बिहार में भी नहीं जलाई जाएगी फसलों की पराली! दिल्ली की तर्ज पर बनाई जा रही ये योजना

बिहार (Bihar) में धान की फसल कटने के साथ ही बायो डिकंपोजर का इस्तेमाल (use of bio decomposer) शुरू होगा। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (Bihar Agricultural University) की ओर से जिसके तहत बायोडिकम्पोजर का आदेश दे दिया है। खेतों में प्रत्यक्षण कामयाब रहा तो किसानों को पराली प्रबंधन (straw management) की इस नई स्कीम के बारे में बताया जाएगा। प्रयोग के मुताबिक 15 दिन के भीतर ही पराली गलकर खाद का रूप ले लेती है। इसके खाद बन जाने के बाद खेतों में बुआई की लागत भी घट जाएगी। बिहार में ये प्रयोग कामयाब रहा तो महज 20 रुपये के कैप्सूल से ही पराली प्रबंधन की दिक्कत को खत्म कर देगा। 15 दिनों के भीतर इस प्रयोग के बाद किसानों को ना तो पराली को फूंकने की का कष्ट उठाना पड़ेगा और ना ही पराली को काटकर दूसरी जगह लेकर जाने का खर्चा उठाना पड़ेगा। इससे सिंचाई के लिए पानी की भी आधी बचत हो जाएगी। किसान को खेत में यूरिया का छिड़काव भी कम करना होगा।
दिल्ली राज्य के खेतों में यह योजना कामयाब साबित हुई है। इसके बाद बिहार सरकार की ओर से भी कृषि विभाग के अफसरों को यह योजना बनाने का निर्देश दिया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा यह अनुसंधान किया व बायो डिकम्पोजर की इजाद यहीं पर हुई। फिर दिल्ली सरकार ने अपने तमाम किसानों को इसे फ्री में बांटा। फिर धान की पराली वाले करीब दो हजार एकड़ में वैज्ञानिक निगरानी में इसको छिड़का गया। कामयाबी हासिल हुई है तो बिहार सरकार भी इस प्रयोग की तरफ कदम बढ़ाती नजर आ रही है।
इतना आएगा खर्चा
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा महज 20 रुपये मूल्य वाला चार कैप्सूल का एक पैकेट निर्मित किया गया है। इन 4 कैप्सूल से छिड़काव करने के लिए 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है व एक हेक्टेयर भूमि में इसका उपयोग कर सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे पूर्व पांच लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ उबालना है व पानी के ठंडे होने के बाद उसी घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाकर कैप्सूल को मिलाना है। फिर इस घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे वाले रुम में रखे रखना होगा। 10 दिनों बाद धान की पराली पर छिड़काव के लिए यह पदार्थ तैयार हो जाएगा।
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