कैसे हुई तुलसी-शालिग्राम विवाह की शुरुआत, जानें किस श्राप के कारण भगवान विष्णु बन गए थे पाषाण

कैसे हुई तुलसी-शालिग्राम विवाह की शुरुआत, जानें किस श्राप के कारण भगवान विष्णु बन गए थे पाषाण
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राक्षस कुल में जन्मी थी तुलसी माता, जानिए किस श्राप के कारण भगवन विष्णु बन गए थे पाषाण।

Tulsi Vivah Ki Katha: देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसके अगले दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं। देवउठनी एकादशी साल की सभी 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी होती है। इस साल देवउठनी एकादशी 4 नवंबर यानी आज मनाई जा रही है। एकादशी की तिथि कल यानी 3 नवंबर को रात 8:51 बजे शुरू हुई थी और आज 4 नवंबर शाम 7:02 बजे तक (Dev Uthani Ekadashi Ka Muhurat) रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी तिथि होने के कारण हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत 4 नवंबर (Tulsi Vivah Ka shubh Muhurat) को रखा गया है।

हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक तुलसी विवाह की एक कथा है, जिसे सुने बिना यह पूजन पूरा नहीं होता है। तो आइये जानते हैं क्या है वो कथा (Tulsi Vivah ki katha) और कैसे भगवान विष्णु को शालिग्राम रूप मिला था:-

तुलसी विवाह की कथा (Story of Tulsi Marriage)


क्या आप जानते हैं कि माता तुलसी का असली नाम तुलसी (Goddess Tulsi) नहीं बल्कि वृंदा (Devi Vrinda) था और उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। दरअसल वृंदा का जन्म भले ही राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन वह भगवान श्रीहरि विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थीं। वृंदा जब बड़ी हुईं तो उनका विवाह असुर राज जलंधर से हुआ। यहां जानने वाली बात यह है कि जलंधर की उत्पत्ति भगवान शिव (Lord Shiva) से निकले क्रोध से हुई थी, अब क्योंकि जलंधर महादेव के क्रोध से उत्पन्न हुआ था इसलिए वह बहुत शक्तिशाली था। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त तो थी ही, साथ ही वह बहुत ही पतिव्रता स्त्री थीं। उनकी भक्ति और पूजा के कारण उनका पति जलंधर अजेय होता गया और इस कारण उसे अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया। एक समय वह आया जब जलंधर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया। इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु (Lord Vishnu) की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना की।

लेकिन जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना जरुरी था। इसलिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इसके बाद जलंधर की शक्ति कम हो गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को श्रीहरि के इस छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा, हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की, आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? श्रीहरि के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था और तब वृंदा ने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मेरे साथ एक पाषाण (पत्थर) की तरह व्यवहार किया है, मैं आपको शाप देती हूं कि आप पाषाण (Stone) बन जाएं। वृंदा के यह कहते ही भगवान श्री हरि पत्थर समान हो गए और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब देवताओं ने वृंदा से याचना करते हुए कहा कि वे अपना श्राप वापस ले लें।

भगवान विष्णु भी वृंदा के साथ किए इस छल से बहुत लज्जित थे, आखिर में वृंदा ने भगवान विष्णु को क्षमा कर दिया। श्री हरि को श्राप मुक्त कर, वृंदा जलंधर के साथ सती हो गईं। वृंदा की राख से एक पौधा निकला, जिसे श्रीहरि विष्णु ने तुलसी का नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद (Tulsi Vivah Ki Katha) को ग्रहण नहीं करूंगा। मेरे शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा और कालांतर में लोग इस तिथि को तुलसी विवाह के रूप में पूजेंगे। जो भी इस दिन विधिविधान से पूजन करेगा, उसे सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी।

तुलसी व‍िवाह पूजन विधि (Tulsi Vivah Pujan Vidhi)


तुलसी विवाह के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर रोजमर्रा के काम पूरे करने के बाद स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद तुलसी जी को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं और उन्हें श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें। यह सब करने के बाद शालिग्राम जी को तुलसी के (Tulsi Viavah Ki Vidhi) पौधे में स्थापित करें। इसके बाद पंडित जी द्वारा तुलसी और शालिग्राम का पूरे रीति रिवाजों से विवाह करवाएं। विवाह के समय पुरुष के हाथ में शालिग्राम और स्त्री के हाथ में तुलसी जी को देकर सात फेरे कराने चाहिए और विवाह संपन्न होने के बाद तुलसी जी की आरती करें।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है।)

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