Mother's Day Poem : मदर्स डे पर कविता, मदर्स डे पर माँ के सामने पढ़ें ये 10 मार्मिक कविताएं, आंखें हो जाएंगी नम

Mothers Day 2019 : मां को शब्दों की सीमा में बांध पाना मुश्किल ही नहीं नामुनकिन है। माँ लफ्ज़ ज़िंदगी का वो अनमोल लफ्ज है जिसके बिना ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं कही जा सकती। मां हमें जन्म देती है। दिन-रात एक करके हमें बड़ा करती है। मां के इसी त्याग व बलिदान के पर हम मदर्स डे (Mother's Day) के खास अवसर पर लाएं हैं कुछ बेहद मार्मिक कविताएं जिन्हें पढ़कर आप अपनी मां की यादों से तारी हो जाएंगे।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
1. मेरी आंखों का तारा ही, मुझे आंखें दिखाता है
जिसे हर एक खुशी दे दी, वो हर गम से मिलाता है
जुबां से कुछ कहूं कैसे कहूं किससे कहूं माँ हूं
सिखाया बोलना जिसको, वो चुप रहना सिखाता है
सुला कर सोती थी जिसको वह अब सभर जगाता है
सुनाई लोरिया जिसको, वो अब ताने सुनाता है
सिखाने में क्या कमी रही मैं यह सोचूं,
जिसे गिनती सिखाई गलतियां मेरी गिनाता है।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
2. तुम एक गहरी छांव हो अगर तो जिंदगी धूप है माँ
धरा पर कब कहां तुझसा कोई स्वरूप है माँ
अगर ईश्वर कहीं पर है उसे देखा कहां किसने
धरा पर तो तू ही ईश्वर का रूप है माँ, ईश्वर का कोई रुप है माँ
नई ऊंचाई सच्ची है नए आधार सच्चा है
कोई चीज ना है सच्ची ना यह संसार सच्चा है
मगर धरती से अंबर तक युगों से लोग कहते हैं
अगर सच्चा है कुछ जग में तो माँ का प्यार सच्चा है
जरा सी देर होने पर सब से पूछती माँ,
पलक झपके बिना घर का दरवाजा ताकती माँ
हर एक आहट पर उसका चौक पड़ना, फिर दुआ देना
मेरे घर लौट आने तक, बराबर जागती है माँ।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
3. सुलाने के लिए मुझको, तो खुद ही जागती रही माँ
सिहराने देर तक अक्सर, मेरे बैठी रही माँ
मेरे सपनों में परिया फूल तितली भी तभी तक थे
मुझे आंचल में लेकर अपने लेटी रही माँ
बड़ी छोटी रकम से घर चलाना जानती थी माँ
कमी थी बड़ी पर खुशियाँ जुटाना जानती थी माँ
मै खुशहाली में भी रिश्तों में दुरी बना पाया
गरीबी में भी हर रिश्ता निभाना जानती थी माँ।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
4. बड़ी ही जतन से पाला है माँ ने
हर एक मुश्किल को टाला है माँ ने
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जब भी गिरे तो संभाला है माँ ने
चारों तरफ से हमको थे घेरे,
जालिम बड़े थे मन के अंधेरे
बैठे हुए थे सब मुंह फेरे,
एक माँ ही थी दीपक मेरे जीवन में
अंधकार में डूबे हुए थे हम,
किया ऐसे में उजाला है माँ ने
मिलेगा ना दुनिया में माँ सा कोई,
मेरी आंखें बड़ी तो वो साथ रोई
बिना उसकी लोरी के न आती थी निंदिया,
जादू सा कर डाला है माँ ने
बड़ी ही जतन से पाला है माँ ने
हर एक मुश्किल को टाला है माँ ने।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
5. बहुत याद आती है माँ,
मैं हूं कौन बताया था माँ ने
मुझे पहला कलमा पढ़ाया था माँ ने
वो यह चाहती थी कि मै सिख जाऊ
वो हाथो से खिलाती थी मुझ को,
कभी लोरिया भी सुनाती थी मुझ को
वह नन्हे से पैर चलाती थी मुझको,
कभी दूर जाकर बुलाती थी मुझको
मेरा लड़खड़ाकर पहलू में गिरना,
उठाकर गले से लगाती थी मुझको
कि चलना सिखाती है माँ,
बहुत याद आती है माँ।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
6. हमारी आँखों के आंसू अपनी आँखों में समां लेती है माँ
अपने होठो की हंसी हम पर लुटा देती है माँ,
हमारी खुशियों में शामिल होकर अपने गम भुला देती है माँ
जब भी कभी ठोकर लगे हमें याद आती है माँ,
दुनिया की तपिश में हमें आंचल की शीतल छाया देती है माँ
खुद चाहे कितनी भी थकी हो हमे देख कर अपनी थकान भुला जाती है माँ,
प्यार भरे हाथों से हमेशा हमारी थकान मिटा देती है माँ
बात जब भी हो लजीज खाने की तो हमे याद आती है माँ,
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ
लफ्जों में जिसे बयां नहीं किया जा सके ऐसी होती है माँ,
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाए ऐसी होती है माँ।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
7. कभी जो गुस्से में आकर मुझे डांट देती
जो रोने लगूं मैं मुझे वो चुपाती
जो मैं रूठ जाऊं मुझे वो मनाती,
मेरे कपड़े वो धोती मेरा खाना बनाती
जो न खाऊं मैं मुझे अपने हाथों से खिलाती
जो सोने चलूँ मैं मुझे लोरी सुनाती,
वो सबको रुलाती वो सबको हंसाती
वो दुआओं से अपनी बिगड़ी किस्मत बनाती
वो बदले में किसी से कभी कुछ न चाहती,
जब बुज़ुर्गी में उसके दिन ढलने लगते
हम खुदगर्ज़ चेहरा अपना बदलने लगते
ऐश-ओ-आराम में अपनी उसको भूलने लगते
दिल से उसके फिर भी सदा दुआएं निकलती
खुशनसीब हैं वो लोग जिनके पास माँ है।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
8. हजारों दुखड़े सहती है माँ
फिर भी कुछ ना कहती है माँ
हमारा बेटा फले और फुले
यही तो मंतर पढ़ती है माँ
हमारे कपड़े कलम और कॉपी
बड़े जतन से रखती है माँ
बना रहे घर बंटे न आंगन
इसी से सबकी सहती है माँ
रहे सलामत चिराग घर का
यही दुआ बस करती है माँ
बढ़े उदासी मन में जब जब
बहुत याद में रहती है माँ
नजर का कांटा कहते है सब
जिगर का टुकड़ा कहती है माँ
मेरे हृदय में हरदम
ईश्वर जैसी रहती है माँ।
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
9. आज सोचा घर जाऊं तो मां के लिए कुछ ले लूं,
क्या पसंद है उन्हें, कभी सोचा ही नहीं,
पापा को पकोड़े पसंद है,भाई को खीर और दादी को मीठी थुली,
सब याद था उन्हें, पर उन्हें ...कभी जाना ही नहीं।
कोई रंग बताया नहीं कभी साड़ी के लिए,
कभी किसी ने ला दी, कभी बिदाई में मिल गई बस पहन ली ,
न कभी पसंद की चूडियां पहनने की जिद की, न आंखों में कजरा लगाया,
हां याद आया पापा से कहा था एक बार,
सामान में अगरबत्ती लो तो चन्दन की सुगंध वाली लाना,
ढेर सारी असली चन्दन की अगरबत्ती खरीदकर घर पहुंची,
चौंक गई , भाई मां के फोटो को हार से सजा रहा है,
धीरे से बोला.....आजा, मां का दिन है न आज,
साल भर होने को आया, मै खुद को मां के बिना महसूस ही नहीं कर पाई ,
कभी लगा ही नहीं वह मेरे साथ नहीं है,
भारी मन से ढेर सारी अगरबत्ती लगा दी मां के सामने,
कुछ देर में ही पूरा घर भर गया मां की सुवासित सुगंध से....
मदर्स डे पर कविता (Mother's Day Poem)
10. माँ हर पल तुम साथ हो मेरे, मुझ को यह एहसास है
आज तू बहुत दूर है मुझसे, पर दिल के बहुत पास है।
तुम्हारी यादों की वह अमूल्य धरोहर
आज भी मेरे साथ है,
ज़िंदगी की हर जंग को जीतने के लिए,
अपने सर पर मुझे महसूस होता आज भी तेरा हाथ है।
कैसे भूल सकती हूँ माँ मैं आपके हाथों का स्नेह,
जिन्होने डाला था मेरे मुंह में पहला निवाला,
लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में,
दुनिया की राहों में मेरा पहला क़दम था जो डाला
जाने अनजाने माफ़ किया था मेरी हर ग़लती को,
हर शरारत को हँस के भुलाया था,
दुनिया हो जाए चाहे कितनी पराई,
पर तुमने मुझे कभी नही किया पराया था,
दिल जब भी भटका जीवन के सेहरा में,
तेरे प्यार ने ही नयी राह को दिखाया था
ज़िंदगी जब भी उदास हो कर तन्हा हो आई,
माँ तेरे आँचल ने ही मुझे अपने में छिपाया था
आज नही हो तुम जिस्म से साथ मेरे,
पर अपनी बातो से , अपनी अमूल्य यादो से
तुम हर पल आज भी मेरे साथ हो
क्योंकि माँ कभी ख़त्म नही होती
तुम तो आज भी हर पल मेरे ही पास हो।
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