Ectopic Pregnancy : प्रेग्नेंसी में की ये लापरवाही तो जा सकती है जान, जानें क्या कहती हैं सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट

प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान कई बार भ्रूण का विकास महिला के यूट्रस में ना होकर इसके बाहरी हिस्से में होने लगता है, इसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy) कहते हैं। यह अवस्था खतरनाक होती है। कई मामलों में लापरवाही बरतने से गर्भवती महिला की जान भी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि कंसीव करने के बाद पूरे प्रेग्नेंसी पीरियड में रेग्युलर मेडिकल चेकअप करवाएं और कोई लापरवाही ना बरतें।
दिल्ली के बत्रा अस्पताल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शैली बत्रा बताती है कि एक्टोपिक प्रेग्नेंसी गर्भावस्था का ही एक जटिल रूप है । नॉर्मल प्रेग्नेंसी में जहां महिला की ओवरी से रिलीज होने वाले अंडाणु फेलोपियन ट्यूब में आते हैं। फिर यहां स्पर्म के साथ फर्टिलाइज होकर भ्रूण यूट्रस में प्रत्यारोपित हो जाता है। यूट्रस में धीरे-धीरे भ्रूण का विकास होता है और 9 महीने में शिशु का जन्म होता है। लेकिन कई बार यह फर्टिलाइज हुआ भ्रूण यूट्रस से बाहर- फेलोपियन ट्यूब में या ओवरी में प्रत्यारोपित हो जाता है और वहीं डेवलप होने लगता है। इस कंडीशन को ही एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy) या अस्थानिक गर्भावस्था कहा जाता है।
प्रमुख लक्षण
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शैली बत्रा का कहना है कि एक्टोपिक प्रेग्नेंसी होने पर महिला को प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही पेट के पेल्विक एरिया में थोड़ा-बहुत खिंचाव और दर्द होता है। जैसे-जैसे भ्रूण का विकास और आकार बढ़ने लगता है, दबाव बढ़ने या फेलोपियन ट्यूब में फैलाव की वजह से पेट में तेज दर्द और ब्लीडिंग होने लगती है। कंधे-कमर में दर्द, पेल्विक एरिया में ऐंठन जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। ध्यान ना दिए जाने या जल्द इलाज ना कराए जाने पर फेलोपियन ट्यूब के क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है। तेजी से इंटरनल ब्लीडिंग होती है। कई बार महिला को चक्कर आने लगते हैं और वे बेहोश भी हो जाती हैं।
बरतें ये सावधानियां
डॉ. शैली बत्रा ने बताया कि जैसे ही प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजिटिव आए, गर्भवती महिला को एलर्ट हो जाना चाहिए। प्रेग्नेंसी के 5 सप्ताह के बाद अगर उसे पेट में दर्द महसूस हो रहा हो या ब्लीडिंग हो रही हो तो इसे इग्नोर नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। वे प्रेग्नेंसी टेस्ट, ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड, यूरीन और ब्लड टेस्ट के जरिए भ्रूण की स्थिति का पता लगाते हैं। इसी बेस पर वे कंसल्ट करते हैं या ट्रीटमेंट करते हैं।
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