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मासिक चक्र शुरू होने से लेकर मेनोपॉज तक महिलाओं का शरीर कई बदलावों से गुजरता है। हर महिला के जीवन में तीन पड़ाव सबसे अहम होते हैं। सबसे पहला जब मासिक चक्र शुरू होता है, फिर जब वह मां बनती है और सबसे आखिरी जब प्रजनन काल खत्म होता है और मासिक चक्र बंद हो जाता है। महिलाओं को इन तीनों पड़ावों में अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत सजग रहना चाहिए।
मासिक चक्र
मासिक चक्र यानी पीरियड्स की शुरुआत हर लड़की में 12-16 साल की उम्र के बीच होती है। इसका अंतराल 21 दिन से 35 दिन का हो सकता है। फीमेल सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन पीरियड्स को कंट्रोल करते हैं। ज्यादातर महिलाओं को पांच-छह दिन के पीरियड्स के दौरान कोई समस्या नहीं होती है।
जब हो कोई समस्या : कई बार हार्मोन डिस्बैलेंस, स्ट्रेस, प्रेग्नेंसी, मिसकैरिज, हाइपोथायरॉइडिज्म या हाइपरथायरॉइडिज्म, फाइब्रॉयड बनने, डाइटिंग या ज्यादा एक्सरसाइज करने, पोलीसिस्ट ओवरी सिंड्रोम की वजह से पीरियड्स के साइकल में समस्या आती है।
तब करें डॉक्टर से कॉन्टेक्ट: अगर पीरियड्स 90 दिन से ज्यादा समय के लिए बंद हो जाएं और आप गर्भवती नहीं हैं तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए। इसके अलावा सात दिनों से ज्यादा समय तक ब्लीडिंग होती हो या ज्यादा ब्लीडिंग हो, पीरियड्स का गैप 21 दिन से कम या 35 दिन से ज्यादा हो जाए। पीरियड्स के दौरान ज्यादा दर्द हो तो इन समस्याओं को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। असल में ज्यादा पीरियड्स होने से आयरन की कमी हो जाती है इससे एनीमिया, थकान, त्वचा में पीलापन आ जाता है। ऊर्जा की कमी और सांस फूलने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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गर्भावस्था
मां बनने की अवधि को स्त्री जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है। लेकिन शिशु को अपने शरीर में आकार देकर जन्म देना कोई सरल प्रक्रिया नहीं होती है। इस दौरान हर महिला को कई शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है। इस दौरान खान-पान का सबसे अधिक ख्याल रखना चाहिए। मां बनने वाली महिला को आमतौर पर 300 एक्सट्रा कैलोरी की जरूरत होती है। इस दौरान ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज, दूध गर्भवती महिला को लेने चाहिए। अगर आप मांसाहारी हैं तो प्रेग्नेंसी के दौरान मछली और अंडे का सेवन जरूर करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को आराम और अच्छी नींद की भी जरूरत होती है। उन्हें रात में कम से कम आठ घंटे और दिन में दो घंटे सोना चाहिए।
इन बातों को भी करें फॉलो
- अपने डॉक्टर की सलाह पर गर्भवती महिला को हर दिन 30 से 60 मिलीग्राम आयरन जरूर लेना चाहिए। विटामिन बी 6 का सेवन भी करना चाहिए, इससे मॉर्निंग सिकनेस दूर होती है।
- चाय और कॉफी का कम से कम सेवन करना चाहिए।
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को रोजाना कम से कम 1,300 मिलीग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है।
- सबसे जरूरी बात स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह के बिना कोई दवाई नहीं लेनी चाहिए। इससे बच्चे और मां को नुकसान पहुंच सकता है।
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मेनोपॉज
मेनोपॉज किसी महिला के जीवन का वह समय है, जब उसके पीरियड्स बंद हो जाते हैं। यह उसके प्रजनन क्षमता के खत्म होने का संकेत होता है। सामान्य तौर पर 45-55 साल की उम्र में यह अवस्था आती है। इससे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन का बनना भी लगभग बंद हो जाता है।
मेनोपॉज का सामान्य असर : इस दौरान महिलाओं में हॉट फ्लेशैस, रात में ज्यादा पसीना आना, पसीने और गर्मी के कारण सोने में समस्या आना, मूड बदलना जैसी समस्याएं होती हैं।
लंबे समय तक रहने वाला असर : मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन में होने वाली कमी का असर शरीर के हर सिस्टम पर पड़ता है। जैसे ऑस्टियोपोरोसिस और कोरोनरी हार्ट डिसीजेज का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अल्जाइमर्स का खतरा बढ़ जाता है। स्किन का लचीलापन खत्म होने से झुर्रियां पड़ती हैं। कई महिलाओं की नजर कमजोर हो जाती है। कुछ का वजन ज्यादा बढ़ जाता है। किसी को यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। सिरदर्द, दिल की धड़कन तेज हो जाना, चेहरे पर बाल उग आना जैसी समस्या भी होती हैं।
मेनोपॉज इफेक्ट से बचाव के उपाय : मेनोपॉज के बाद महिलाएं बैलेंस्ड डाइट लें। जिसमें फाइबर की मात्रा ज्यादा और वसा की मात्रा कम हो। साथ ही रोजाना एक गिलास दूध पिएं इसमें 300 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। कैफीन, चीनी, नमक का सेवन कम करें। शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, रोज एक्सरसाइज करें या पैदल घूमें। हॉट फ्लैशेस और पसीने से बचने के लिए कॉटन की लूज ड्रेसेस पहनकर सोएं।
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