Navratri 2022: क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार? जानिए मां दुर्गा के पवित्र 9 दिनों के पीछे का अद्भुत महत्व

Navratri 2022: देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना का पर्व नवरात्र मनाने की परंपरा पौराणिक काल से ही चली आ रही है। अपने गहन अर्थों में यह पर्व आदि मातृशक्ति की उपासना को ही समर्पित है। आधुनिक सदंर्भों में भी यह पर्व आधी आबादी को आत्मशक्ति के जागरण के साथ चेतना-संपन्न बनने के लिए भी प्रेरित (Significance Of Celebrating Navratri) करता है।
मां आदिशक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र केवल उल्लास ही नहीं, आत्मशक्ति के जागरण का पर्व भी है। नवरात्र के नौ दिन, स्वयं अपने ही मन के भीतर झांकने का अवसर बनकर आते हैं। परंपरागत रंग-ढंग से लेकर आध्यात्मिक जीवनशैली तक, मन-मस्तिष्क की ऊर्जा को सार्थक दिशा में मोड़ने का संदेश देने वाला यह उत्सव स्त्री के सामर्थ्य की सार्वजनिक स्वीकार्यता के पर्व के रूप में मनाया जाता है। घर हो या पूजा पंडाल, हर कोई मां दुर्गा के रूप में मातृशक्ति को नमन करता है। साथ ही शक्ति की उपासना का यह अवसर सृजन करने और पोषण देने वाली हर विभूति के सम्मान की भी सीख भी देता है। यही वजह है कि नवरात्र स्त्री और प्रकृति की सृजन शक्ति के समक्ष सिर झुकाने, उसका मान करने के भाव को भी पोषित करता है। पावन मानवीय भाव-चाव को सींचने वाले पूजन और परंपरा के ये नौ दिन हर बार मन (Kyu Manaya Jata Hai Navratri Ka Tyohar) को नया विश्वास देकर जाते हैं।
- विनम्रता के भाव को बल
नवरात्र में अपनी समस्त ऊर्जा का समर्पण कर मां शक्ति से यह आह्वान किया जाता है कि वे नई शक्ति और नई सोच का संचार करें। इस भाव के साथ आदिशक्ति के समक्ष नत होना, ईश्वरीय सत्ता के आगे ही नहीं, मानवीय जीवन में भी विनम्र होने के भाव को पोषित करता है यह पर्व। यों भी मां दुर्गा का रूप भारतीय स्त्री के असहाय नहीं बल्कि मातृशक्ति के रूप में पोषक और चेतनामयी रूप में सजगता से दमकते चेहरे का प्रतीक है। तभी तो इस महापर्व पर आस्था और विश्वास के माध्यम से हमें अपनी ही असीम शक्तियों से परिचय पाने का रास्ता मिलता है।
- मानसिक ऊर्जा संचय का अवसर
तनाव, अवसाद और अकेलेपन की जीवनशैली के इस दौर में हर किसी के लिए अपने मन को साधना जरूरी हो गया है। बदलती पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियों में अपने भीतरी बल का संचय आवश्यक लगता है। इन नौ दिनों में मन की ऊर्जा जुटाई जा सकती है। व्रत उपवास के जरिए सधी हुई जीवनशैली मन का मौसम बदल देती है। माना जाता है कि मां दुर्गा की आराधना के इन दिनों में उपवास करने वालों की ही नहीं, उपवास ना करने वालों की दिनचर्या भी सधी और सात्विक हो जाती है। इसीलिए यह अवसर हर किसी के लिए मानसिक ऊर्जा को सहेजने के संकल्प को पूरा करने का परिवेश बनाता है। इससे नए विचारों के साथ, जीवन की सार्थक दिशा तलाशते हुए अपनी भीतरी ऊर्जा को व्यर्थ ना जाने देने की समझ को बल मिलता है। जीवन की जद्दोजहद में, कितनी ही गतिविधियों में, अर्थहीन संवाद और अजब-गजब व्यवहार में जाने-अनजाने हमारी ऊर्जा खप जाती है, नष्ट होती है। इसीलिए नवरात्र में मन की शक्ति को दिशा देना जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है। समझना मुश्किल नहीं कि चेतनामय मन, जीवन के हर अंतर्द्वंद्व में हमारी जीत सुनिश्चित करता है।
- नई चेतना-नवजागरण का प्रतिबिंब
भारतीय संस्कृति में मातृशक्ति को ही प्राणशक्ति माना गया है। ऐसे में महादेवी की आराधना का यह उत्सव नवचेतना और नवजागरण का पर्व तो है ही, स्त्री सम्मान के भाव से भी जुड़ा है। यों भी हमारे यहां नारी की प्रखरता और शक्ति सामर्थ्य को ही 'दुर्गा' नाम दिया गया है। इसीलिए आज के दौर में आदिशक्ति की उपासना का यह पर्व महिलाओं के मन और जीवन में झलकती नई ऊर्जा, नई चेतना को भी प्रतिबिंबित करता है। एक चेतनासंपन्न स्त्री ही अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सरोकारों के प्रति जागरूक हो सकती है, अपने अधिकारों की समझ रख सकती है। स्त्री जीवन के लिए दंश बनी कुप्रथाओं के खिलाफ खड़ी होने का संबल जुटा सकती है। इसीलिए नवरात्र का एक संदेश यह भी है कि मां एक स्त्री के रूप में सौम्य और कोमलांगी हैं तो बुराइयों का प्रतिकार करने के लिए प्रचंड रूप भी धारण करती हैं। ऐसे में यह आध्यात्मिक और पारंपरिक पर्व आधुनिक संदर्भ में स्त्रियों को प्रगतिशील सोच रखने और सशक्त व्यक्तित्व के रूप में पहचान बनाने की सीख भी देता है। आम जीवन में स्नेह और ममता भरा मन रखने के साथ ही अत्याचार के विरोध में आवाज बुलंद करने का पाठ पढ़ाता है।
- पूजन और परंपरा का मेल
नृत्य, रंग, रोमांच, परंपरा और पूजन का यह प्यारा पर्व हमें जड़ों से जोड़कर रखते हुए नई सोच, नए व्यक्तित्व से मिलवाता है। यह निखार-संवार बाहरी और भीतरी दोनों मोर्चों पर होता है। गरबा-डांडिया की थिरकन, सामाजिक मेलजोल और मन-जीवन में उमंग लाती हैं तो मां की आराधना का भाव खुद अपने अस्तित्व के सही मायने समझने का पाठ पढ़ाता है। एक ओर नवरात्र में हर दिन एक नए रंग को पहनते-ओढ़ते हुए जीवन में खुशियों के इंद्रधनुष से नाता जुड़ता है तो दूसरी ओर आध्यात्मिक रूप से हमारा मन शक्ति स्वरूपा मां के जाग्रत रूप की ओर मुड़ता है। गहराई से समझें तो देवी भगवती की उपासना के ये नौ दिन, जीवन की हर जड़ता को दूर करने की उजास साथ में लाते हैं। परंपरागत रंगों को सहेजते हुए मन-जीवन के मोर्चे पर हर तरह से सकारात्मक प्रगति का मार्ग सुझाते हैं।
प्रस्तुति: डॉ. मोनिका शर्मा
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