बदलते वक्त में सामने आ रहा पति-पत्नी के रिश्तों का नया रूप

हमारा समाज बदला तो कुछ सामाजिक मान्यताएं भी बदलीं। इसी के साथ संबंधों का रूप भी बदला। लोगों ने बनी-बनाई परिपाटी से निकल कर अपने रिश्ते नए ढंग से जीना शुरू किया। इसमें पति-पत्नी कैसे पीछे रह जाते, वे भी अपने रिश्ते नए अंदाज में जी रहे हैं। पत्नियों की दुनिया अब घर तक सीमित नहीं रह गई, वे पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हैं, उनकी सोच बड़ी हुई है। इसका असर उनके वैवाहिक जीवन में देखा जा रहा है।
उन्होंने पति के साथ मिलकर अपने रिश्तों की बनावट में कई सकारात्मक बदलाव किए हैं। मनोवैज्ञानिक राखी आनंद कहती हैं, 'जैसे-जैसे महिलाएं आत्मनिर्भर होती जा रही हैं, वैसे-वैसे उनके रिश्ते अपने पतियों के साथ पहले की तुलना में ज्यादा बेहतर होते जा रहे हैं।' अगर हम पहले के कपल्स की तुलना आज के कपल्स से करें तो पता चलेगा कि वक्त कितना बदल चुका है। मसलन, पहले कपल्स की सोच थी कि अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त एक-दूसरे के साथ गुजारना चाहिए और अगर कोई एक, दूसरे को छोड़कर अपने दोस्तों के साथ घूमने भी जाता था तो दूसरा उस पर शक करता था, चाहे ऐसी कोई बात हो या न हो, जबकि आज ऐसा नहीं है।
आज अगर कोई भी एक किसी के साथ घूमने जाए या फिर मूवी देखने जाए तो दूसरा उस पर शक नहीं करता, क्योंकि आज दोनों ही जानते हैं कि कुछ वक्त किसी और के साथ गुजारने से किसी को बुरा नहीं लगेगा बल्कि यह सब उनके रिश्तों को और भी बेहतर बनाता है।
दोस्तों के साथ वक्त गुजारने पर ऐतराज नहीं
साइकोलॉजिस्ट ईशा सिंह कहती हैं, 'लगातार हर वक्त साथ गुजारना किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाता है। लेकिन इससे नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। इससे आपकी दुनिया सीमित हो जाती है। परेशानियां बढ़ जाती हैं। जबकि दोस्तों के साथ भी वक्त गुजारने से रिश्तों की कोई सीमा नहीं होती, साथ-साथ जीवन में कुछ अच्छे अनुभव भी होते हैं। इससे आपकी सोच और विचारों में बदलाव आता है, जोकि आपको एक बेहतर पति/पत्नी बनाता है।' लेकिन दोस्तों के साथ इतना भी वक्त न गुजारें, जिससे आपके पार्टनर को लगे कि आप उससे दूर भाग रहे हैं। पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम बिताना भी बहुत जरूरी है।
बच्चे होने के बाद भी बनाए रखना चाहते हैं रिश्तों की अहमियत
पुराने दौर के कपल्स का मानना था कि जब वो माता-पिता बन जाएं तो उनकी निजी जिंदगी प्रायः खत्म हो जाती है। कहने का मतलब है कि उन्हें अपने बच्चों को ही प्राथमिकता देनी होती है। लेकिन अब कपल्स ये सोचते हैं कि बच्चों को प्राथमिकता देनी पड़ती है पर हम अपनी निजी जिंदगी को भी पीछे नहीं छोड़ सकते। माना कि बच्चों के लिए त्याग करना जरूरी है पर अपने जीवन की ओर भी ध्यान देना उतना ही जरूरी है। मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख कहते हैं, 'किसी भी परिवार के लिए पहला बच्चा खुशी की बात तो होती ही है पर ये जिंदगी का सबसे बड़ा बदलाव भी होता है। जिसके चलते उन्हें कई समझौते करने पड़ते हैं।' अब लोग अपने जीवन में अपने बच्चों के साथ पहले से ज्यादा जागरूक हो चुके हैं। वे अपने रिश्तों की अहमियत कभी नहीं खोना चाहते। वे अपना सेक्स जीवन भी बनाए रखना चाहते हैं।
अलग-अलग फील्ड से जुड़े रहने पर कोई परेशानी नहीं
पुरानी धारणाओं में एक यह भी है कि लोग पहले अपना साथी उसी फील्ड से तलाशते थे, जो काम वह किया करते थे। क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर हम अलग-अलग पृष्ठभूमि से हों तो शायद सामंजस्य बैठा पाना आसान न हो। ऐसे में समझौते ज्यादा करने पड़ते हैं और शायद एक-दूसरे को समझ पाना भी मुश्किल होता है। लेकिन आज के दौर में लोगों की सोच बदल चुकी है। अब सब यही सोचते हैं कि अगर अलग-अलग फील्ड से होंगे तो इससे कपल्स एक-दूसरे के फील्ड के बारे में ज्यादा जान पाएंगे, इससे जानकारी बढ़ती है।
अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रखती कोई मायने
अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि भी उस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा होता था। लेकिन आज ऐसी बातें दो प्रेमियों के बीच कम आती हैं। इसके बजाय आज लोग यह सोचते हैं कि अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि के होने से एक-दूसरे के मजहबों, धर्मों के बारे में कई जानकारियां बढ़ती हैं। डॉ. पारिख कहते हैं, 'अलग धर्मों में शादी करने से कई तरह की दिक्कतें सामने आती हैं लेकिन इससे एक-दूसरे के मजहबों के बारे में पता चलता है और इससे बड़ी बात उनके बच्चों को दोनों ही मजहबों के बारे में ज्यादा जानकारियां मिल जाती हैं।'
समस्या आने पर लेते हैं काउंसलर से मदद
आज के वक्त में तो लोग अपनी शादी-शुदा जिंदगी की समस्याओं को प्रोफेशनल काउंसलर्स की मदद से भी सुलझाने लगे हैं, जबकि पहले लोग न तो ऐसी किसी काउंसलिंग में जाते थे और न ही जाना पसंद करते थे। कई नए कपल जिनकी शादी या तो नई-नई हुई है या फिर कुछ समय बाद होगी और अगर इनको कोई समस्या होती है तो ये लोग ऐसे काउंसलर से जाकर अपनी समस्याएं बताते हैं। लोगों की सोच-विचारों की सीमाएं अब बढ़ चुकी हैं, लोग पहले के मुकाबले ज्यादा खुलकर बातें करते हैं। अब ऐसे बहुत कम लोग रह गए हैं, जिनको अपने गर्लफ्रेंड/ब्वॉयफ्रेंड के साथ कोई समस्या हो, क्योंकि अब अगर ऐसी कोई बात होती है तो सब प्रोफेशलनल काउंसलर से ही मदद लेते हैं।
वक्त के साथ-साथ नियमों का बदलना स्वाभाविक है लेकिन रिश्तों के मायने न तब बदले थे न आज बदले हैं। नियम-कानून चाहे कितने भी बदलें पर प्यार के रिश्ते में प्यार की प्राथमिकता बनी रहेगी।
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