Sunday Special: वास्तुकला के विकास पर प्रभाव डालता है महाबोधि मंदिर, फिलहाल श्रृद्धालु हैं मायूस

बिहार (Bihar) के गया (Gaya) जिले में स्थित महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) भारत के महत्वपूर्ण तिर्थस्थलों में से एक है। महाबोधि मंदिर में देश-विदेश से आए दिन श्रद्धालु और पर्यटक (Devotees and tourists) पहुंचते हैं। लेकिन इन दिनों देश-दुनिया में छाए कोरोना संकट (Corona crisis) की वजह से महाबोधि मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर परिबंध हैं। महाबोधि मंदिर को भारत में ईंट से बनी आरंभिक संरचनाओं के कुछ जीवित उदाहरणों में से एक माना जाता है। महाबोधि मंदिर ने बीती कई शताब्दियों से वास्तुकला के विकास पर अहम प्रभाव डाला है। वर्तमान में मौजूद महाबोधि मंदिर उत्तर गुप्त काल में पूरी तरह से ईंट से तैयार संरचनाओं में से सबसे प्राचीनतम व अत्यंत भव्य संरचनाओं में से एक है। महाबोधि मंदिर के पत्थर के गढ़े हुए जंगले पत्थर की मूर्तिकला संबंधी नक्काशी का उत्कृष्ट शुरुआती उदाहरण है।
महाबोधि मंदिर परिसर महात्मा बुद्ध के जीवन (566-486 ईसा पूर्व) से सीधा संबंध रखता है। क्योंकि यह वही जगह है जहां 531 ईसा पूर्व में महात्मा बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर सर्वोच्च और संपूर्ण अंतरज्ञान हासिल किया था।
इस जगह से महात्मा बुद्ध के जीवन और उसकी बाद की उनकी पूजा से जुड़ी घटनाओं के असाधारण कारनामे मौजूद हैं। खासतौर पर उस वक्त के जब 260 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक इस स्थान पर तीर्थ यात्रा करने के लिए आए हुए थे। सम्राट अशोक ने ही बोधि वृक्ष के स्थल पर पहले मंदिर का निर्माण करवाया था। महाबोधि मंदिर परिसर बोध गया शहर के ठीक बीचों-बीच में स्थित है। इस स्थल पर एक मुख्य मंदिर है और एक प्रांगण के भीतर छह पवित्र स्थान हैं और दक्षिण की ओर के प्रांगण के ठीक बाहर, कमल कुंड नामक एक सातवां पवित्र स्थान है।
सभी पवित्र स्थानों में से सबसे अधिक खास यह विशाल बोधि वृक्ष (फिकस रिलिजियोसा) है। यह वृक्ष मुख्य मंदिर से पश्चिम की ओर स्थित है। यह भी मान्यता है कि उस समय के मूल बोधि वृक्ष का ही वंशज है, जिसके नीचे बुद्ध ने पहला सप्ताह गुजारा था। जिस स्थान पर महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। मध्य पथ की उत्तर दिशा में, एक उठे हुए क्षेत्र पर, अनिमेषलोचन चैत्य (प्रार्थना हॉल) है जहां, माना जाता है कि महात्मा बुद्ध ने अपना दूसरा सप्ताह गुजारा था। महात्मा बुद्ध अपने तीसरे सप्ताह में रत्नचक्रमा नामक स्थान पर 18 कदम आगे और पीछे चले। वो स्थान मुख्य मंदिर की उत्तरी दीवार के पास है। जिस स्थान पर महात्मा बुद्ध ने चौथा हफ्ता गुजारा था वो रत्नघर चैत्य है, जो प्रांगण दीवार के पास पूर्वोत्तर में मौजूद है। मध्य पथ पर पूर्वी प्रवेश द्वार की सीढि़यों के ठीक बाद एक स्तंभ है। जहां अजापाला निग्रोध वृक्ष मौजूद है, इसी वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध ने ब्राह्मणों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए 5वें हफ्ते के वक्त मनन किया था। महात्मा बुद्ध ने छठा हफ्ता प्रांगण के दक्षिण में मौजूद कमल कुंड के पास व्यतीत किया था। अंत में सातवां हफ्ता राज्यतना वृक्ष के नीचे व्यतीत किया, इस स्थान पर अब एक वृक्ष मौजूद है।
फिलहाल महाबोधि मंदिर में श्रृद्धालुओं के प्रवेश पर है रोक
कोरोना महामारी (Corona epidemic) की वजह से वैसे तो देश, दुनिया के सभी लोग परेशान हैं। कोरोना वायरस से बिहार भी अछूता नहीं है। देश के कई राज्यों के साथ बिहार में भी कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। तेजी से फैलते इसी कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए बिहार सरकार की ओर से कई प्रतिबंध लगाए गए हैं। इनमें से एक प्रतिबंध महाबोधि मंदिर समेत बिहार में स्थित अन्य मंदिरों पर भी लागू होता है। यानि कि बिहार में बीते 10 अप्रैल से महाबोधि मंदिर में श्रृद्धालुओं और पर्यटकों के प्रवेश पर रोक है। बिहार में रोजाना कोरोना संक्रमण के मामलों में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से इस तरह का सख्त कदम उठाया गया।
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