बिहार बाढ़ : अगले वर्ष में इंतजामों के नाम पर नजर आता है 'वही ढाक पर तीन पात'

बिहार बाढ़ : अगले वर्ष में इंतजामों के नाम पर नजर आता है वही ढाक पर तीन पात
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बिहार के लिए बाढ़ कोई नयी बात नहीं हैं, यहां की ज्यादातर आबादी को हर वर्ष बाढ़ और वर्षा से हुई तबाही को झेलना पड़ता है। प्रदेश के हुक्मरान बाढ़ से निपटने के तरह - तरह के वायदे करते भी दिखाई देते हैं। जब अगली वर्ष आती है तो वही ढाक पर तीन पात नजर आता है। हम बात करते हैं पिछले वर्ष की 23 जुलाई की, इस दिन बिहार में बारिश से हुई अलग - अलग घटनाओं में औरंगाबाद, पूर्वी चम्पारण और भागलपुर जिलों में 13 लोगों की मौत हो गई थी। इस लिहाज से बिहार के लिए ये दिन उस दिन भी दुखद: रहा था और आज भी दुखद: ही है।

याद रहे उस दिन औरंगाबाद में सात लोगों ने बारिश जनित हादसों में जान गंवा दी थी। वहीं, पूर्वी चंपारण में एक घर की छत पर बिजली गिरने से 13 साल की लड़की सहित दो लोगों की मौत नींद में ही हो गई थी। प्रदेश में ज्यादातर नदियां उस दिन भी उफान पर थी और आज भी हैं। र्फक सिर्फ इतना है कि जब कोरोना नामक राक्षस इस दुनिया में नहीं था। पिछले वर्ष की 23 जुलाई को बिहार के ज्यादातर हिस्सों में बाढ़ पीड़ित लोगों ने राज्य मार्गों पर इसी वर्ष की तरह अस्थाई रूप सरण ले रखी थी। लोग आपस में मिल बैठकर इस बाढ़ से लड़ रहे थे। लेकिन आज की परिस्थितियां बिल्कूल अलग हैं। कोरोना की वजह से प्रदेश में लॉकडाउन लागू है। लोगों पर खुद की ही जान बनाने के लिए कई तरह के प्रतिबंध सहने पड़ रहे हैं। आज एक - दूजे का सुख - दुख बांटने वाला कोई नहीं है। क्योंकि लोगों को कोरोना नामक राक्षस की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना पड‍़ रहा है। यानी कि एक - दूसरे से छह फीट की दूरी बनाकर रहना पड़ता है। वैसे प्रशासनिक इंतजामों को कतई नकारा नहीं जा सकता है। लेकिन जितने होने चाहिए थे उससे कम है। हो भी क्यों ना, क्योंकि ज्यादातर सरकारी कर्मचारी व समाजिक कार्यकर्ता कोरोना नामक राक्षस को रोकने में जुटे हैं ना।

वैसे पिछले साल इसी दिन बाढ़ प्रभावित जिलों मधुबनी, सीतामढ़ी और दरभंगा में वायू सेना के दो हेलीकॉप्टर पीड़ितों की मदद करने के लिए तैनात थे। वे जगह - जगह लोगों को बचाते और खाने के पैकेट भी आकाश से जमीन पर बरसाते नजर आए थे। बाढ़ पीड़ित वर्तमान समय के समान दूखी नहीं थे।

पिछले वर्ष 23 जुलाई को भी नेपाल से निकलने वाली नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र और उत्तर बिहार में हो रही बारिश की वजह से राज्य की ज्यादातर नदियां उफान पर बह रही थी। उस दौरान भी बूढी गंडक नदी का पानी सिकंदर पुर में तबाई मचा रहा था। समस्तीपुर में भी नदी का जलस्तर लाल निशान से ऊपर था। बागमती नदी भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी। कोशी और महानन्दा नदी भी उफान पर बह रही थी। उस दौरान भी ज्यादातर नदियां उफान पर बह रही थी और जगह - जगह बाढ़ के हालात पैदा कर रही थी। जैसे सूबे में आज बने हुए हैं।

दुख इस बात का है, अगर बाढ़ के आने से पहले ही बिहार के हुक्मरान इससे निपटने का इंतजाम कर लेते तो आज इतने जन -धन की हानि नहीं होती। सैकड़ों लोग बेघर न होते। सड़कों पर लोगों के तंबू नए गड़े होते। आज भी मुज्फ्फरपुर, मधुबनी में कुछ बाढ़ पीड़ित राज्य मार्ग से सरण लिए हुए देखे जा सकते हैं। इस समय सूबे के आठ जिले सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज व पूर्वी चम्पारण जिले के 38 प्रखंडों के 217 पंचायतों की 413952 आबादी बाढ़ से प्रभावित है जहां से निकाले गए 13585 लोग पांच राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं।

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