किसी ने ना किया होगा शिव-पार्वती जैसा असीम प्रेम, Valentines Day पर जानिए त्याग और समर्पण का सही मतलब

Valentine's Day Special Mahadev And Mata Parvati Katha: 14 फरवरी को प्यार का सबसे खास दिन वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा है। सभी लोग अपने पार्टनर के साथ प्यार की इस खूबसूरत भावना का आनंद उठा रहे हैं। वक्त के साथ हम सभी के प्यार का तरीका भी बदला है। आज के समय में हम सभी ताजमहल को प्यार के प्रतीक के रूप में देखते हैं, ऐसी ही और बहुत सी लव स्टोरियां युवाओं के बीच मशहूर हैं। लेकिन अगर ध्यान दिया जाए तो प्यार, समर्पण और इंतजार का सबसे पवित्र और सच्चा उदाहरण हमारे सामने भगवान शिव और माता पार्वती का है। महादेव के धैर्य और माता पार्वती की तपस्या ने उनके मिलन को बहुत ही खूबसूरत बना दिया था। आज के इस वैलेंटाइन स्पेशल आर्टिकल में हम आपको भगवान शिव और माता पार्वती की प्रेम कथा के बारे में बताएंगे, जिसे पढ़कर आपको प्यार और त्याग का असली मतलब समझ आएगा।
भगवान शिव और माता सती की कथा
बता दें कि महादेव की इस पवित्र प्रेम कहानी की शुरुआत माता सती के साथ होती है। माता सती का जन्म प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में हुआ था, ऐसा कहा जाता है कि दक्ष सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव के पुत्र थे। वह भगवान शिव की इस बात को लेकर विरोध किया करते थे कि उन्होंने उनके पिता ब्रह्मदेव की पूजा करने पर रोक लगा दी थी। बता दें कि यह भी बहुत अहम और अलग कथा है, जिसके बारे में हम आपको कभी विस्तार से बताएंगे।
अब माता सती की बात करें तो उनके पिता भगवान शिव को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे और माता सती ने महादेव से पिता की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली थी। ऐसे में प्रजापति दक्ष ने अपने महल में एक बहुत ही बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया था। जिसमें सभी देवताओं और संतों आदि को आमंत्रित किया गया। लेकिन उन्होंने इस यज्ञ में महादेव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया था। इसके बाद सती बिना निमंत्रण के ही इस यज्ञ में शामिल होने गई थीं, लेकिन प्रजापति दक्ष ने महादेव का अपमान किया। जिसके बाद माता सती ने आत्मदाह कर लिया।
महादेव और माता पार्वती का मिलन
इसके बाद माता सती ने हिम नरेश के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता पार्वती ने भगवान शिव को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया था। वह भगवान शिव को पाने के लिए हर मुमकिन प्रयास करने के लिए तैयार हो गई थीं। उन्होंने अपने मन में ठान लिया था कि वह विवाह करेंगी तो भगवान शिव के साथ ही करेंगी। उधर सभी देवता गण भी यही चाहते थे, इसलिए उन्होंने भगवान शिव के मन में माता पार्वती के लिए प्रेम जगाने की कामना से कामदेव को उनके पास भेजा था। देवताओं के इस कृत्य से क्रोधित होकर भगवान शिव की तीसरी आंख खुली और कामदेव जलकर भस्म हो गए थे। लेकिन माता पार्वती इससे भी विचलित नहीं हुईं और उन्होंने शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी।
माता पार्वती की तपस्या से तीनों लोक में हाहाकार मच गया। बड़े-बड़े पहाड़ डगमगाने लगे, सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। देवता इस त्रासदी से बचने की आस को लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने माता पार्वती के तप से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। साथ ही कहा कि वह राजकुमारी हैं, इसलिए किसी राजकुमार से विवाह कर लें। महादेव ने कहा कि उनके साथ रहना आसान नहीं होगा। लेकिन माता पार्वती नहीं मानीं और उन्होंने जवाब दिया कि वह महादेव को ही अपना पति मान चुकी हैं। अब उनके अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। मां पार्वती के इस असीम प्रेम को देखकर भोलेनाथ विवाह के लिए मान गए। इस तरह महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ। जिसमें सभी देवी-देवताओं सहित भूतों, गणों, असुरों आदि ने भी हिस्सा लिया था।
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