नाले का पानी पीने के लिए मजबूर हैं यहां के लोग, समस्या जानकर हिल जाएंगी सभी की मानव संवेदनाएं

नाले का पानी पीने के लिए मजबूर हैं यहां के लोग, समस्या जानकर हिल जाएंगी सभी की मानव संवेदनाएं
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झारखंड राज्य को बिहार से अगल हुए करीब 20 साल हो गए हैं। बावजूद इसके झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला इलाके स्थित एक गांव में समस्याएं अब भी जस की तस बनी हुई हैं। यानि कि घाटशिला के घुटिया सबर बस्ती में लोग नाले का पानी पीने पर मजबूर हैं।

देश को आजाद हुए करीब 73 साल हो गए हैं। बिहार (Bihar) से झारखंड (Jharkhand) राज्य को अलग हुए करीब 20 वर्ष हो गए हैं। लेकिन झारखंड में आज भी एक ऐसा गांव हैं। जाने के लोग नाले का पानी पीने के लिए मजबूर (People forced to drink drain water) हैं। इन लोगों की दिक्कतों को जानकार आप लोगों की भी मानव संवेदनाएं हिल जाएंगी। ये पूरा मसला पूर्वी सिंहभूम जिले (East Singhbhum District) के घाटशिला क्षेत्र (Ghatshila area) में स्थित एक गांव का है। वैसे तो इस गांव में पीने के पानी (drinking water) के लिए सोलर सिस्टम (solar system) लगा हुआ है। लेकिन लापरवाही एवं बदइंतजामी कुछ ऐसी है कि पीने के पानी के नाम पर प्यास (Thirst) हाथ लगती है। दूसरी ओर इस गांव में परिवार के सिरों के ऊपर एक छत होना भी बड़ी बात है।

वैसे तो एक ओर देश की तस्वीरें चमक दमक के साथ सामने आती हैं, लेकिन भारत के अंदर भी एक और देश है। जहां की तस्वीरें मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख देती हैं। हम झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंडल में प्रखंड कार्यालय से करीबन 30 किलोमीटर दूर स्थिति घुटिया सबर बस्ती के बारे में बात कर रहे हैं। घुटिया सबर बस्ती के लोग नाले का पानी पीने के लिए मजबूर (drinking water problem) हैं। ये भी नहीं है कि गांव में पीने के पानी के लिए जलमीनार नहीं बने हुए हैं। पर इनके बाद भी स्थितियां कुछ ऐसी हैं कि पीने के पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे गांव वाले नाले के पानी से ही अपनी प्यास बुझाने के लिए मजबूर हैं।

जानकारी के अनुसार घुटिया सबर बस्ती (Ghutiya Sabar Basti) नाले के किनारे पर बसी हुई है। यहां के ग्रामीण अपनी जरूरतों के लिए पानी के सभी कार्य इसी नाले से करते हैं। नहाने-धोने से लेकर पीने का पानी तक इसी नाले से घुटिया सबर बस्ती के लोग लेते हैं। घुटिया सबर बस्ती के लोगों की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होती हैं, बल्कि सबर बस्ती में जर्जर घरों की समस्या भी व्याप्त है। स्थितियां ये हैं कि बरसात में घरों की छतों से पानी टपकता है। ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के मौसम से पहले जर्जर घरों की मरम्मत करा दी जाती, तो स्थितियां कुछ ठीक रहती हैं। घुटिया सबर बस्ती के लोगों की मांग सही कानों तक नहीं पहुंच सकी है। बताते हैं कि बारिश में तो यहां के घरों की छत ही झरना हो जाती हैं। लेकिन इससे पहले सबसे बड़ा संकट प्यास बुझाने का खड़ा हुआ है।

जानकारी के अनुसार घुटिया सबर बस्ती में पीने के पानी के लिए दो जलमीनार बनाये गये। जिनमें से एक जलमीनार करीब 6 महीनों से खराब पड़ा हुआ है। वहीं दूसरा जलमीनार तो पर्याप्त पानी ही नहीं दे पाता है। इनकी मानें तो दूसरा जलमीनर कड़ी धूप में पानी तो देता है। पर धूप तेज नहीं हो तो इस जलमीनार में से पानी बूंद-बूंद ही नसीब हो पाता है। क्योंकि ये जलमीनार सोलर एनर्जी से चलती हैं।

घुटिया सबर बस्ती निसावी एक शख्स का कहना है कि दोनों सोलर जलमीनार में से कड़ी धूप में ही पानी आता भी है। इस दौरान पास में पड़ने वाले ईंट भट्टे के दर्जनों मजदूर भी यहीं से पानी लेने के लिए आते हैं। जिसके बाद ये जलमीनार क्षेत्र के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं करा पाता है।

लॉकडाउन के दौर में घुटिया सबर बस्ती के परिवार अपनी रोजी-रोटी जंगल में साल के पत्ते से पत्तल बनाकर जुटाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। गांव की एक महिला ने बताया कि गांव की सभी महिलाएं जंगल से पत्ते तोड़कर लाती हैं व दिनभर पत्तल बनाती हैं। एक पत्तल के बदले इनको एक रूपया मिलता है। इस कार्य को करने के बाद एक महिला पूरे दिन में करीब 100 रुपये कमा पाती है। वैसे सरकार की तरफ से इन सभी परिवारों के लिए राशन मिलता है।

घुटिया सबर बस्ती में हर किसी के पास आवास नहीं हैं, इसलिए वो दूसरों के घरों में भी रहने के लिए मजबूर हैं। इनमें से कई लोगों से सरकार की तरफ से बिरसा आवास के लिए फोटो समेत अन्य पेपर लिए गए थे। पर अभी तक इनको रहने के लिए बिरसा आवास नहीं मिला है। इनमें से से कई लोग जर्जर घरों में रहने के लिए मजबूर हैं। ग्रामीणों के अनुसार इन लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कत बारिश के मौसम में होती है। अब घुटिया सबर बस्ती के लोग आने वाले बारिश के दिनों से भयभीत हैं।

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