Durga Puja 2022: जानिए सिंदूर खेला का महत्व, समय के साथ किस तरह बदली ये बंगाली परंपरा

Durga Puja 2022: जानिए सिंदूर खेला का महत्व, समय के साथ किस तरह बदली ये बंगाली परंपरा
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दशहरा (Dussehra) के दिन मनाया जाती है, सिंदूर खेला (Sindur Khela) की रस्म, जानिए इसका महत्व और इतिहास।

Durga Puja 2022: सिंदूर खेला (Sindur Khela) बंगाली समुदाय (Bengal Tradition) में दुर्गा पूजा (Durga Puja) समारोह का एक पारंपरिक और अभिन्न हिस्सा है। इस रिवाज में दुर्गा पूजा के 9 दिन समाप्त होने के बाद दसवें और आखिरी दिन (Dussehra) में विवाहित महिलाएं माता रानी की प्रतिमाओं और एक-दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं।इसके बाद मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। इस वर्ष, विजयदशमी आज 5 अक्टूबर को मनाई जा रही है। आइये जानते हैं सिंदूर खेला का महत्व क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?

इतिहास और महत्व (Sindur Khela History And Significance)

सिंदूर एक लाल पाउडर होता है, जिसे पारंपरिक रूप से चूने या फिटकरी और हल्दी से बनाया जाता है। पारंपरिक हिंदू घरों में विवाहित महिलाओं के लिए सिंदूर बहुत शुभ माना जाता है। एक हिंदू विवाह के दौरान, एक दूल्हा दुल्हन की सिंदूर से मांग भरता है। सिंदूर खेला के दौरान, महिलाएं माता दुर्गा (Goddess Durga) की प्रतिमा पर सिंदूर लगाती हैं और बाद में उन्हें भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश के लिए रवाना करने के रूप में विसर्जन किया जाता है। बंगाली समाज दुर्गा पूजा का बहुत महत्व है, परंपरागत रूप से यहां सिंदूर खेला की इस रस्म को महिलाओं के वैवाहिक बंधन को मजबूत करने के लिए माता के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है।


उत्सव का वर्तमान स्वरूप (Current Form of Sindur Khela)

पहले सिंदूर खेला की रस्म अपने मूल रूप में विवाहित महिलाओं द्वारा की जाने वाली एक परम्परा हुआ करती थी। इसमें महिलाओं द्वारा माता की प्रतिमा पर सिंदूर लगाने के अलावा देवी को प्रसाद चढ़ाने और मिठाई बांटना आदि शामिल था। वर्तमान में यह रस्म एक मज़ेदार रिवाज में तब्दील हो गई है, जहां विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाती हैं और "ढाकी" ढोलकिया की थाप पर नाचते हुए आनंद लेती हैं।



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