Mother's Day 2019 : संतान के जीवन को सफल-सार्थक बनाने वाली मां तब कर लेती है अपना हृदय कठोर

Mothers Day 2019 : महज एक शब्द है-मां, आई, माई, अम्मा, अम्मी। लेकिन इस एक शब्द की अभिव्यक्ति के लिए संसार का सारा भाषा ज्ञान कम है। हिंदी के प्रसिद्ध कवि चंद्रकांत देवताले की एक कविता की पक्तियां हैं-'मैंने धरती पर कविता लिखी है, चंद्रमा को गिटार में बदला है, समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया, सूरज पर कभी भी कविता लिख दूंगा, मां पर नहीं लिख सकता कविता।'
कवि की बात बिल्कुल सही है, मां के प्रति अपनी भावनाओं को, उनके प्रति आभार को अभिव्यक्त करने के लिए जितना कहा जाए, उतना कम है। मां का व्यक्तित्व है ही इतना विराट कि उसकी व्याख्या संभव नहीं है। जैसे ईश्वर की विराटता को, महानता को आंका नहीं जा सकता है, उसी तरह मां के प्रेम का, उसकी ममता का आभार व्यक्त करना असंभव है।
मां हमारे लिए ईश्वर का प्रतिरूप है, हमारे अस्तित्व का आधार है, क्योंकि एक वही तो है जो अपना पूरा जीवन संतान के जीवन को संवारने के लिए समर्पित कर देती है। मां अपने बच्चों के लिए समय-समय पर अलग-अलग भूमिकाओं का निर्वाह निस्वार्थ भाव से करती है, जिससे संतान एक सफल, सार्थक जीवन जी सके।
निभाती है मार्गदर्शक की भूमिका
मां हमारी पहली शिक्षिका, पहली गुरु होती है, वही हमें जीवन के सारे पाठ पढ़ाती है। बचपन में मां की अंगुली थामे हम चलना सीखते हैं, बड़े होने पर भी मां की सीखें, बातें हमेशा हमारा मार्गदर्शन करती हैं। चाहे मां साथ रहे या न रहे, लेकिन ताउम्र हमारी मार्गदर्शक बनी रहती है। हमारे ही नहीं महान लोगों के जीवन में भी मां का महत्व बहुत ज्यादा रहा है, मां के मार्गदर्शन से ही वे सफल बने।
महात्मा गांधी के बचपन से जुड़ा एक ऐसा ही वाकया है। एक बार की बात है, उनके बड़े भाई ने उन्हें किसी बात पर चांटा मार दिया। वह रोते-रोते मां के पास पहुंचे। मां किसी काम में बहुत व्यस्त थीं। जब मोहन (महात्मा गांधी का नाम) ने उनसे जाकर बड़े भाई को डांटने को कहा तो वह खीझ गईं और बोली, 'जा उसने तुझे मारा है तू भी उसे मार दे।' इस पर मोहन ने कहा, 'मां तुम कहती हो कि बड़ों का आदर करना चाहिए, भइया मुझसे बड़े हैं, मैं कैसे उन पर हाथ उठा सकता हूं।
आप भइया से बड़ी हो, उन्हें आप ही डांटो।' मोहन की बात सुनकर मां की आंखें भर आईं। उन्होंने मोहन को प्यार से गले लगा लिया और कहा जीवन भर इस सीख को याद रखना। आगे चलकर महात्मा गांधी ने ऐसा ही किया और अपनी मां की सीख, उनके मार्गदर्शन को हमेशा याद रखा। इसी तरह मां की सीख, मां का व्यवहार, एक संतान को सही मार्गदर्शन देता है, जिससे वह एक सफल-सार्थक जीवन जी पाता है।
मां जैसा कोई दोस्त नहीं
मां हमारी पहली शिक्षिका तो है ही, वह हमारी सच्ची दोस्त भी है। बचपन में मां के साथ हम खेलते हैं। उस दौरान हंसते-मुस्कुराते हुए वह हमारा साथ देती है। फिर जब हम थोड़े बड़े होते हैं तो अपने मन की हर बात, हर उलझन को मां से ही साझा करते हैं, क्योंकि जानते हैं कि वह हमें समझेगी, हमें संबल देगी।
कभी हम कोई गलती करते हैं तो भी मां को ही सबसे पहले बताते हैं। यह जानते हुए भी कि मां नाराज होगी, उसका दिल दुखी होगा, हम अपनी गलती उसके आगे ही स्वीकार करते हैं और मां की माफी का इंतजार भी करते हैं। ये सभी बातें मां और हमारे बीच दोस्ती के रिश्ते को और मजबूत करती हैं।
तब मां कर लेती है अपना हृदय कठोर
मां का हृदय बहुत कोमल होता है, बच्चे को जरा तकलीफ हुई नहीं कि वह घबरा जाती है, उसकी आंखें नम हो जाती हैं। लेकिन संतान की भलाई के लिए मां अपने कोमल हृदय को कठोर करना भी जानती है। जब कभी संतान की तरक्की के लिए, उसे खुद से दूर करने की स्थिति आती है तो मां सबसे पहले तैयार होती है और सबको संबल देती है।
मां जानती है कि उसका यह त्याग संतान के भावी जीवन के लिए जरूरी है। प्रसिद्ध रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की का कथन है, 'केवल मांएं भविष्य के बारे में सोच सकती हैं, क्योंकि वो अपने बच्चों के रूप में इसे जन्म देती हैं।' यही कारण है कि अपने बच्चे के भविष्य को संवारने के लिए मां हर बलिदान, त्याग के लिए तैयार रहती है।
लेखिका - पूनम बर्त्वाल
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