Relationship Tips: अपने इमोशंस का ना होने दें एक्सप्लॉयटेशन, समझें लोगों की मानसिकता

Relationship Tips: भावनाओं (Emotions) से भरा मन ईश्वरीय उपहार-सा होता है। ना केवल अपने लिए, करीबी अपनो और परायों के लिए भी। लेकिन तकलीफदेह बात यह है कि कई बार इमोशंस भी एक्सप्लॉयटेशन (Exploitation of Emotions) का कारण बन जाते हैं। पराए ही नहीं, परिवारजन और सगे-संबंधी भी किसी की संवेदनाओं भरी समझ को अपना स्वार्थ साधने का जरिया बना लेते हैं। भावुक मन (Emotional Mind) की सहजता को कमजोरी मानकर अपने मन-मुताबिक व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे लोग भावुकता और मददगार सोच को बेवकूफी समझकर किसी भले इंसान के अच्छे कामों को अनदेखा करते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि दूसरों की इस नेगेटिविटी (Negativity) भरी सोच के कारण आप अपना व्यवहार बदल लें, लेकिन आपके भाव और लगाव ऐसे लोगों पर खर्च ना हों, यह तय होना भी जरूरी है।
मदद करें, मुसीबत ना पालें
घर हो या बाहर, हर समय किसी की मदद को तैयार रहने का जज्बा अच्छा है। लेकिन इस सहृदयता के साथ थोड़ी सजगता की भी दरकार जरूरी है। सहायता करने का नतीजा अगर समस्या के रूप में सामने आने लगे तो जरूरी है कि आप समय से संभल जाएं। कई लोग सहज मन से की जा रही सहायता को आपकी नासमझी मान बैठते हैं। कई लोग तो ऐसे भी होते हैं, जो मदद करने वाले को बेवकूफ समझ कर उससे बात-बात में अपना स्वार्थ साधने लगते हैं। यहां तक कि मदद मांगने के बहाने इस तरह के लोग आपकी भावनाओं को कंट्रोल करने लगते हैं। धीरे-धीरे ऐसे नेचर के लोग आभार के भाव के साथ सहायता लेने के बजाय ऑर्डर देने लगते हैं। और अगर इनकी मदद ना की जाए, तो ये नाराज होने की छूट भी लेते हैं बल्कि मदद ना करने के लिए ताने या छींटा-कशी भी करते हैं। इसे सही तरह से समझा जाए, तो यह एक तरह का जाल होता है। इस जाल में फंसने पर भविष्य में खुद को इससे निकाल पाना काफी मुश्किल हो जाता है। दरअसल, ऐसे लोग कहीं ना कहीं आपकी सहजता और सहायक सोच का सधे-सटीक ढंग से फायदा उठाते हैं। स्वार्थपरक विचार रखने वाले लोग मदद मांगते भर नहीं बल्कि आपसे मिलने वाली सहायता पर अपना हक समझने लगते हैं। आपको होने वाली परेशानी को अनदेखा कर सिर्फ खुद के बारे में सोचते हैं। इन हालातों तक पहुंचने से पहले जरूरी है कि आप चेत जाएं।
ना कहना सीखें
भले लोग किसी की मदद करते समय यह नहीं सोचते कि इसके बदले में उन्हें क्या मिलेगा? मन के अच्छे और सच्चे लोग निश्छल भाव से दूसरों की हर संभव मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लेकिन तकलीफदेह बात यह है कि कई बार इस अच्छे व्यवहार की बदौलत भी बुरा बर्ताव हिस्से में आता है। उन्हें अपनी सहृदयता की कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसे में समय रहते ना कहना सीख लेना चाहिए। खुद को परेशानी में डालकर हर बार किसी की मदद करने के फेर में ना पड़ें। अगर परिस्थितियां, परिवेश या पर्सनल फ्रंट पर चीजें सहज ना हों तो मदद करने के लिए मना कर देना ही बेहतर है। इस मामले में वर्चुअल दुनिया में तो खास सजगता बरतें। मौजूदा समय में फाइनेंसियल, इमोशनल या किसी और तरह की सहायता, मदद मांगने और मदद करने को लेकर बनी परिस्थितियों का फैलाव ही हुआ है। ऐसे में अंजान चेहरों की मायावी दुनिया में मदद करने के फेर में ना ही पड़ें तो अच्छा है।
समझें मानसिकता
जिंदगी, साथ देने या सहयोग करने का हिसाब-किताब भर नहीं है। ना ही दुःख-तकलीफ में कुछ पल किसी का हाथ थाम कर बैठने या मन की सुनने का बहीखाता है। फिर भी यह ख्याल आना लाजिमी है कि संवेदनशील मन के लोगों को बदले में छल ही क्यों मिलता है? जाने-अनजाने उनकी भावुकता दूसरों के लिए एक हथियार बन जाती है, जो मदद के नाम पर फायदा उठा लेने के बाद खुद उनके ही खिलाफ चलाए जाते हैं। समय पर साथ देने के बावजूद उनकी भावनाओं की कद्र नहीं की जाती। चालाकी भरी ऐसी चालें आगे के लिए भी किसी की सहायता करने के व्यवहार को ठेस पहुंचाती हैं। जबकि हर इंसान ऐसा नहीं होता कि मदद का मान करने में कोताही बरते। हमारे आस-पास अच्छे लोग भी होते हैं। इस अच्छेपन को बचाए रखने के लिए मदद भरा व्यवहार जरूरी भी है। हां, अपने मन और मान के मुताबिक मदद का हाथ आगे बढ़ाएं, ना कि उनकी चालाकियों के जाल में फंसकर। सहृदय सोच के साथ सतर्क व्यक्तित्व का होना भी बहुत जरूरी है ताकि आपकी भावनाओं को छला ना जाए।
लेखक- डॉ. मोनिका शर्मा (Monika Sharma)
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