भगवान शिव से Dev Diwali का सीधा संबंध, जानें Varanasi में ही क्यों मनाया जाता है यह त्योहार

भगवान शिव से Dev Diwali का सीधा संबंध, जानें Varanasi में ही क्यों मनाया जाता है यह त्योहार
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हर साल दीवाली के बाद कार्तिक पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव शंकर की नगरी वाराणसी में देव दीपावली का महापर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार सात नवंबर को देव दीपावली मनाई जाएगी। पढ़िये इसके पीछे की कहानी...

Dev Deepawali Ki Katha 2022: कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को देव दीपावली (Dev Deepawali) भी कहा जाता है। दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक महीने में पूर्णिमा के दिन इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन हिंदू समुदाय (Hindu Tradition) के लिए बहुत महत्व रखता है। इस साल कार्तिक पूर्णिमा 7 नवंबर 2022 को मनाई जाएगी। पौराणिक कथाओं के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इससे देवताओं को प्रसन्नता हुई और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने भगवान शिव को त्रिपुरारी (Why We Celebrate Dev Deepawali) नाम दिया।

शिव की नगरी वाराणसी में ही क्यों मनाते है देव दीपावली? (Why is Dev Diwali celebrated in Varanasi)


कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima 2022) भी कहा जाता है, जो राक्षस त्रिपुरासार पर भगवान शिव की जीत की याद दिलाती है। देव दीपावली के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए मंदिरों में जाते हैं। लोग दिवाली महापर्व की तरह इस दिन भी दीये जलाकर पूजन और अनुष्ठान करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन समस्त देवी-देवता स्वर्ग लोक से धरती पर आते हैं और गंगा स्नान करने के बाद दीपोत्सव का त्योहार मनाते हैं। भगवन शिव की नगरी वाराणसी में यह त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। आप सोच रहे होंगे कि देव दीपावली काशी (Why We Celebrate Dev Deepawali In Kashi) में ही क्यों मनाई जाती है? दरअसल इसके पीछे भी बहुत बड़ी वजह है। आइये कथा की मदद से समझें क्या है वो वजह :-

भगवान शिव से संबंधित है देव दीपावली (Dev Deepawali is related to Lord Shiva)


पौराणिक कथा के अनुसार त्रिपुर नामक राक्षस ने एक लाख वर्ष तक तीर्थराज प्रयाग में कठोर तप किया था। उसकी तपस्या से तीनों लोक हिलने लगे थे। त्रिपुर की तपस्या देखकर सभी देवतागण डर गए और उन्होंने त्रिपुर की तपस्या भंग करने का मन बना लिया। देवताओं ने स्वर्ग की अप्सराओं को त्रिपुर के (Dev Diwali Ki Katha) पास उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा, लेकिन वह अप्सराएं त्रिपुर की तपस्या भंग नहीं कर सकी। आखिर में ब्रह्मा जी (Lord Brahma) को त्रिपुर की कठोर तपस्या को देखते हुए मजबूरन उसे वरदान देना पड़ा।

त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से किसी मनुष्य या देवता के हाथों न मरने का वरदान मांगा। इसके बाद त्रिपुर ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया। सभी देवताओं ने एक योजना बनाकर त्रिपुर को भगवान शिव (Lord Shiva) के साथ युद्ध करने में व्यस्त कर दिया। इसके बाद भगवान शिव और त्रिपुर के बीच में भयंकर (Dev Diwali Ki Katha In Hindi) युद्ध हुआ। भगवान शिव ने ब्रह्माजी और विष्णुजी (Lord Vishnu) की सहायता से त्रिपुर का अंत कर दिया। इसी कारण से सभी देवता भगवान शिव के साथ त्रिपुरासुर के वध की खुशी मनाने काशी पहुंचे थे, यही कारण है कि काशी में इस दिन दीपावली का त्योहार मनाया जाता है, जिसे देव दीपावली (Dev Diwali) कहते हैं।

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