Hariyali Teej: प्रकृति से जुड़ाव के साथ प्यार का प्रतिक है तीज का त्यौहार, जानें व्रत से जुड़ी मान्यताएं

सावनी रिमझिम फुहारें (Monsoon Rain), पेड़-पौधे, बाग-बगीचों में हरीतिमा का श्रृंगार, शिव-गौरी के पूजन का जयघोष, ऐसे मोहक वातावरण में आती है हरियाली तीज। जब विवाहिताएं सखियों संग झूलती, झूमती, गीत गाती हैं। व्रत रख, पूजन कर अपने प्रेममय दांपत्य की कामना करती हैं। यह पर्व अपने गहन अर्थों में हमें प्रकृति, संस्कृति और अपनों से जुड़े रहने को प्रेरित करता है।
हरियाली तीज में 'हरियाली' शब्द से ही प्रकट होता है कि यह पेड़-पौधों और प्रकृति से जुड़ाव का भी पर्व है। जब संपूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है, गर्मी की प्रचंडता के बाद रिमझिम फुहारों की शीतलता तन-मन को भिगो देती है, तब हरियाली तीज (Hariyali Teej) जैसे पर्व हमें उत्साह और उमंग से भर देते हैं। ऐसे माहौल में विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखने के साथ ही सज-धज कर प्रकृति का अभिनंदन भी करती हैं।
लोकसंस्कृति-आस्था का पर्व
लोकसंस्कृति की पोषक श्रावणी तीज, जिसे छोटी तीज या हरियाली तीज भी कहते हैं, सावन महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हरियाली तीज को विशेष रूप से उत्तरी और मध्य भारत के राज्यों हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड में भरपूर उत्साह से मनाया जाता है। वास्तव में यह लोकसंस्कृति और प्रकृति-ईश्वर के प्रति आस्था का पर्व है।
सुखद दांपत्य की कामना
प्रकृति, लोकसंस्कृति से जुड़ाव और धार्मिक आस्था के साथ ही यह पर्व दांपत्य प्रेम को भी प्रकट करता है। इसमें विवाहित स्त्रियां अपने साजन के स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं और व्रत, पूजा कर इसे विधिपूर्वक मनाती हैं, वहीं कुंवारी लड़कियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए भी तीज व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए निरंतर 108 जन्मों तक कठिन तपस्या की थी। फिर इसी दिन उन्होंने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया था, इसीलिए सुहागन स्त्रियों के लिए इस पर्व-व्रत का विशेष महत्व है।
पर्व से जुड़ी परंपराएं
हरियाली तीज के अवसर पर स्त्रियां सोलह श्रंगार कर किसी स्वच्छ-पवित्र स्थल पर जुटती हैं। वहां सामूहिक रूप से महादेव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। पूजा के बाद सखियों-सहेलियों के साथ बाग-बगीचों, खेतों, तालाबों के किनारे पेड़ पर लगे झूलों पर वे झूलती, झूमती हैं। साथ ही लोकगीत गाती हैं।
बिखरती है लोकगीतों की छटा
पर्व के उत्साह और रिमझिम फुहारों से सराबोर उल्लासित स्त्रियों के द्वारा गाए जाने वाले गीतों में दांपत्य के साथ ही अन्य रिश्तों की भावपूर्ण अभिव्यक्तियां भी होती हैं। इससे सारे माहौल में उल्लास, उमंग और गीतों की स्वर लहरियां प्रवाहित हो उठती हैं।
सावन आया अम्मा मेरी रंग भरा जी/ऐ जी कोई आई है हरियाली तीज/ झूला झूलें कामिनी जी/सावन आया.../ वन-वन मोर-पपीहा बोलते जी/ऐ जी कोई गावत गीत-मल्हार/सावन आया...
वहीं कोई नवविवाहिता, जिसे पहले सावन के महीने में मायके भेज दिया जाता है, ताकि बरखा बहारों में पिया से दूर उसकी याद सताए तथा उनका दांपत्य प्रेम और गहराए। मायके में वह पिया का संदेश आने की बाट जोहती है। सावनी रिमझिम में पिया की याद उसे और सताती है, तो सखियां उसकी विरह वेदना देख उसे छेड़ती हैं, फिर खिलखिलाती हैं। ऐसे में नवविवाहिता अपने मन की भावनाओं को कुछ ऐसे व्यक्त करती है-
अरी बहना! छायी घटा घनघोर/ सावन दिन आ गए।
उमड़-घुमड़ घन गरजते, अरी बहना!
ठंडी-ठंडी पड़त फुहार/सावन दिन आ गए।
बादल गरजे, बिजली चमकती,अरी बहना!
बरसात मूसलधार/सावन दिन आ गए।
हरियाणा में विवाहित स्त्री को पहली सावनी तीज पर मायके से 'कोथली' में नए वस्त्र, घर के बने पकवान, चूड़ियां, बिंदिया आदि श्रंगार का सामान भेजे जाने की परंपरा आज भी कायम है। हरियाणवी लोकगीत में भी इसकी झलक देख सकते हैं-
मीठी तै कर दे री मां कोथली, जाना बहन के देस
पपहिया री बोल्या पिपली।
वास्तव में हरियाली तीज का पर्व कई मायने में अनूठा है, जो हमें अपने रिश्तों, परंपराओं, संस्कृति, प्रकृति समेत ईश्वर से भी जुड़ाव को प्रगाढ़ करता है। ऐसे पर्व को हम पूरे मन-श्रद्धा और विधि-विधान से जरूर मनाएं।
मंजु माहेश्वरी
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