Mahatma Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी ने बिहार के मुंगेर की बनी लाठी का अंग्रेजों के खिलाफ किया प्रयोग, अंतिम सयम तक रही साथ

Mahatma Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी ने बिहार के मुंगेर की बनी लाठी का अंग्रेजों के खिलाफ किया प्रयोग, अंतिम सयम तक रही साथ
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सबसे पहली बिहार यात्रा 10 अप्रैल 1917 की। जब महात्मा गांधी कोलकाता से पटना पहुंचे। उसके बाद उन्होंने बिहार की कई यात्रायें की। जिनकी स्मृतियां आज भी बिहार में जीवित हैं। महात्मा गांधी ने जिस लाठी का प्रयोग अंग्रेजों के खिलाफ किया व जो लाठी अंतिम समय तक उनके साथ रही। वो लाठी बिहार के मुंगेर की बनी थी व गांधी जी को 1934 में मिली थी।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बिहार यात्राओं को दशकों बीत गये हैं। लेकिन महात्मा गांधी की स्मृतियां आज भी बिहार के कोने-कोने में जीवित हैं। महात्मा गांधी पहली बार 10 अप्रैल 1917 को कोलकाता से पटना पहुंचे थे। जब उनके साथ पंडित राजकुमार शुक्ल थे। पंडित राजकुमार शुक्ल के साथ महात्मा गांधी को चंपारण जाना था। वहां महात्मा गांधी को किसानों की समस्या व निहले साहबों के कारनामे सुनने थे। इसी उद्देश्य से पंडित राजकुमार शुक्ल महात्मा गांधी को पटना तक लेकर आए थे।

सबसे पहली बार इनको बिहार में ही महात्मा की उपाधि मिली थी। इनको गुरु रवींद्रनाथ ने महात्मा की उपाधि दी थी। बताया जाता है कि मोहनदास करमचन्द गांधी इनका बचपन का नाम था। वहीं बिहार की माटी भी इस बात की गवाह है कि यहां के भोले-भाले किसान पंडित राजकुमार शुक्ल ने उन्हें महात्मा पुकारा था। दस्तावेज सच्चाई को बयां करते हैं कि बिहार की माटी से उन्हें इसी संबोधन से पत्र लिखा गया था व तारीख 27 फरवरी 1917 थी। लिखा था- मान्यवर महात्मा! किस्सा सुनते हो रोज औरों के, आज मेरी भी दास्तान सुनो…' पत्र लंबा है। याचना है कि महात्मा गांधी जी चंपारण आएं व यहां की 19 लाख प्रजा की पीड़ा से अवगत हो जायें।

पंडित राजकुमार शुक्ल कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चंपारण के किसानों की आवाज बनकर पहुंचे थे। शुक्ल ने महात्मा गांधी को बुलाने से पहले पंडित मदनमोहन मालवीय व लोकमान्य बालगंगाधर तिलक से भी मुलाकात की थी व चंपारण की समस्या से उनको अवज्ञत कराया था। लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि पहले देश की आजादी का सबसे बड़ा मुद्दा उनके सामने है। बाद में पंडित राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी से आग्रह किया। कानपुर भी गए। लेकिन वहां महात्मा गांधी से नहीं मिल सके, अंतत: 10 अप्रैल 1917 को महात्मा गांधी पटना पहुंच ही गये।

महात्मा गांधी ने वर्ष 1917- 18 में अंग्रेज शासन के खिलाफ आंदोलन तेज करते हुए अंग्रेजों के स्कूल का बहिष्कार करते हुए राष्ट्रीय स्कूल खोलने का आह्वान किया। उसके बाद तो ऐसी लहर शुरू हुई कि विद्यालय एवं महाविद्यालय के शिक्षक अपनी नौकरियों को छोड़ कर राष्ट्रीय स्कूल खोल कर बच्चों को शिक्षा देने लगे।

महात्मा गांधी देश भ्रमण के दौरान जब वर्ष 1918 में छपरा आए तो महात्मा गांधी के सत्याग्रह व अहिंसा के वाणी लोग ऐसे सम्मोहित हुये कि लोग सरकारी नौकरियां छोड़कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। जिला प्रशासन की स्मारिका सारण में इसका उल्लेख है कि महात्मा गांधी के आह्वान पर जिला स्कूल छपरा के शिक्षक नजीर अहमद ने अपनी नौकरी छोड़ दी व राष्ट्रीय स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगे। महात्मा गांधी के कहने पर छपरा, सीवान एवं गोपालगंज में राष्ट्रीय स्कूल खोले गए थे। महात्मा गांधी जब 1917 में चम्पारण पहंचे तो वहां उन्होंने 20 नवम्बर 1917 को भितिहरवा में स्कूल की स्थापना की थी।

प्रतीक के रूप में मशहूर हो चुकी महात्मा गांधी की लाठी बिहार के मुंगेर में बनी थी। बाताया जाता है कि अंग्रेज बिहार के मुंगेर की ही बनी लाठियों का इस्तेमाल भारतीय क्रांतिकारियों के खिलाफ किया करते थे। लेकिन अंग्रेजों को नहीं मालूम था कि यही लाठी एक दिन उनका भी अंत करेगी। महात्मा गांधी जी की वो लाठी उनके अंतिम समय तक उनके साथ ही रही। वो महात्मा गांधी को अप्रैल 1934 में बिहार के घोरघाट (उस दौरान मुंगेर) में मिली थी। उस समय महात्मा गांधी बिहार में आए भूकंप के बाद पीड़ित लोगों से मिलने के लिये आये थे।

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