SC से नीतीश सरकार को बड़ी राहत, जातीय जनगणना पर सुनवाई से किया इनकार, जानें क्या हैं इसके फायदे और नुकसान

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को बिहार की नीतीश सरकार (Bihar Government) को बड़ी राहत दी है। जाति आधारित जनगणना (Caste Based Census) पर रोक लगाने वाली याचिका को कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिकाकर्ताओं को पटना हाईकोर्ट का रुख करने के लिए कहा है। गौरतलब है कि बिहार के रहने वाले अखिलेश कुमार ने जातिगत जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिका में कहा गया था कि जाति जनगणना (Caste Census) की अधिसूचना मूल भावना के खिलाफ है और यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है। याचिका में जाति जनगणना की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी।
अखिलेश कुमार के अलावा हिंदू सेना नामक एक संगठन ने भी जातिगत जनगणना की अधिसूचना पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि जातिगत जनगणना कराकर बिहार सरकार (Bihar Government) देश की एकता और अखंडता को तोड़ना चाहती है। बात दें जातिगत जनगणना को लेकर राजनीति गरमा गई है। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे देश में नेता समय-समय पर उठाते रहते हैं। चलिए जानते है क्या है जातिगत जनगणना...
क्या हैं जातिगत जनगणना
भारत में प्रत्येक 10 वर्ष में एक बार जनगणना की जाती है। इससे सरकार को विकास योजनाओं को तैयार करने में साहयता मिलती है। किस तबके को कितना हिस्सा मिला, किस हिस्से से वंचित रहा, ये सारी जानकारी पता चल जाती हैं। कई नेताओं ने मांग की है कि जब देश में जनगणना हो तो इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाए. इससे हमें न केवल देश की जनसंख्या का पता चलेगा, बल्कि यह भी जानकारी मिलेगी कि देश में किस जाति के कितने लोग रहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो जाति के आधार पर लोगों की गिनती करना जातिगत जनगणना कहलाती है।
ये हैं फायदे
जातीय जनगणना से हमें यह पता चल सकेगा कि देश में कौन जाति अभी भी पिछड़ापन की शिकार है। यह आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें सशक्त बनाया जाता है। इसके अलावा यह भी पता चलता हैं कि किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की वास्तविक का पता चल पाएगा।
ये हैं नुकसान
वहीं जातिगत जनगणना के फायदे ही नहीं, इसके नुकसान भी हैं। जानकारों का कहना है कि जाति आधारित जनगणना से देश को किसी भी तरह का नुकसान हो सकता है। इसे देखते हुए ब्रिटिश सरकार और बाद में स्वतंत्र भारत की सरकारों ने इस मांग को मानने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि अगर किसी समाज को पता चल जाए कि देश में उनकी संख्या घट रही है तो उस समाज के लोग अपनी संख्या बढ़ाने के लिए परिवार नियोजन को अपनाना बंद कर सकते हैं। इससे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगती है। इसके अलावा इस जनगणना से देश में सामाजिक तनाव का भी खतरा रहता है।
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