International Women's Day 2021: दुलारी देवी की सफलता को संघर्ष और समर्पण से बनती है विशिष्ट

International Womens Day 2021: दुलारी देवी की सफलता को संघर्ष और समर्पण से बनती है विशिष्ट
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International Women's Day 2021: भारत सरकार (Indian government) ने हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्म पुरस्कारों विजेताओं (Padma Awards winners) के नाम की घोषणा की। पद्म पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट में बिहार (Bihar) के मधुबनी (Madhubani) जिले के रांटी गांव (Ranti Village) निवासी एवं मछुआरा समुदाय (Fisherman community) से आने वाली 52 वर्षीय दुलारी देवी (Dulari Devi) का नाम भी शामिल था।

International Women's Day 2021:दुलारी देवी (Dulari Devi) पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित (Padma Shri Awarded) होने वाली ऐसी पहली मधुबनी पेंटर (Madhubani Painter) नहीं हैं। लेकिन दुलारी देवी ने जीवन में जिस तरह के संघर्ष, समर्पण और लगन के बल पर यह सम्मान प्राप्त किया है। इस वजह से दुलारी देवी की सफलता की कहानी अपने आप में विशिष्ट हो जाती है।

जानकारी के अनुसार दुलारी देवी का जन्म बिहार (Bihar) के मधुबनी जिले के रांटी गांव स्थित एक गरीब मल्लाह परिवार में हुआ था। गरीबी ऐसी थी कि इनका बचपन हर तरह के आभाव में बीता। साथ ही दुलारी देवी कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देख सकी थीं। इन हालातों में इनके पिता और माता ने उनका वर्ष की 12 आयु में विवाह करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी। पर पति के घर में दुलारी देवी को मां के घर की तरह प्यार या दुलार नहीं मिल सका। विवाह के कुछ साल बाद ही दुलारी देवी 6 महीनों की बेटी की मौत का गम लिए मधुबनी जिला स्थित अपने मायके रांटी गांव वापस आ गईं।

पति का घर छूटने के बाद दुलारी देवी अपने मायके में रहने लगीं और यहां भी संघर्ष ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। रांटी में जीविका चलाने के लिए दुलारी को लोगों के घरों में झाडू़-पोछा करने का काम करना पड़ा। पर ईश्वर ने दुलारी के भाग्य में कुछ और ही अंकित किया था।

इस बीच दुलारी देवी को घरेलू कामगार के तौर पर प्रसिद्ध मधुबनी पेंटर महासुंदरी देवी के घर पर काम मिल गया। इस जगह पर कार्य करने के बदले दुलारी को उन्हें 6 रुपये प्राप्त होते थे। यहां कार्य करते हुए दुलारी उनकी देवरानी कर्पूरी देवी की नजदीकी में आ गईं। कर्पूरी देवी भी मिथिला कला का एक बड़ा नाम थीं।

दुलारी देवरानी-जेठानी दोनों को मिथिला पेंटिंग करते हुए अक्सर देखती थी। इस बीच दुलारी के मन में भी इसे सीखने की इच्छा जाग्रत हुई। दुलारी ने शुरुआती दिनों में अपने घर के आंगन को मिट्टी से पोतकर उस पर लकड़ी के ब्रश से पेंटिंग बनाना स्टार्ट किया।

इसके बाद कर्पुरी देवी ने दुलारी को मिथिला कला का ककहरा सिखाना शुरू कर दिया। दुलारी को कर्पुरी देवी जैसी गुरु के मिलते ही उनकी कला में तेजी से निखार आ गया। उसके बाद दुलारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। समाज की निचली जाति से आने वाली दुलारी को शुरू में भगवान की पेंटिंग बनाने की अनुमति नहीं थी।

मिथिला पेटिंग विशेष तौर पर धार्मिक आख्यानों या कथाओं से संबंधित होती हैं। पी उनकी जाति ने उनकी कला को एक नई दिशा दी। इस वजह से दुलारी ने अपनी पेंटिंग में अन्य कलाकारों से अलग आस-पास के जीवन का चित्रण किया।

मधुबनी की दुलारी देवी अबतक करीब 10 हजार से अधिक मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं। साथ वो इन्हें देश-विदेश की 50 से ज्यादा प्रदर्शनियों में दिखा चुकी हैं। दुलारी देवी की जीवन गाथा व कलाकृतियां को गीता वुल्फ की किताब 'फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश' और मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच में लिखी किताब में स्थान मिल चुका है।

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