Mother's Day 2019 : भारत की इन 5 सफल बेटियों ने सुनाई मां की कहानी

Mothers Day 2019 : भारत की इन 5 सफल बेटियों ने सुनाई मां की कहानी
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Mothers Day 2019 : हर मां का अपने बच्चे से जुड़ाव बहुत अनोखा और गहरा होता है। वह सिर्फ अपने बच्चे का पालन-पोषण ही नहीं करती, उसके जीवन को संवारती है, उसे हर कदम पर संबल देती है और सफल बनाने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। अलग-अलग क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियां सहेली से साझा कर रही हैं कि उनकी मां ने उन्हें कैसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया? सफल बनाने में किस तरह का योगदान दिया?

Mothers Day 2019 : हर मां का अपने बच्चे से जुड़ाव बहुत अनोखा और गहरा होता है। वह सिर्फ अपने बच्चे का पालन-पोषण ही नहीं करती, उसके जीवन को संवारती है, उसे हर कदम पर संबल देती है और सफल बनाने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। अलग-अलग क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियां सहेली से साझा कर रही हैं कि उनकी मां ने उन्हें कैसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया? सफल बनाने में किस तरह का योगदान दिया?

मां के भरोसे ने कभी कम नहीं होने दिया मेरा आत्मविश्वास अरुणा ब्रूटा, मनोवैज्ञानिक

मां तो धरती है, मां के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है। मां हमें बनाती-संवारती है। मां से अच्छा कोई साइकोलॉजिस्ट नहीं है, वह हमारे सारे दुखड़े सुनती है। मां सही दिशा देती है, मां आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। मेरे जीवन की प्रेरणा, मार्गदर्शक, संबल मेरी मां इंदिरावती दत्त ही थीं। मैं जब तेरह साल की थी, तब पिता जी गुजर गए।ऐसे में मां ने पिता की भूमिका का निर्वाह भी हम बच्चों के जीवन में किया।

उन्होंने हमेशा मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, कभी मेरा आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया। जब मैंने मां से कहा कि मुझे मनोवैज्ञानिक बनना है तो मां ने सवाल किया कि तुम मनोवैज्ञानिक क्यों बनना चाहती हो? मैंने जवाब दिया कि मैं मानसिक रूप से बीमार लोगों का उपचार करना चाहती हूं, उन्हें ठीक करना चाहती हूं।

मां ने पूछा कि तुम्हें मनोवैज्ञानिक बनने का ख्याल कैसे आया? मैंने जवाब दिया कि रास्ते में एक मानसिक रोगी को देखा, जिसे बच्चे पत्थर मार रहे थे तो मेरा मन बहुत दुखी हुआ। उस समय मुझे उसे ठीक करने की बात मन में आई। तब मां ने कहा, 'आगे बढ़ो बेटा, मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे पीछे खड़ी हूं।'

जबकि उस समय देश में साइकोलॉजी के लिए बहुत ज्यादा स्कोप नहीं था, लेकिन मां को मुझ पर भरोसा था कि मैं अपने सपने को पूरा करूंगी। मेरे सपने को पूरा करने में मां ने भी पूरा साथ दिया। मेरी मां बहुत संवेदनशील थीं और मुझे लगता है कि उनकी यही संवेदनशीलता मेरे भीतर आई, इस वजह से ही मुझे मानसिक रोगियों की पीड़ा का अहसास हुआ, उनके लिए कुछ करने का जज्बा मेरे अंदर जागा।

लेकिन मेरी मनोवैज्ञानिक बनने की राह में मुश्किलें आ सकती थीं, अगर मां ने साथ न दिया होता। मुझे याद है कि घर में मेरे छोटे भाई ने रोका था कि इस फील्ड में करियर बनाना ठीक नहीं है, जबकि मां ने हमेशा कहा कि जो भी अरुणा करना चाहती है, उसे करने दो, हम उसे आगे बढ़ाएं। मुझे लगता है कि अगर मेरे सपने को पूरा करने में मां का साथ न मिला होता तो मैं ऐसा नहीं कर पाती। मेरी मां मेरा संबल ही नहीं थीं, वह मुझ पर बहुत भरोसा भी करती थीं।

मैंने भी हमेशा उनके विश्वास को बनाए रखा। अगर कभी ऐसा होता कि मैं सहेलियों के साथ पिक्चर देखने जाती और आने में देर होने लगती तो भाई चिंता करने लगते, तब मां कहतीं, 'चिंता मत करो, आ जाएगी।' यह मां का भरोसा ही था कि कभी मेरा आत्मविश्वास कमजोर नहीं हुआ।

जब मैंने कार चलाना सीखना शुरू किया तो एक दिन सुबह चार बजे नई गाड़ी लेकर इंडिया गेट चली गई। जब ब्रूटा साहब की नींद खुली और उन्होंने घर में मुझे और गाड़ी को नहीं देखा तो मां को जगाया और सारी बात बताई। ब्रूटा साहब को डर था कि कहीं मैं ड्राइविंग करते हुए खुद को नुकसान न पहुंचा लूं, इस बात को उन्होंने मां से कहा। तब मां ने कहा, 'अरुणा जीती-जागती वन पीस ही वापस आएगी, चिंता मत करो।' कुछ समय बाद मैंने कार चलाना सीख लिया।

एक दिन मैं मां और अपने हसबैंड को लेकर गाड़ी चलाकर कनॉट प्लेस गई। वहां से लौटते वक्त इंडिया गेट के पास एक साइकिल सवार गाड़ी के आगे चल रहा था, मैंने हॉर्न बजाया पर वो नहीं हटा और कार उस लड़के की साइकिल से टकरा गई। यह देखकर मेरे पति बोले, 'अरे, देख तूने मार दिया।' लेकिन साइकिल सवार बिल्कुल ठीक था। इस पर मां ने कहा, 'साइकिल वाले का मन था कि एक सुंदर लड़की की कार से टकरा जाए।'

ऐसा कहकर वह मेरे कॉन्फिडेंस को कम नहीं होने देना चाहती थीं, ताकि मैं डर के मारे गाड़ी चलाना कहीं छोड़ न दूं। इस तरह की कई छोटी-छोटी बातों के जरिए मां ने हमेशा मुझे सपोर्ट दिया। मां की बातें मुझे अहसास कराती थीं कि उन्हें मेरी क्षमताओं पर बहुत यकीन है। मैंने भी उनका विश्वास कभी डिगने नहीं दिया, कभी हार नहीं मानी। हर मुश्किल काम को करके दिखाया। मेरे जीवन में ही नहीं, हर बच्चे के जीवन में मां की भूमिका बहुत ही बड़ी होती है।

बच्चों की अच्छी परवरिश करना दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है, जिसे एक मां बखूबी निभाती है। ऐसे में हमें भी मां के महत्व को समझना चाहिए। हमेशा याद रखना चाहिए कि मां के बिना हम कुछ भी नहीं हैं। मां ही हमारे जीवन को दिशा देती है, एक दृष्टि देती है। ऐसे में जितना संभव हो, उनके प्रति आभार को व्यक्त करना चाहिए, उनसे प्रेम करना चाहिए।

संभव नहीं मां के प्रति आभार व्यक्त करना साहित्यकार

मां कभी बदलती नहीं, वही है जो सिर्फ देने में विश्वास करती है। मां के महत्व को कम या ज्यादा करके नहीं आंका जा सकता। मेरे जीवन में मां का जो महत्व है, उसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। आजकल मैं उन पर संस्मरण लिख रही हूं, जिसका शीषर्क है 'ओ मेरी मां सखी', इसमें मां से जुड़े सारे अहसासों को समेट रही हूं। मेरी मां, जिनका नाम केसर कुमारी था, उन्हें गुजरे हुए बहुत वर्ष हो गए हैं लेकिन मैंने कभी उनसे खुद को अलग नहीं पाया है।

उनकी बातें, सीखें, अहसास सब मेरे भीतर बने हुए हैं। मैं कभी नहीं भूल सकती हूं कि मां ने किस तरह हम बच्चों का लालन-पालन किया। जब मैं छठीं क्लास में थी, तभी मेरे पिता चल बसे थे। वसंत पंचमी की वह रात मुझे भूलती नहीं है, जब पिता का साया हमारे सिर से उठ गया था। वह बहुत ही प्रेम करने वाले पिता थे, पति थे। मां को वह पटरानी की तरह मानते और हम चार बहनों को शहजादी की तरह प्यार करते थे।

एक दिन अचानक पिता का साया हमारे सिर से उठ गया तो लगा सब कुछ बिखर गया। लेकिन मां ने घर-परिवार और हम बच्चों को बिखरने नहीं दिया, उन्होंने सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। मां ने अपने जमाने में घर पर मास्टर जी से सिर्फ 40 दिन पढ़ा था, लेकिन उन्हें बीस तक पहाड़े याद थे। वह हिंदी, उर्दू पढ़ना जानती थीं। पिता के जाने के बाद मां ने सारी कानूनी कार्यवाही, कागजात, पॉलिसी, बैंक के सारे काम संभाले।

जरा सोचिए, कभी घर से बाहर न निकलने वाली मां ने किस तरह हम चार बेटियों को एमए, पीएचडी कराया होगा। जबकि उस समय बेटियों को स्कूल भेजने, पढ़ाने की बात पर लोग सोचते थे कि ये पढ़कर क्या करेंगी और जब बाहर जाएंगी तो इन पर निगरानी कौन करेगा? लेकिन मां ने कभी ऐसी बातों की परवाह नहीं की।

शांति से अपने लक्ष्य को पाने के लिए अडिग रहीं और हमें पढ़ाती रहीं। साथ ही मां ने हमें इस बात की सीख भी दी कि जीवन बेहतर तरीके से कैसे जिया जाए? इसके लिए कभी कोई उपदेश नहीं दिया। पूरी तरह स्वतंत्र होने के बावजूद हम बच्चे हमेशा अनुशासन में रहे।

दरअसल, मां ने अपनी बेटियों में यह विवेक पैदा किया कि कहां जाना है? क्या पहनना है? क्या सोचना है? साथ ही मां ने कभी हमारी किसी इच्छा को दबाया नहीं, हमेशा उसे पूरा किया। मुझे याद है एक बार मुझे सितार चाहिए था तो मां ने सितार लाकर दिया। लेकिन मैंने देखा कि मां के गले में जो सोने की चेन थी, वह नहीं थी।

आज भी जब मैं कभी सितार, तानपुरे के तार देखती हूं तो मुझे मां की वो चेन याद आती है। मां का त्याग, संघर्ष इतना था कि उसका आभार व्यक्त करना हम बच्चों के लिए संभव नहीं है। मां की मेहनत का फल था कि उनकी शिक्षित बेटियों को अच्छे घर-परिवार मिले।

मेरे जीवन में तो मां प्रेरणा हैं ही, साथ ही मेरे लिखे साहित्य में भी उनका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। मेरे साहित्य के स्त्री चरित्रों की प्रेरणा मां ही हैं। अकसर मां कहती थीं-बड़ा होना उतना जरूरी नहीं है, जितना जरूरी है सही होना। ऐसी सीखें हर मां अपने बच्चों को देती है।

इस मदर्स-डे पर मैं पाठिकाओं से कहना चाहूंगी कि मां का प्यार, सीखें अनमोल पूंजी है, जो हमेशा साथ बनी रहती है, समय आने पर यह पूंजी काम आती है, सही रास्ता सुझाती है। ऐसे में मां के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर मिले तो उससे चूकना नहीं चाहिए।

उन्होंने खुद की ताकत को पहचानने का मौका दिया जैस्मिन भसीन, टीवी एक्ट्रेस

मैं मां के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती हूं। आज मैं टीवी वर्ल्ड में एक अलग मुकाम हासिल कर सकी हूं, उसका सारा श्रेय मेरी मां को जाता है। आज मैं कॉन्फिडेंस के साथ, बिना डरे किसी से भी बात कर सकती हूं, कहीं भी जा सकती हूं। लेकिन स्कूल टाइम मैं बहुत ही शर्मीली लड़की थी, छोटी-छोटी बातों से भी डर जाती थी।

एक बार की बात है, मैं मां के साथ गुरुद्वारे गई, हम वहां से घर लौटने की तैयारी कर रहे थे तो मैंने देखा कि एक लड़का सड़क के किनारे खड़ा होकर मुझे देख रहा है। मैंने मां से कहा कि मां दूसरे रास्ते से घर चलते हैं। मां ने कारण पूछा तो मैंने उस लड़के के बारे में बताया।

तब उन्होंने कहा, 'जीवन में कई बार तुम्हें बुरे लोग मिलेंगे, तो कितनी बार रास्ता बदलोगी, इन लोगों से मुकाबला करना सीखो, कभी डरो मत।'मैंने मां की बात मानी और अपना रास्ता नहीं बदला।मां की इस बात ने मुझे कॉन्फिडेंस दिया, खुद की ताकत को पहचानने का मौका दिया।

आज भी मां की सीख और प्यार की वजह से ही मैं एक इंडिपेंडेंट लड़की बन गई हूं। मदर्स-डे पर सभी पाठिकाओं से कहना चाहती हूं, सिर्फ मदर्स-डे पर ही नहीं, हर दिन मां को स्पेशल फील करवाएं। उनके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए हमेशा कोशिश करें। मां खुश रहेंगी तो हमारे जीवन में भी खुद-ब-खुद खुशियां बनी रहेंगी।

मां को जितना प्यार-सम्मान दिया जाए कम ही है भारती तनेजा, ब्यूटी एक्सपर्ट

मेरी मां का नाम अवतार कौर अरोड़ा है। वह मेरे जीवन का आधार हैं, मेरा संबल हैं। उनके बिना मैं अधूरी हूं। मुझे याद है जब मैं स्कूल नहीं जाया करती थी, तब मां घर में ही मुझे पढ़ाती थीं, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं। लेकिन जितना ज्ञान उनके पास था, उन्होंने मुझे दिया। मुझे इतना परफेक्ट बना दिया कि जब स्कूल में मेरा एडमिशन होने का समय आया तो मैं तय उम्र से एक साल छोटी थी, लेकिन दूसरे बच्चों से ज्यादा जानती थी।

यह सब मम्मी की वजह से ही मुमकिन हुआ, क्योंकि वह मेरी स्टडी को लेकर हमेशा कॉन्शस रहीं। मुझे पेंटिंग का शौक भी था, मां ने मुझे पेंटिंग करने के लिए मोटिवेट किया। वह मेरी हर पेंटिंग को संभाल कर रखती थीं। उन्होंने मुझे क्रिएटिव काम करने के लिए मोटिवेट किया। मैं आज इस मुकाम पर हूं तो उसमें मेरी मां का बड़ा योगदान है, क्योंकि उन्होंने मुझे खुद पर भरोसा करना सिखाया।

लेकिन मेरे लिए यह मुकाम हासिल करना मुमकिन न होता अगर मेरी दूसरी मां यानी सासू मां का साथ, प्यार और संबल न मिला होता। सासू मां ने मुझसे शादी के बाद कहा, 'बेटी तुम बहुत कुछ कर सकती हो, आगे बढ़ो और अपने सपनों को पूरा करो।' उन्होंने मुझे 2000 रुपए दिए। मैंने इस राशि में अपना बिजनेस शुरू किया।

साथ ही मेरी सासू मां अपने जानकार लोगों के बीच, किटी पार्टियों में, शादी-ब्याह के फंक्शन में, मेरे काम का प्रमोशन करती थीं, इस तरह मेरा बिजनेस और बढ़ा। मेरे काम की, मेरी व्यवहार की तारीफ सासू मां हर किसी से करती थीं तो लोग इंप्रेस होते थे।

उन दिनों ब्यूटी की पढ़ाई के लिए इंडिया में अच्छे इंस्टिट्यूट नहीं थे, तब मुझे कई बार विदेश जाना पड़ता था, उस समय मेरी सासू मां ही घर, बच्चों और मेरे बिजनेस को संभालती थीं। सासू मां का ऋण तो मैं कभी नहीं चुका सकती हूं। मदर्स-डे पर भावी पीढ़ी को मैं यही कहना चाहूंगी कि अपनी मां का सम्मान करें।

आज लोग खुद में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि उनके पास अपनी मां के लिए भी समय नहीं होता है। लेकिन हमको नहीं भूलना चाहिए कि बचपन में किस तरह मां अपना सारा समय हमें देती थीं, हर सवाल का जवाब देती थी, उलझनों को सुलझाती थीं। मां को जितना प्यार, सम्मान दिया जाए, वह कम है। हैप्पी मदर्स-डे।

हमारे संघर्ष में मां कदम-दर-कदम साथ बनी रहीं गीता फोगट, रेसलर

सभी जानते हैं कि हम बहनों को इंटरनेशनल लेवल का रेसलर बनाने में हमारे पिता महावीर सिंह फोगट का बहुत बड़ा योगदान रहा है, लेकिन हम जिस मुकाम पर हैं, वह हासिल न कर पाते अगर मां दया कौर का साथ न मिला होता। मेरी मां बहुत ही सुलझी हुईं, शांत स्वभाव की महिला हैं, वह हमें बहुत ही ज्यादा प्यार करती हैं।

हमारे रेसलर बनने के संघर्ष में मां कदम-दर-कदम पर साथ बनी रहीं, हौसला देती रहीं। उनका संघर्ष भी उतना ही था, जितना हमने किया, पिता ने किया। इस बात को हम बहनें कभी नहीं भूल सकती हैं। मुझे याद है, जब कभी ट्रेनिंग के दौरान पापा ज्यादा सख्ती करते थे तो हम मां के आंचल तले ही सुकून पाते थे। कई बार उनसे मैं और बबिता कहते थे कि मां हमसे कुश्ती नहीं हो पाएगी।

तब मां हमें प्यार से समझाती थीं, 'बेटी, आज अगर मेहनत करोगी तो ही आगे सफलता मिलेगी, फिर आगे का जीवन खुशहाल रहेगा, कोई समस्या नहीं आएगी।' मां की ये बातें बहुत हौसला देती थीं। उनकी बातों से हमारे अंदर जोश आ जाता था। हम पिता के साथ मिलकर जी-जान से कुश्ती की ट्रेनिंग में लग जाते थे। मां यह भी कहा करती हैं कि कभी असफलता मिले तो निराश मत होना, आगे और मेहनत करना।

जब हम कुश्ती की ट्रेनिंग करते थे तो आस-पास और गांव के लोग पिता जी से ही नहीं मां से भी कहते थे कि बेटियों से घर का काम करवाओ कुश्ती नहीं। लेकिन मां किसी को कोई जवाब नहीं देती थीं। हां, हमसे जरूर कहती थीं कि कभी खुद को किसी से कम मत समझना, किसी से डरना नहीं, बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं होता है।

मां की इन बातों ने हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ाया, हमें निर्भीक बनाया। मां का मानना है कि हम कितने ही बड़े और सफल क्यों न हो जाएं, हमें जमीन से जुड़े रहना चाहिए, बड़ों का सम्मान करना चाहिए। हमने भी इन बातों को अपने जीवन में अमल किया। हम बहनें, मां का ऋण तो कभी नहीं चुका पाएंगी लेकिन कोशिश रहती है कि उन्हें हमेशा खुशियां दें। इस मदर्स-डे पर भी उनके लिए कुछ खास करने की कोशिश करेंगे।

लेखिका - पूनम बर्त्वाल

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