहीं होता है।
बाजारों में गुलाल गोटे की मांग बढ़ी है
कारीगरों का कहना है कि गुलाल गोटे की मांग हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी है। रंगों से स्किन को होने वाले नुकसान के कारण युवा पीढ़ी गुलाल गोटे की ओर आकर्षित हो रही है। कारीगरों के मुताबिक गुलाल गोटे की सबसे अच्छी बात यह है कि यह इतने पतले और नाजुक होते हैं कि इन्हें आसानी से हाथ से तोड़ा जा सकता है। गुलाल गोटा अभी भी पूर्व शाही परिवारों का पसंदीदा है और उनके होली समारोह में अहम भूमिका निभाता है।
भारत के मंदिरों में आज भी इस्तेमाल होता है गुलाल गोटे का
गुलाल गोटा निर्माण उन पारंपरिक कलाओं में से एक है, जिसे और बढ़ावा दिया जा रहा है। यह एक सुंदर भारतीय शिल्प और परंपरा का हिस्सा है, जो दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर रही है। राजस्थान ही नहीं आसपास के दूसरे शहरों से भी गुलाल गोटा की डिमांड आ रही है। बताते चलें कि व्यक्तिगत समूहों और मंदिरों के अलावा गुलाल गोटा अब व्यापक रूप से कार्यक्रमों और पार्टियों में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। लोक कथाओं के मुताबकि जयपुर में शाही परिवार के सदस्य अपने राज्य में घूमते थे और राहगीरों पर गुलाल गोटा फेंकते थे। गुलाल गोटे का इस्तेमाल भारत के कई मंदिरों में किया जाता है, इनका यूज सबसे ज्यादा जयपुर, मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में होता है।
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